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तीन दिन से बेसब्र हैं परिजन, जेसीबी बंद, नेता व्यस्त फोटोशूट में – दर्द से गूंज उठा मलबे में दबा गांव

13 लोग लापता, पर सिर्फ दो जेसीबी काम कर रही हैं; परिजन रोते-बिलखते मांग रहे हैं सिर्फ अपनों की डेड बॉडी, नेता आकर काम रुकवा रहे हैं

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जम्मू हादसे में राहत कार्य धीमा, नेताओं के फोटोशूट से काम ठप – परिजनों की चीखें
मलबे में दबे 200 लोग, सिर्फ दो जेसीबी काम कर रही – परिजन चीख रहे हैं, नेता फोटो खिंचवा रहे हैं

जम्मू-कश्मीर के एक पहाड़ी गांव में हुए दर्दनाक हादसे के बाद अब मलबे के नीचे दबे लोगों को निकालने का अभियान राजनीति और दिखावे की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। घटनास्थल पर मौजूद पीड़ित परिजनों की आंखों में आंसू हैं, दिलों में गुस्सा, और जुबान पर एक ही सवाल — “क्या हमारी बात सुनेगा कोई?”

तीन दिन बीत गए हैं लेकिन राहत कार्य का हाल ये है कि 20 में से सिर्फ दो जेसीबी मशीनें काम कर रही हैं। बाक़ी खड़ी हैं जैसे किसी मंत्री के आदेश की प्रतीक्षा में। लोग बेहाल हैं, और परिजनों का दर्द कैमरों के सामने छलक रहा है।

नेताओं का आना, जेसीबी का रुकना
घटनास्थल पर हर घंटे कोई न कोई मंत्री, विधायक या अफसर पहुंच रहा है। परिजनों का आरोप है कि जैसे ही कोई VIP आता है, राहत का काम रोक दिया जाता है, जेसीबी बंद कर दी जाती है, और नेता फोटो खिंचवाकर चले जाते हैं।

एक महिला ने फूट-फूटकर कहा,

हमें कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ अपने बच्चों की डेड बॉडी दे दो। जब कोई मंत्री आता है, तो जेसीबी बंद कर दी जाती है, इंटरव्यू चलते हैं, कैमरे चमकते हैं, और हमारे लोग मलबे में पड़े रहते हैं।

200 से ज़्यादा लोग फंसे, पर कार्रवाई ढीली
स्थानीय लोगों के अनुसार, कम से कम 200 लोग अभी भी मलबे में दबे हो सकते हैं। लेकिन अब तक सिर्फ पांच डेड बॉडी ही निकाली जा सकी हैं। एक युवक ने आक्रोश जताते हुए कहा,

जम्मू हादसे में राहत कार्य धीमा, नेताओं के फोटोशूट से काम ठप – परिजनों की चीखें


अगर किसी मंत्री या VIP के घर का कोई होता तो क्या यही रफ्तार रहती? क्या फिर भी सिर्फ दो जेसीबी लगतीं?

“हमें दिखावे नहीं, राहत चाहिए”
परिजनों की आंखों में आंसू हैं, हाथों में तस्वीरें हैं और दिलों में गुस्सा।

हम तीन दिन से भूखे बैठे हैं, जेसीबी कब शुरू होती है, कब बंद होती है, सब देख रहे हैं। हमें आपकी राजनीति नहीं चाहिए। हमें सिर्फ हमारे लोग वापस चाहिएं — चाहे जिंदा या मुर्दा।

नेताओं की रैलियां, मीडिया की भीड़ और सिस्टम की चुप्पी
हालात ये हैं कि बचाव दल – आर्मी और NDRF – पूरी मेहनत से लगे हैं, लेकिन उनके रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट बन रहे हैं राजनीतिक प्रतिनिधि, जो राहत स्थल को ‘पीआर इवेंट’ बना चुके हैं।

लोगों का कहना है कि

हमारी मजबूरी है सर, आप हमारे ऊपर पॉलिटिक्स मत कीजिए। हमारी फैमिली बर्बाद हो गई है, अब कैमरे और भाषण से क्या मिलेगा?

विजुअल्स में दिखा सच्चाई का चेहरा
जो दृश्य कैमरों में कैद हो रहे हैं, वे किसी भी संवेदनशील इंसान को झकझोर सकते हैं — खड़ी जेसीबी, रोते हुए लोग, नेताओं की भीड़, और मलबे में दबे अपनों की तलाश।

निष्कर्ष
इस आपदा ने सिर्फ लोगों के घर नहीं उजाड़े, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता भी उजागर कर दी। जब तक राजनीतिक दिखावे को राहत कार्य से दूर नहीं किया जाएगा, तब तक मलबे से डेड बॉडी निकालने में जितनी देर हो रही है, उतना ही गहरा होता जाएगा जनता का घाव।

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