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आर्थिक नीतियों की आवाज़ अब खामोश: अर्थशास्त्री राधिका पांडेय का 46 की उम्र में निधन

लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान जटिलताओं के चलते हुआ निधन, देश के वित्तीय सुधारों में निभाई थी अहम भूमिका

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Radhika Pandey Passes Away at 46 After Liver Transplant Complications | Dainik Diary
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री राधिका पांडेय, जिनकी नीतिगत सोच ने देश के वित्तीय दिशा को नया आयाम दिया

नई दिल्ली। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और सार्वजनिक नीति की जानी-मानी आवाज़ राधिका पांडेय अब हमारे बीच नहीं रहीं। 46 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया, जो कि एक आपातकालीन लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान उत्पन्न जटिलताओं के कारण हुआ। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (NIPFP) में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहीं राधिका का जाना आर्थिक और शैक्षणिक जगत के लिए एक गहरी क्षति है।

‘इंडिया के फाइनेंशियल सिस्टम को समझने वाली सबसे प्रभावशाली आवाज़’ के रूप में पहचानी जाने वाली राधिका पांडेय ने वित्तीय क्षेत्र की जटिल नीतियों को आम जनता के लिए सरल बनाया। उनके कॉलम्स, भाषण और शोध पत्र देश के कई नीतिगत फैसलों की नींव बने।


वित्तीय सुधारों की चुपचाप वास्तुकार रही यह शिक्षिका अपने सहयोगियों और विद्यार्थियों के बीच एक मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत थीं। उन्होंने कई सरकारी समितियों में भाग लिया और भारत के आर्थिक सुधारों को दिशा दी।


लिवर ट्रांसप्लांट के जोखिम और जागरूकता की ज़रूरत

राधिका पांडेय की असामयिक मृत्यु एक और गंभीर सवाल छोड़ गई है – क्या हम लिवर हेल्थ को पर्याप्त प्राथमिकता देते हैं? इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (ILBS), दिल्ली में आपातकालीन लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान उत्पन्न हुई जटिलताएं उनके जीवन का अंत बन गईं। विशेषज्ञों के अनुसार, आपातकालीन लिवर ट्रांसप्लांट्स अक्सर अधिक जोखिमपूर्ण होते हैं, क्योंकि तब मरीज़ की हालत पहले से ही गंभीर होती है।

शोध बताते हैं कि लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान संक्रमण, अंग अस्वीकृति (rejection), और किडनी फेल्योर जैसे गंभीर खतरे रहते हैं। एक प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल Liver Transplantation की रिपोर्ट बताती है कि संक्रमण और ग्राफ्ट रिजेक्शन मृत्यु का सबसे आम कारण बनते हैं, खासकर तब जब सर्जरी आपात स्थिति में की जाती है।


‘राधिका मैम’ – जो छात्रों की प्रेरणा थीं

द इकोनॉमिस्ट जो सिर्फ ग्राफ़ और डेटा में नहीं, बल्कि भावनाओं में भी निपुण थीं। वित्तीय नीति को सुलभ बनाना उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। छात्रों से लेकर नीति निर्माताओं तक, उन्होंने एक पुल की भूमिका निभाई। उनकी अंतिम सांस तक वे ‘ज्ञान बांटने’ के अपने मिशन पर अडिग रहीं।


स्वस्थ जिगर की अनदेखी नहीं चलेगी अब

राधिका पांडेय का जाना एक चेतावनी है कि जिगर संबंधी बीमारियों को गंभीरता से लेना अब ज़रूरी है। समय पर जांच, जीवनशैली में सुधार, और लिवर ट्रांसप्लांट की जानकारी आमजन तक पहुंचाना आज के समय की मांग है। इस दुखद घटना से सीख लेते हुए, अब समाज को लिवर हेल्थ को लेकर जागरूकता फैलाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा।

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