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Chhoriyan Chali Gaon में रणविजय सिंहा की दमदार वापसी, अब शहर की लड़कियां सीखेंगी गांव की ज़िंदगी!
Zee TV का नया रियलिटी शो ‘छोरियां चली गांव’ लाएगा शहरी महिलाओं को गांव की मिट्टी से जोड़ने की अनोखी पहल, रणविजय निभाएंगे मेंटर और होस्ट की भूमिका

रियलिटी टीवी की दुनिया में अपनी दमदार पहचान बनाने वाले रणविजय सिंहा अब एक नए और बिल्कुल अलग कॉन्सेप्ट के साथ लौट रहे हैं। Zee TV का अपकमिंग शो ‘छोरियां चली गांव’ एक अनोखी रियलिटी जर्नी लेकर आ रहा है, जहां 12 शहरी महिलाएं गांव की ज़िंदगी को करीब से समझेंगी और उसे जिएंगी। इस शो की मेज़बानी करेंगे रणविजय सिंहा, जो ना केवल होस्ट होंगे, बल्कि प्रतिभागियों के मेंटर, गाइड और मोटिवेटर की भूमिका भी निभाएंगे।
“ये सिर्फ एक शो नहीं, ये एक माइंडसेट शिफ्ट है”, ऐसा कहना है ‘रोडीज़’ फेम इस होस्ट का। रणविजय ने बताया कि जैसे ही उन्होंने शो का कॉन्सेप्ट सुना, वह उससे तुरंत जुड़ाव महसूस करने लगे। शहर के ऐशोआराम और गांव की मिट्टी से जुड़े अनुभवों ने उन्हें इस प्रोजेक्ट के लिए परफेक्ट चॉइस बना दिया।
इस शो में हिस्सा लेने वाली महिलाएं लगभग 60 दिनों तक गांव में रहेंगी, जहां उन्हें कोई गैजेट्स, सुविधाएं या शॉर्टकट नहीं मिलेंगे। उन्हें असली गांव की ज़िंदगी जीनी होगी – खेतों में काम करना, खाना बनाना, पानी भरना और बाकी ग्रामीण कार्यों को पूरा करना।

रणविजय कहते हैं, “Hosting this show gives me the chance to witness real change, raw emotion, and untapped resilience. I believe audiences won’t just watch this show—they’ll feel it.”
गांव का अनुभव, जो बदलेगा ज़िंदगी का नजरिया
‘छोरियां चली गांव’ को तीन स्तंभों पर आधारित किया गया है:
- ग्रामीण संघर्ष और अनुकूलन (Rural Survival & Adaptation)
- संस्कृतिक घुलावट और भावनात्मक विकास (Cultural Immersion & Emotional Growth)
- प्रतिस्पर्धा और सामाजिक रणनीति (Competition & Social Strategy)
रणविजय इस शो को सिर्फ एक होस्ट की नज़र से नहीं देख रहे, बल्कि एक ज़मीनी व्यक्ति के तौर पर भी। उन्होंने कहा कि वे खुद गांव में रहना पसंद करेंगे, खेती करना, बास्केटबॉल कोर्ट बनाना और ऑफ-रोडिंग का मजा लेना चाहेंगे।
शो की प्रीमियर डेट अभी सामने नहीं आई है, लेकिन जिस तरह से इसका कॉन्सेप्ट और होस्ट सामने आए हैं, वह दर्शकों में एक अलग ही उत्साह पैदा कर रहा है। यह शो सिर्फ एक एंटरटेनमेंट नहीं बल्कि आत्म-अन्वेषण और जड़ से जुड़ाव की एक यात्रा साबित हो सकती है।