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उत्तराखंड में स्कूल तो खुले, लेकिन मौत के साए में पढ़ाई! 942 भवन जर्जर, कई की छत टपक रही है
बारिश के मौसम में खतरे की घंटी: न सुरक्षा दीवार, न मजबूत छत — जर्जर स्कूल भवनों में बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़

उत्तराखंड में गर्मियों की छुट्टियों के बाद स्कूल तो खुल गए, लेकिन जिन इमारतों में बच्चे पढ़ने जा रहे हैं, उनकी हालत देखकर अभिभावकों की सांसें अटकी हुई हैं। प्रदेश के 942 स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं, जिनमें पढ़ाई अब बच्चों के लिए एक खतरे का सबब बन गई है। कहीं छत टपक रही है, तो कहीं दीवारें दरक रही हैं।
शिक्षा महानिदेशक दीप्ति सिंह द्वारा दिए गए निर्देशों के बाद भी कई स्कूल ऐसे हैं जहां सुरक्षा दीवार तक नहीं बनी है, जिससे भूस्खलन का खतरा बना हुआ है, खासकर पहाड़ी इलाकों में।
देहरादून, टिहरी, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जैसे जिलों में सबसे ज्यादा जर्जर भवन पाए गए हैं। देहरादून में 84, टिहरी में 133, और पिथौरागढ़ में 163 स्कूल भवन खस्ताहाल स्थिति में हैं।
स्कूल नहीं, खतरे का अड्डा!
प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष धर्मेंद्र रावत के अनुसार, रायपुर, विकासनगर, चकराता और कालसी जैसे क्षेत्रों के कई स्कूलों की छतों में पानी जमा है और बारिश होते ही वो टपकने लगती हैं। वहीं, जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद थापा का कहना है कि इन हालातों में बच्चे और शिक्षक मूसलाधार बारिश और भूस्खलन के बीच जान हथेली पर रखकर स्कूल जाते हैं।
आंकड़ों में देखिए कहां कितनी खराब स्थिति:
जिला | जर्जर स्कूल भवन |
---|---|
अल्मोड़ा | 135 |
बागेश्वर | 6 |
चमोली | 18 |
चंपावत | 16 |
देहरादून | 84 |
हरिद्वार | 35 |
नैनीताल | 125 |
पौड़ी | 107 |
पिथौरागढ़ | 163 |
रुद्रप्रयाग | 34 |
टिहरी | 133 |
ऊधमसिंह नगर | 55 |
उत्तरकाशी | 12 |
सुधार की अपील, लेकिन बजट की दरकार
माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती के अनुसार, माध्यमिक स्तर पर केवल 19 विद्यालय भवन जर्जर थे, जिनमें से कुछ को ध्वस्त कर नए भवन बनाए जा चुके हैं। लेकिन प्राथमिक और जूनियर स्तर पर हालात और भी चिंताजनक हैं।
शिक्षक संगठनों की मांग है कि जुलाई महीने की छुट्टियां मानसून को ध्यान में रखकर तय की जाएं, ताकि बच्चों और शिक्षकों को इस मौसम में जोखिम से बचाया जा सके।