Politics
Uraban Naxalism पर सख्त कदम: महाराष्ट्र विधानसभा में पास हुआ Special Public Security Bill
मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा – शहरों में युवाओं को गुमराह कर रहे हैं माओवादी, विपक्ष ने बिल की परिभाषाओं को बताया अस्पष्ट और दुरुपयोग की जताई आशंका।

महाराष्ट्र विधानसभा में ‘Special Public Security Bill’ को लेकर राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा पेश किया गया यह सख्त बिल बृहस्पतिवार को वॉयस वोट के ज़रिए पारित कर दिया गया। इस बिल का उद्देश्य स्पष्ट रूप से उन गतिविधियों पर रोक लगाना है जो वामपंथी उग्रवाद (Left Wing Extremism) या इससे जुड़ी विचारधाराओं के ज़रिए राज्य की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देती हैं।
क्या है यह बिल?
Special Public Security Bill का उद्देश्य है –
“ऐसी किसी भी अवैध गतिविधि को रोकना जो वामपंथी उग्रवादी संगठनों या उनके जैसे अन्य संगठनों द्वारा की जाती हैं, और उससे जुड़े विषयों को नियंत्रित करना।”
मुख्यमंत्री फडणवीस ने सदन में यह साफ किया कि यह कानून राजनीतिक आंदोलनों या वैध प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं पर लागू नहीं होगा, लेकिन शहरी क्षेत्रों में बढ़ती ‘Urban Maoism’ की प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए इस बिल की ज़रूरत महसूस हुई है।
उनके अनुसार, “राज्य में माओवादियों की पकड़ कमजोर हो चुकी है, लेकिन अब वे शहरों में युवाओं को मानसिक रूप से प्रभावित कर रहे हैं ताकि वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ खड़े हो जाएं।
विपक्ष का एतराज: “परिभाषाएं अस्पष्ट, दुरुपयोग की आशंका”
हालांकि, विपक्षी दलों ने इस बिल की कुछ धाराओं पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि बिल में उपयोग की गई शब्दावली बहुत ही व्यापक और अस्पष्ट है, जिससे इसकी व्याख्या मनमाने तरीके से की जा सकती है। इस वजह से आशंका जताई जा रही है कि इसका इस्तेमाल सरकार विरोधी आवाज़ों को दबाने के लिए किया जा सकता है।
कांग्रेस और एनसीपी नेताओं ने चेतावनी दी है कि ऐसे कानून संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं और भविष्य में मानवाधिकार के मुद्दे खड़े कर सकते हैं।
‘अर्बन माओवाद’ शब्द पर राजनीतिक बहस
‘Urban Maoism’ शब्द का उपयोग पहली बार नहीं हुआ है, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री ने इसे बेहद ठोस संदर्भ में पेश किया। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक वैचारिक समस्या नहीं, बल्कि राज्य की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनता जा रहा है।
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एक नोटिस ने पलट दी ज़िंदगी बंगाल के युवक को असम की अदालत ने बताया घुसपैठिया
कोचबिहार निवासी उत्तम ब्रजवासी को असम की विदेशी ट्रिब्यूनल से मिला ‘अवैध प्रवासी’ का नोटिस, ममता बनर्जी ने भाजपा पर साधा निशाना

जनवरी की सर्दी में जब देश भर में आम जन जीवन सामान्य रूप से चल रहा था, पश्चिम बंगाल के दिनहाटा निवासी उत्तम ब्रजवासी की ज़िंदगी अचानक एक पत्र से उलट-पलट हो गई। यह कोई आम पत्र नहीं, बल्कि असम की Foreigners Tribunal (विदेशी न्यायाधिकरण) की ओर से भेजा गया नोटिस था, जिसमें उन्हें अवैध प्रवासी” घोषित करते हुए अदालत में पेश होने का आदेश दिया गया था।
नोटिस में कहा गया कि उत्तम बिना वैध दस्तावेजों के 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच असम में घुसे थे, जो विदेशी अधिनियम के तहत अवैध माना जाता है। यह खबर उनके लिए किसी आफत से कम नहीं थी, क्योंकि उत्तम न कभी असम गए और न ही उन्होंने वहां कोई दस्तावेज बनवाया।
राजनीति में घिरा आम नागरिक
इस संवेदनशील मामले ने तभी और तूल पकड़ लिया जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे केंद्र सरकार और असम सरकार पर निशाना साधने का ज़रिया बना लिया। उन्होंने तीखा आरोप लगाया कि —
भाजपा सरकार बंगाल में एनआरसी लागू करने की साजिश कर रही है।
उन्होंने यह भी कहा कि “केंद्र सरकार राजनीतिक प्रतिशोध के तहत निर्दोष लोगों को विदेशी करार देने की चालें चल रही है।” वहीं दूसरी ओर, भाजपा नेताओं ने पलटवार करते हुए कहा कि ममता बनर्जी इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ को बचाना चाहती हैं।
कानूनी दुविधा और व्यक्तिगत संकट
उत्तम ब्रजवासी की मानें तो उन्होंने न तो कभी असम में निवास किया और न ही किसी सरकारी योजना में हिस्सा लिया। अब वे पैसों, दस्तावेजों और मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं। उन्हें असम जाकर पेश होना है, जबकि वे कभी वहां रहे ही नहीं।
यह घटना देशभर में NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) के संभावित विस्तार और इसके मानवाधिकार प्रभाव पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है।
आगे क्या?
ममता सरकार ने ऐसे सभी मामलों की समीक्षा करने और कानूनी सहायता देने की घोषणा की है। हालांकि सवाल ये उठता है कि क्या यह मामला राजनीति की भेंट चढ़े आम नागरिकों के लिए एक चेतावनी है?
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शशि थरूर की आपातकाल पर दो टूक टिप्पणी अवर्णनीय क्रूरता और स्थायी असर छोड़ गया वह दौर
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक लेख में कहा – “आपातकाल ने लोकतंत्र पर गहरा घाव छोड़ा”, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आलोचना से पार्टी में हलचल

कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर एक बार फिर अपनी पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी को लेकर चर्चा में हैं। इस बार उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल (Emergency) को लेकर तीखी आलोचना की है।
थरूर ने एक अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट Project Syndicate पर प्रकाशित लेख में लिखा है कि आपातकाल का दौर अवर्णनीय क्रूरता से भरा था और उसका असर आज भी देश के लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस लेख को मलयालम अखबार दीपिका ने भी प्रमुखता से छापा है।
थरूर की टिप्पणी और कांग्रेस की असहजता
जहां कांग्रेस पार्टी आमतौर पर आपातकाल को “जरूरी निर्णय” के रूप में पेश करने की कोशिश करती है, वहीं थरूर का यह लेख पार्टी की आधिकारिक लाइन से स्पष्ट विरोधाभास में आता है। उन्होंने लिखा कि –
आपातकाल सिर्फ राजनीतिक दमन नहीं था, यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संस्थाओं पर सीधा हमला था। जेलें भर दी गईं, प्रेस पर ताले लग गए और लोगों की आवाज़ें कुचल दी गईं।
थरूर ने यह भी लिखा कि भारत आज भले ही एक समृद्ध और सशक्त लोकतंत्र हो, लेकिन उस दौर की भूलों से सीख लेना अनिवार्य है।
इंदिरा गांधी की नीतियों पर सीधा हमला
थरूर ने इंदिरा गांधी की आलोचना करते हुए लिखा कि “उन्होंने तात्कालिक सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए संविधान की आत्मा को चोट पहुंचाई।” उन्होंने माना कि कांग्रेस ने बाद में इसे “राजनीतिक भूल” कहा, लेकिन देश को जो क्षति हुई, वह आज भी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई है।
यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कांग्रेस लोकसभा चुनावों में हार और अंदरूनी समीक्षाओं से गुजर रही है। थरूर की स्पष्टवादिता एक बार फिर पार्टी के अंदर बहस का विषय बन गई है।
क्या थरूर पार्टी के भीतर एक वैकल्पिक सोच की आवाज़ बन रहे हैं?
शशि थरूर पहले भी कई मुद्दों पर पार्टी से अलग राय रखते आए हैं, चाहे वह विवादास्पद भाषणों, नेतृत्व संरचना या लोकतंत्र के भविष्य को लेकर हो। इस लेख के बाद ये सवाल फिर खड़े हो गए हैं कि क्या वे कांग्रेस के भीतर लोकतांत्रिक बहस को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं या पार्टी लाइन से लगातार हटकर कुछ नया संकेत दे रहे हैं?
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मिज़ोरम में टकराव की राजनीति: चकमा परिषद में राज्यपाल शासन से ज़ोरम सरकार नाराज़
BJP के सत्ता से हटने के बाद ZPM ने किया नेतृत्व का दावा, लेकिन राज्यपाल वीके सिंह ने लगाया चकमा स्वायत्त जिला परिषद पर गवर्नर रूल

मिज़ोरम की राजनीति में एक नया टकराव सामने आया है। राज्य के गवर्नर जनरल (सेवानिवृत्त) वी.के. सिंह द्वारा चकमा स्वायत्त जिला परिषद (Chakma ADC) में गवर्नर रूल लगाए जाने से मुख्यमंत्री लालदुहोमा की अगुवाई वाली ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) सरकार ने तीखी आपत्ति जताई है।
ZPM सरकार का आरोप है कि यह फैसला लोकतांत्रिक परंपराओं का उल्लंघन है और राज्यपाल द्वारा राजनीतिक अस्थिरता के नाम पर जनादेश को दरकिनार किया गया है।
क्या है पूरा मामला?
2023 में गठित चकमा परिषद की कार्यकाल की शुरुआत से ही अस्थिरता बनी रही। अब तक दो बड़े राजनीतिक दल-बदल, दो अविश्वास प्रस्ताव, और हाल ही में BJP नेतृत्व वाली कार्यकारिणी समिति का पतन देखा गया। इसके बाद ZPM ने परिषद में बहुमत का दावा करते हुए नई कार्यकारिणी गठित करने की मांग की थी।
लेकिन राज्यपाल वी.के. सिंह ने “लगातार राजनीतिक अस्थिरता” का हवाला देते हुए ZPM को नेतृत्व सौंपने के बजाय परिषद में Governor’s Rule लागू कर दिया।
ZPM का दावा और गवर्नर की अनदेखी?
मुख्यमंत्री लालदुहोमा के नेतृत्व वाली सरकार ने कुछ दिन पहले ही राज्यपाल को सुझाव दिया था कि परिषद को भंग नहीं किया जाए और बहुमत वाले ZPM को नई कार्यकारिणी गठित करने का अवसर दिया जाए।
लेकिन राज्यपाल के इस कदम ने ZPM को हाशिए पर धकेल दिया, जिससे राज्य सरकार और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति बन गई है।
ZPM नेताओं का कहना है कि यह फैसला “लोकतांत्रिक बहुमत की भावना के खिलाफ है” और राज्यपाल ने बिना विधानसभा की सलाह के फैसला लेकर संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन किया है।
BJP का पतन और ZPM की बढ़त
चकमा परिषद में BJP की पहली कार्यकारिणी समिति पिछले महीने अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए गिरा दी गई थी। इसके बाद ZPM ने बढ़त बनाकर नेतृत्व का दावा किया था, जिसे राज्यपाल द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।
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