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Bihar

बिहार की सियासत में नया मोड़ पहली बार पीएम मोदी और नीतीश कुमार एक ही पोस्टर में पसमांदा सम्मेलन बना चर्चा का केंद्र

पटना में हुआ पसमांदा मिलन समारोह, जेडीयू और बीजेपी की नज़दीकियों के संकेत? वहीं केरल में बिहार के एक मजदूर की Yamaha RX 135 बाइक चोरी की घटना ने भी खींचा ध्यान

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पटना में लगे जेडीयू-बीजेपी पोस्टर में पहली बार एक साथ दिखे पीएम मोदी और सीएम नीतीश, साथ ही प्रवासी मजदूर की चोरी हुई Yamaha बाइक भी चर्चा में
पटना में लगे जेडीयू-बीजेपी पोस्टर में पहली बार एक साथ दिखे पीएम मोदी और सीएम नीतीश, साथ ही प्रवासी मजदूर की चोरी हुई Yamaha बाइक भी चर्चा में

बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेती दिख रही है। 01 जुलाई 2025 की सुबह जब राजधानी पटना में जनता दल यूनाइटेड (JDU) का पोस्टर सामने आया, तो हर कोई चौंक गया—इस बार पोस्टर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तस्वीर थी। यह राजनीतिक घटनाक्रम उस वक्त सामने आया जब बीजेपी द्वारा आयोजित पसमांदा मिलन समारोह सुर्खियों में छाया रहा।

इस विशेष आयोजन में बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने पसमांदा समाज के हितों को केंद्र में रखते हुए कहा कि “वक्फ संपत्ति पर पसमांदा समुदाय का पूरा हक़ है और मोदी सरकार इसे सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।” पसमांदा यानी 90% ओबीसी मुस्लिम वर्ग, जो अब तक वक्फ की संपत्तियों से वंचित रहे। बीजेपी का यह खुला समर्थन इस वर्ग को लेकर उसकी रणनीति का संकेत माना जा रहा है।

वहीं, इस सियासी समागम के बीच राष्ट्रीय लोक जनता दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात ने नई चर्चाओं को जन्म दे दिया। सियासी गलियारों में यह सवाल उठने लगा है—क्या 2025 के अंत तक बिहार में नए गठबंधन की पटकथा लिखी जा रही है?

दूसरी ओर, एक अलग ही किस्म की कहानी केरल से सामने आई है। बिहार से आए एक प्रवासी मज़दूर की पुरानी Yamaha RX 135 मोटरसाइकिल के चोरी होने की खबर ने सोशल मीडिया पर सहानुभूति और गुस्सा दोनों जगा दिए। बाइक को एक स्थानीय व्यक्ति ने ‘टेस्ट राइड’ के बहाने ले जाकर फरार हो गया, लेकिन केरल पुलिस ने महज दो दिनों में आरोपी को एर्नाकुलम से गिरफ्तार कर लिया। आरोपी को लगा था कि बिहार रजिस्टर्ड बाइक को ट्रैक करना मुश्किल होगा, लेकिन तकनीकी निगरानी और त्वरित कार्रवाई ने उसकी योजना पर पानी फेर दिया।

बिहार की राजनीति और आम जनजीवन, दोनों ही आज फिर चर्चा में हैं—एक तरफ सियासत की नई तस्वीरें बन रही हैं, तो दूसरी ओर प्रवासी मज़दूरों की ज़िंदगियों से जुड़ी कहानियां दिल छू रही हैं।

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