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संभल में चमत्कार जैसी शिफ्टिंग! 150 टन वजनी दरगाह को सरकाने में जुटे मज़दूर, जानिए क्यों चल रहा है अनोखा ऑपरेशन?

5 दशक पुरानी दरगाह को सड़क चौड़ीकरण के चलते 40 फीट पीछे किया जा रहा शिफ्ट, 15 मजदूर दिन-रात लगा रहे हैं मेहनत, अब तक 2.5 फीट हुई दरगाह की सुरक्षित सरकाई

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संभल में 150 टन की दरगाह को शिफ्ट करने का अनोखा ऑपरेशन – जानिए पूरी कहानी
संभल में दरगाह को सरकाते मजदूर, हाईवे पर आस्था को बचाने की कोशिश

संभल, उत्तर प्रदेश – उत्तर प्रदेश के संभल जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे जानकर हर कोई हैरान है। यहां एक करीब 150 टन वजनी दरगाह को बिना तोड़े धीरे-धीरे शिफ्ट किया जा रहा है। यह दरगाह कोई आम इमारत नहीं, बल्कि लोगों की आस्था और विश्वास का केंद्र रही है।

बिजनौर-आगरा हाईवे पर बनी याकूब शाह अली चिश्ती की यह दरगाह करीब 50 साल पुरानी है। लेकिन अब सड़क चौड़ीकरण के चलते इसे 40 फीट पीछे शिफ्ट किया जा रहा है। खास बात यह है कि इसे तोड़ा नहीं जा रहा, बल्कि पूरे के पूरे ढांचे को सरकाया जा रहा है – वो भी बेहद सावधानी और सम्मान के साथ।

इस चमत्कारिक कार्य को अंजाम दे रहे हैं उत्तराखंड के रूड़की और यूपी के रामपुर व लखीमपुर खीरी से आए 15 श्रमिक, जो पिछले 15 दिनों से दिन-रात दरगाह को सरकाने में जुटे हैं। अब तक इसे 2.5 फीट पीछे किया जा चुका है और अगला लक्ष्य है इसे अभी और 37.5 फीट पीछे ले जाना।


इस काम के लिए 150 जैक, 20 कुंतल एंगल्स, और 200 से ज्यादा लकड़ी के गट्टे उपयोग में लाए जा रहे हैं। श्रमिकों की टीम ने 3 फीट गहरा पक्का फाउंडेशन भी तैयार किया है ताकि दरगाह को बिना नुकसान के उसकी नई जगह पर सुरक्षित खड़ा किया जा सके।

इस अनोखी पहल की ज़िम्मेदारी रूड़की निवासी दिलशाद को दी गई है, जिसे दरगाह कमेटी द्वारा 10 लाख रुपये में ठेका दिया गया है। उनका अनुभव और तकनीक ही इस अभूतपूर्व कार्य को संभव बना रही है।

मजदूर नन्हें का कहना है, “हम लोग इबादतगाह को पूरे आदर और सम्मान के साथ सरका रहे हैं। दरगाह को कोई नुकसान नहीं होने दिया जा रहा है। मशीनों और इंसानी ताकत दोनों का इस्तेमाल बड़ी नजाकत से किया जा रहा है।”

इस कार्य की सबसे बड़ी बात यह है कि इसे न सिर्फ आस्था के सम्मान के साथ किया जा रहा है, बल्कि यह तकनीकी दृष्टिकोण से भी एक दुर्लभ उपलब्धि मानी जा सकती है। आने वाले 15 दिनों में दरगाह को पूरी तरह शिफ्ट कर लिया जाएगा, प्रशासन और दरगाह कमेटी की निगरानी में।

संभल से आ रही यह कहानी केवल सड़क चौड़ीकरण की नहीं, बल्कि सम्मान, विज्ञान और आस्था के अनूठे संगम की भी है।