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उरुमची नरसंहार की 16वीं बरसी: उइगर युवाओं की चीखें आज भी न्याय की मांग कर रही हैं
2009 की वह भयावह रात जब पीपल्स स्क्वायर में जुटे सैकड़ों उइगर युवक कभी लौटकर नहीं आए – आज भी खुला है ज़ुल्म का वो ज़ख्म

5 जुलाई 2009 की वो तारीख उइगर मुस्लिमों के लिए आज भी एक खौफनाक याद बनकर जिन्दा है। उरुमची नरसंहार की 16वीं बरसी पर दुनियाभर में फैले उइगर समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने एक बार फिर आवाज़ बुलंद की है। Justice For All Canada द्वारा साझा की गई इस पोस्ट में उइगर युवाओं की उस शांतिपूर्ण रैली को याद किया गया, जो न्याय की मांग के साथ उरुमची के People’s Square में इकट्ठा हुए थे — लेकिन उनमें से कई कभी घर नहीं लौटे।
इस विरोध-प्रदर्शन के जवाब में जिस तरह की सरकारी कार्रवाई हुई, उसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। राज्य-प्रायोजित दमन और बल प्रयोग ने इस शांतिपूर्ण विरोध को एक भयावह नरसंहार में बदल दिया, जिससे सैकड़ों उइगर नागरिक प्रभावित हुए।
दूसरे और तीसरे स्लाइड्स में दी गई जानकारी के अनुसार, इस नरसंहार ने न केवल कई मासूम जानें लीं, बल्कि उइगर समाज के भविष्य की दिशा को भी बदल कर रख दिया। “यह घटना उस दशक की शुरुआत थी जिसमें हर रोज़ निगरानी, हर पल डर और हर गली में सरकारी कैमरों की मौजूदगी को सामान्य बना दिया गया।” — Justice For All Canada का यह बयान आज की उइगर स्थिति को बेहद प्रभावशाली ढंग से बयान करता है।
‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’, ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ और ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएं पहले ही चीन में उइगरों पर हो रहे अत्याचारों की रिपोर्ट्स जारी कर चुकी हैं। लेकिन 16 साल बीत जाने के बाद भी न्याय की वो उम्मीद आज भी धुंधली है।
चौथे स्लाइड में जिन चेहरों की तस्वीरें दिखाई गई हैं, वे आज सिर्फ यादों में रह गए हैं। यह वे युवक हैं, जो उस दिन प्रदर्शन में शामिल हुए थे। उनके परिवारों ने कभी उन्हें फिर से नहीं देखा। उनके लापता हो जाने की कहानियां आज भी पूर्वी तुर्किस्तान की हर दीवार पर लिखी हैं।
इस नरसंहार के तुरंत बाद न केवल पुलिस और सेना ने विरोधकारियों पर कार्रवाई की, बल्कि Han Chinese समूहों ने भी उइगर नागरिकों पर खुलेआम हमले किए। चौंकाने वाली बात यह थी कि इन हमलों को रोकने के लिए सरकार की ओर से कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई। जैसा कि चौथे स्लाइड में कहा गया है – “Armed mobs of Han men attacked Uyghur civilians in the streets, without the government stopping them.”
यह मसला अब सिर्फ मानवाधिकारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक राजनीति और धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे का भी हिस्सा बन चुका है। कनाडा, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने कई बार इस पर चिंता जताई है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रभावी कदमों की कमी अब भी बनी हुई है।