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रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, लेकिन टाटा ट्रस्ट्स में मचा घमासान — अंदरूनी विवाद ने बढ़ाई चिंता

जहां अखबारों में रतन टाटा को ‘टाटा समूह का मार्गदर्शक प्रकाश’ बताया गया, वहीं ट्रस्ट के भीतर बोर्ड नियुक्तियों को लेकर मचा विवाद नई दिशा ले रहा है।

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Ratan Tata’s Legacy Overshadowed by Internal Feud in Tata Trusts on His Death Anniversary
रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि संदेशों के बीच टाटा ट्रस्ट्स में मचा अंदरूनी घमासान — समूह की एकता पर सवाल।

भारत के सबसे सम्मानित उद्योगपतियों में से एक रतन टाटा (Ratan Tata) की पहली पुण्यतिथि पर गुरुवार को देशभर के प्रमुख अखबारों में पूरे पन्ने के विज्ञापनों के ज़रिए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। इन विज्ञापनों में उन्हें “मार्गदर्शक प्रकाश” और “विनम्रता की मिसाल” बताया गया। लेकिन इसी दिन, जिस संगठन ने रतन टाटा के आदर्शों पर आगे बढ़ने का संकल्प लिया था, उसी के भीतर अंदरूनी कलह (Internal Feud) चरम पर है।

विरोधाभास साफ दिखा — एक ओर समूह के विज्ञापन रतन टाटा की सादगी और सेवा भाव का गुणगान कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर टाटा ट्रस्ट्स (Tata Trusts) के भीतर सत्ता संघर्ष ने उनके आदर्शों को झकझोर कर रख दिया है।


पुण्यतिथि के दिन ही बढ़ा विवाद

टाटा ट्रस्ट्स, जो टाटा संस (Tata Sons) में बहुमत हिस्सेदारी रखता है, इस समय गंभीर विवाद के दौर से गुजर रहा है। संयोग देखिए कि यह विवाद रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि के दिन और गहराया।

9 अक्टूबर 2024 को 86 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद रतन टाटा का मुंबई में निधन हुआ था। उसी दिन उनके नाम पर प्रकाशित विज्ञापन में लिखा गया —

“एक उद्देश्यपूर्ण जीवन। प्रभावशाली विरासत। राष्ट्र निर्माण में परोपकार को एक ताकत में बदलने की उनकी सोच हमेशा हमारी प्रेरणा रहेगी।”

वहीं, टाटा संस की ओर से दिए गए संदेश में कहा गया —

“आपने जो विनम्रता, उद्देश्य और उदारता के पाठ सिखाए, वे हमेशा हमारे साथ रहेंगे।”

लेकिन इन श्रद्धांजलि संदेशों के पीछे, टाटा ट्रस्ट्स के भीतर चल रही गंभीर सत्ता जंग पर किसी की नज़र नहीं गई।


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विवाद की जड़ क्या है?

जानकारी के अनुसार, टाटा ट्रस्ट्स में दो गुटों के बीच गहरी खींचतान चल रही है —

  • एक पक्ष नोएल टाटा (Noel Tata) के नेतृत्व में है।
  • जबकि दूसरा गुट मेहली मिस्त्री (Mehli Mistry) और उनके साथ चार अन्य ट्रस्टीज़ — दरियस खंबाटा (Darius Khambata), जहांगीर जे.सी. जहांगीर (Jehangir HC Jehangir) और प्रमित झावेरी (Pramit Jhaveri) — के नेतृत्व में है।

सूत्रों के अनुसार, मेहली मिस्त्री गुट बोर्ड नियुक्तियों और संचालन पर अधिक नियंत्रण चाहता है, जबकि नोएल टाटा इसका विरोध कर रहे हैं। इस गुटबाज़ी का असर अब टाटा संस की गवर्नेंस पर भी दिखने लगा है।

गौरतलब है कि मेहली मिस्त्री का संबंध शापूरजी पलोनजी ग्रुप (Shapoorji Pallonji Group) से है, जिसके पास टाटा संस में लगभग 18% हिस्सेदारी है।


केंद्र सरकार की दखलअंदाजी

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार को दखल देना पड़ा। गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने हाल ही में नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन (N Chandrasekaran) से मुलाकात की।

बैठक का उद्देश्य था — टाटा ट्रस्ट्स में स्थिरता बहाल करना, ताकि 180 अरब डॉलर के इस समूह की साख पर असर न पड़े।

सरकार ने टाटा नेतृत्व से कहा है कि वे संगठन में समन्वय स्थापित करें और रतन टाटा की स्थापित परंपराओं — पारदर्शिता, अनुशासन और सामाजिक ज़िम्मेदारी — को बनाए रखें।


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टाटा समूह की साख पर असर?

156 साल पुराने टाटा समूह की विरासत भारत की औद्योगिक सफलता की पहचान रही है। 400 से अधिक कंपनियों वाला यह समूह हमेशा से अपने नैतिक मूल्य, पारदर्शिता और जनहितकारी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है।

रतन टाटा ने अपने कार्यकाल में हमेशा कहा था —

“धन कमाना सफलता नहीं है, उसे समाज के कल्याण में लगाना ही सच्ची उपलब्धि है।”

आज यही विचार उनके ट्रस्ट्स के भीतर परख के दौर में है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह विवाद जल्द नहीं सुलझा, तो इसका असर समूह के निवेशकों और संस्थागत छवि पर पड़ सकता है।


क्या सुलझ पाएगा यह विवाद?

टाटा ट्रस्ट्स की ओर से अब तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि आने वाले हफ्तों में बोर्ड मीटिंग के ज़रिए सहमति का रास्ता निकालने की कोशिश की जाएगी।

फिलहाल, जिस दिन रतन टाटा की विरासत को अखबारों ने “मार्गदर्शक प्रकाश” कहा, उसी दिन उनके नाम पर खड़ा ट्रस्ट आंतरिक अंधकार से जूझता दिखा — यही इस पूरे घटनाक्रम की सबसे बड़ी विडंबना है।
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