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इमरजेंसी सिर्फ इतिहास नहीं चेतावनी है शशि थरूर का तीखा प्रहार संजय गांधी की नीतियों पर
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इमरजेंसी को बताया ‘क्रूरता की मिसाल’, बोले – लोकतंत्र को हल्के में लेने की भूल अब नहीं दोहराई जानी चाहिए

इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय माना जाता है। लेकिन अब जब इस घटना को 50 साल पूरे होने जा रहे हैं, तब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने खुद अपनी पार्टी की उस नीतिगत भूल पर खुलकर सवाल उठाए हैं।
लोकसभा सांसद और लेखक-राजनयिक थरूर, जो अपनी स्वतंत्र और निर्भीक राय के लिए जाने जाते हैं, ने मलयालम अखबार ‘दीपिका’ में प्रकाशित एक लेख में लिखा है – “इमरजेंसी सिर्फ अतीत का अध्याय नहीं, बल्कि एक स्थायी चेतावनी है। अनुशासन और नियंत्रण की आड़ में जबरन थोपे गए फैसले लोकतंत्र को चोट पहुंचाते हैं।”
संजय गांधी, जिनके नेतृत्व में नसबंदी अभियान चलाया गया था, उन पर भी थरूर ने अप्रत्यक्ष हमला किया। उन्होंने लिखा कि “यह अभियान गरीबों के खिलाफ सत्ता का इस्तेमाल था। ग्रामीण भारत में हिंसा, शहरों में जबरन झुग्गी हटाना और आमजन के साथ हुए बर्ताव को किसी भी लोकतांत्रिक समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
थरूर के मुताबिक, लोकतंत्र केवल चुनावों का नाम नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रणाली है, जहां असहमति को कुचला नहीं जाता, बल्कि सुना जाता है। उनका कहना है – “जब आप सत्ता को केंद्रीकृत करते हैं और संविधान की आत्मा की अनदेखी करते हैं, तो आप न केवल लोकतंत्र को खतरे में डालते हैं, बल्कि समाज के विश्वास को भी तोड़ते हैं।”
द वर्डस्मिथ ऑफ कांग्रेस, जैसा कि थरूर को उनके समर्थक कहते हैं, उन्होंने इमरजेंसी को एक ‘बहुमूल्य सबक’ करार दिया और कहा कि – “लोकतंत्र को हमें केवल बचाना ही नहीं, बल्कि हर दिन नया रूप देना चाहिए। इतिहास से सबक लेने का समय अब है, नहीं तो भविष्य में वही त्रासदी फिर से लौट सकती है।”
उनकी इस टिप्पणी ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। जहां एक ओर विपक्ष ने थरूर के साहस की तारीफ की है, वहीं कई कांग्रेस नेता अब तक इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं।
