Hyderabad
“राजकोष खाली, फिर भी भ्रष्टाचार समिट?”—तेलंगाना सरकार पर जनता के पैसे के दुरुपयोग का बड़ा आरोप
CM ने राज्य को बताया कंगाल, वहीं राहुल गांधी की बैठक पर खर्च हुए करोड़ों रुपये! विपक्ष ने कहा—“ये इवेंट नहीं, भ्रष्टाचार का उत्सव था”

हैदराबाद:
तेलंगाना की सियासत में इन दिनों भारी उथल-पुथल मची हुई है। मुख्यमंत्री द्वारा हाल ही में राज्य की वित्तीय स्थिति को ‘अत्यंत गंभीर’ बताने के बाद, एक और विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि ठीक इसी समय राहुल गांधी की एक भव्य राजनीतिक बैठक पर सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर दिए। इस खर्च को लेकर विपक्ष ने इस आयोजन को “भ्रष्टाचार समिट” तक कह दिया है।
“राज्य के खजाने में पैसे नहीं, लेकिन राहुल गांधी के स्वागत में बिछाया करोड़ों का कालीन?”
सरकार की तरफ से खुद मुख्यमंत्री ने बीते हफ्ते विधानसभा में कहा था कि राज्य की आर्थिक हालत बेहद खराब है और कई विकास योजनाएं फंड की कमी के कारण रुकी हुई हैं। इसके तुरंत बाद राजधानी में आयोजित कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बैठक में भव्य सजावट, हाई-टेक मंच, मीडिया कवरेज और सुरक्षा व्यवस्था पर पानी की तरह पैसा बहाया गया।
विपक्ष ने खोला मोर्चा, बोले—’जनता के टैक्स का हुआ अपमान’
तेलंगाना में भाजपा और बीआरएस समेत अन्य विपक्षी दलों ने सरकार पर तीखा हमला बोला है। भाजपा नेता ने कहा, “जिस राज्य में किसान को मुआवज़ा नहीं, बेरोज़गार को भत्ता नहीं और अस्पतालों में दवाइयां नहीं, वहां कांग्रेस नेता के स्वागत में करोड़ों की चकाचौंध? ये नहीं, तो और क्या है भ्रष्टाचार?”
‘भ्रष्टाचार समिट’ बना ट्रेंड, सोशल मीडिया पर भी हंगामा
#CorruptionSummit और #SaveTelangana जैसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे हैं। कई यूज़र्स ने इस पूरे आयोजन को ‘दिखावे का मेला’ और ‘राजकोष की लूट’ करार दिया है। कुछ ने तो राहुल गांधी के भाषण की तुलना बॉलीवुड स्क्रिप्ट से करते हुए तंज कसा—”डायलॉग शानदार थे, मगर स्क्रिप्ट जनता की जेब से लिखी गई थी।”
सरकार का पक्ष—‘जनसमर्थन जुटाना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार’
तेलंगाना कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह कोई निजी आयोजन नहीं था, बल्कि आम जनता से संवाद का एक हिस्सा था। उन्होंने कहा, “विपक्ष केवल ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जनता समझदार है और हमारी बात सुनेगी।”
क्या यह ‘राजनीति की जरूरत’ थी या जनता की जेब पर चोट?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस विवाद ने तेलंगाना की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है—क्या सत्ता में रहते हुए ऐसे आयोजन वाजिब हैं, जब राज्य खुद आर्थिक संकट से जूझ रहा हो?