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एशिया कप 1984 के गुमनाम हीरो सुरिंदर खन्ना: दो मैचों में चमके, करियर अचानक खत्म

जिस खिलाड़ी ने भारत को पहला एशिया कप जिताया, वो 10 वनडे के बाद टीम से बाहर हो गया — जानिए सुरिंदर खन्ना की अनसुनी कहानी

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Asia Cup Hero Surinder Khanna: दो मैचों में चमके, फिर कभी नहीं खेल पाए भारत के लिए
सुरिंदर खन्ना: भारत को पहला एशिया कप जिताने वाले गुमनाम हीरो

एशिया कप 2025 का खुमार, लेकिन क्या आपको याद है पहला हीरो?
एशिया कप 2025 का रोमांच चरम पर है, और भारत एक बार फिर ट्रॉफी का प्रबल दावेदार है। लेकिन जब हम एशिया कप के इतिहास की बात करते हैं, तो 1984 का पहला संस्करण और उसमें चमकने वाला एक सितारा — सुरिंदर खन्ना — आज कहीं खो गया है।

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भारत ने 1984 में शारजाह में हुए पहले एशिया कप में श्रीलंका और पाकिस्तान को हराकर चैंपियन बनने का गौरव पाया था। उस जीत के नायक बने विकेटकीपर-बल्लेबाज़ सुरिंदर खन्ना, जिन्होंने सिर्फ दो मैचों में ऐसा प्रदर्शन किया जो आज भी मिसाल है।

दो मैच, दो मैन ऑफ द मैच, एक मैन ऑफ द सीरीज़
श्रीलंका के खिलाफ पहले मैच में खन्ना ने गुलाम पारकर के साथ ओपनिंग की और नाबाद 51 रन बनाकर भारत को 10 विकेट से जीत दिलाई। अगले ही मैच में पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने 56 रन की पारी के साथ दो स्टंपिंग भी की। दोनों मैचों में उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया और पूरे टूर्नामेंट में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी यानी मैन ऑफ द सीरीज़ बने।

पर यह करियर बस 10 मैचों में सिमट गया
खन्ना का अंतरराष्ट्रीय करियर वेस्टइंडीज के खिलाफ 1979 में शुरू हुआ था और 1984 में पाकिस्तान के खिलाफ खत्म हो गया। 10 वनडे मैचों में उन्होंने 22 की औसत से 176 रन बनाए और चार स्टंपिंग कीं। लेकिन इतने दमदार प्रदर्शन के बावजूद उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले।

घरेलू क्रिकेट में चमक बरकरार रही
दिल्ली की ओर से घरेलू क्रिकेट में उन्होंने 106 प्रथम श्रेणी मैच खेले और 43 की औसत से 5,337 रन बनाए। 1987-88 में हिमाचल प्रदेश के खिलाफ उन्होंने नाबाद 220 रन की पारी खेली, जो उनकी श्रेष्ठ पारी मानी जाती है।

Asia Cup Hero Surinder Khanna: दो मैचों में चमके, फिर कभी नहीं खेल पाए भारत के लिए


राजनीति और चोट ने छीन लिया मौका
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज़ में असफल रहने के बावजूद उन्हें पाकिस्तान दौरे के लिए टीम में रखा गया। पहले वनडे में उन्होंने 31 रन बनाए लेकिन टीम हार गई। अगले मैच से पहले उन्हें हैमस्ट्रिंग इंजरी हो गई और उनकी जगह सैयद किरमानी को टीम में ले लिया गया।

इसी बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और सीरीज़ अधूरी रह गई। इसके बाद सुरिंदर खन्ना कभी भारतीय टीम में वापसी नहीं कर सके।

रिटायरमेंट के बाद कमेंटेटर और कोचिंग में योगदान
क्रिकेट से संन्यास के बाद खन्ना ऑल इंडिया रेडियो के लिए क्रिकेट एक्सपर्ट बने। दिल्ली के पीतमपुरा में उन्होंने एक क्रिकेट अकादमी शुरू की जहां 4 साल से लेकर 35 साल तक के युवा प्रशिक्षण लेते हैं। उन्होंने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) में भी खेल प्रमोशन के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया। उन्होंने फुटबॉल और तीरंदाजी अकादमियों के साथ SAIL ओपन गोल्फ टूर्नामेंट की नींव भी रखी।

एक सितारा जो जल्दी डूब गया, लेकिन यादें अमर हैं
सुरिंदर खन्ना उन खिलाड़ियों में हैं जिनका करियर भले ही लंबा न चला हो, लेकिन जिनकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ती। आज जब हम एशिया कप 2025 की ओर देख रहे हैं, तब यह ज़रूरी है कि हम 1984 के उस नायक को न भूलें, जिसने भारत को पहली बार एशिया का चैंपियन बनाया।

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