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5 बड़ी वजहें क्यों Pawan Kalyan की Hari Hara Veera Mallu दर्शकों को निराश कर गई
Hari Hara Veera Mallu में Pawan Kalyan की मेहनत झलकती है लेकिन कहानी बिखरी नजर आती है

Pawan Kalyan की बहुप्रतीक्षित फिल्म Hari Hara Veera Mallu आखिरकार रिलीज हो गई है, और इस ऐतिहासिक ड्रामा से दर्शकों को काफी उम्मीदें थीं। लंबे समय से बन रही यह फिल्म न केवल एक ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी है बल्कि एक पौराणिक नायक की छवि को भी दिखाने की कोशिश करती है। हालांकि, फिल्म शुरू तो होती है कोहिनूर हीरे की खोज से, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, यह अपने ही भार तले दबती चली जाती है।
दक्षिण भारत के सिनेमा में ‘Power Star’ के नाम से मशहूर डिप्टी सीएम और अभिनेता Pawan Kalyan इस फिल्म में एक रॉबिनहुड जैसे किरदार में नजर आते हैं, जो अमीरों से लूटकर गरीबों की मदद करता है। लेकिन केवल यही नहीं, वह बाघों और भेड़ियों को वश में कर सकता है, घोड़े पर चल सकता है, और वक्त के साथ अपनी जुबान और लहजा भी बदल सकता है। यानी, वो हर वह काम कर सकता है जो किसी सुपरहीरो से अपेक्षित होता है — मगर एक मजबूत स्क्रिप्ट के बिना यह सब अधूरा लगता है।
निर्देशक Krish Jagarlamudi और Jyothi Krisna की यह फिल्म दर्शकों को एक ग्रैंड विजुअल ट्रीट देने का वादा करती है, लेकिन VFX और लेखन की कमजोरी हर फ्रेम में साफ नजर आती है। MM Keeravaani का संगीत भले ही कुछ दृश्यों को भावनात्मक गहराई देता है, लेकिन कहानी की कमजोरी इसे उभार नहीं पाती।
फिल्म की कहानी में एक जगह से दूसरी जगह पर जाने का कोई ठोस आधार नहीं है। एक ओर जहां फिल्म Golconda से दिल्ली तक के सफर में है, वहीं इसका असली मकसद आखिरी तक साफ नहीं हो पाता। बार-बार आने वाले “हाई इलेवेशन सीन्स” दर्शकों को थका देते हैं। एक बार जब Veera Mallu का वीरता भरा रूप दिखा दिया गया, तो हर बार उसे और महान बताने की जरूरत नहीं थी।
फिल्म में Bobby Deol द्वारा निभाया गया औरंगज़ेब का किरदार पूरी तरह से खोखला लगता है। एकदम क्लिच विलेन जैसा। वहीं Nidhhi Agerwal की पंचमी एक कमजोर रोमांटिक ट्रैक में सीमित रह जाती है, जिसे सिर्फ देवदासी के रूप में दिखाया गया और उसमें भी कोई खास भावनात्मक जुड़ाव नहीं बनता।

जहां Vicky Kaushal की ‘Chhaava’ औरंगज़ेब के खिलाफ एक ताकतवर प्रतिरोध की भावना जगाने में सफल रही, वहीं Hari Hara Veera Mallu सिर्फ एक ‘लार्जर दैन लाइफ’ अवतार को सजाने-संवारने में ही रह जाती है।
Pawan Kalyan, जो 2013 में ‘Attarintiki Daredi’ के बाद पहली बार इस फिल्म में पूरी शिद्दत से दिखाई दिए हैं, अपनी ओर से पूरी मेहनत करते हैं। लेकिन फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले उन्हें वो मंच नहीं दे पाते जिस पर वह खरे उतर सकें।
निष्कर्ष:
Hari Hara Veera Mallu एक सुनहरा मौका था Pawan Kalyan को एक मजबूत ऐतिहासिक किरदार में देखने का, लेकिन फिल्म आधे अधूरे दृश्यों, कमजोर कहानी और ओवरडोज़ इमोशन में खो जाती है। संगीत ही एकमात्र चीज़ है जो कभी-कभी राहत देती है, लेकिन कुल मिलाकर यह एक मिस्ड अपॉर्चुनिटी लगती है।
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