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Crime

पुणे पोर्श हादसा धनबल के आगे न्याय हारा’ मृतकों के पिता बोले नाबालिग बताकर बच निकला अपराधी

जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के फैसले से नाराज परिजनों ने उठाए सवाल, बोले – “3 करोड़ की कार बच्चों को थमाने वाले क्या नाबालिग हैं?”

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Pune Porsche Crash: जुवेनाइल फैसले पर परिजनों का गुस्सा, बोले – ‘न्याय को धनबल ने दबा दिया’
पुणे पोर्श हादसे में मृतकों को इंसाफ की तलाश, परिजनों की आंखों में गुस्सा और बेबसी

पुणे में हुए बहुचर्चित पोर्श एक्सीडेंट केस में नया मोड़ आया है, जब जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने आरोपी 17 वर्षीय लड़के को नाबालिग मानते हुए बतौर किशोर ट्रायल चलाने का निर्णय सुनाया। यह फैसला उन परिवारों के लिए बड़ा झटका है जिन्होंने अपने बच्चों को इस दर्दनाक हादसे में खो दिया।

मामला मई 2024 का है, जब पुणे के कल्याणी नगर क्षेत्र में एक तेज रफ्तार पोर्श कार ने दो आईटी इंजीनियरों — अनिश अवस्थी और अश्विनी कोष्टा — को कुचल दिया था। आरोपी लड़का उस समय कथित रूप से नशे की हालत में था।

हालांकि, आरोपी की गिरफ्तारी के कुछ घंटों बाद ही उसे जमानत दे दी गई थी। जमानत की शर्तें भी बेहद हल्की थीं — 300 शब्दों का निबंध लिखना, शराब से दूर रहना और ट्रैफिक नियमों की जानकारी लेना। इस पर देशभर में आक्रोश भड़क उठा।

“ये कैसा कानून जो अमीरों को बचाता है?”
पीड़ितों के परिजनों का आरोप है कि न्याय प्रक्रिया पर धनबल और राजनीतिक प्रभाव हावी रहा। अनिश अवस्थी के पिता ओम प्रकाश अवस्थी ने मीडिया से कहा, “जिसे 3 करोड़ की कार दी जा रही है, उसे कैसे नाबालिग माना जा सकता है?” उन्होंने कहा कि शुरुआत से ही यह साफ था कि फैसला किस दिशा में जाएगा।

अश्विनी कोष्टा के पिता सुरेश कोष्टा ने बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिन सदस्यों को सरकार ने हटाया था, उनकी जगह महीनों तक कोई नियुक्ति नहीं हुई, और अब अचानक फैसला आ गया।

Pune Porsche Crash: जुवेनाइल फैसले पर परिजनों का गुस्सा, बोले – ‘न्याय को धनबल ने दबा दिया’



सबूत से छेड़छाड़ की भी कोशिश
पुलिस के अनुसार, घटना के तुरंत बाद आरोपी और उसके परिवार ने ब्लड सैंपल बदलने की कोशिश की थी, लेकिन डॉक्टरों के सतर्क रहने से ऐसा संभव नहीं हो पाया। पुणे पुलिस ने आरोपी को बालिग के तौर पर ट्रायल करने की मांग की थी, जिसे जुवेनाइल बोर्ड ने खारिज कर दिया।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिया बेल
25 जून 2024 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरोपी की रिहाई का आदेश दिया, यह कहते हुए कि किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन किया गया था। अदालत ने कहा कि जब कोई नाबालिग है, तो उसके साथ नियमों के अनुसार व्यवहार होना चाहिए, चाहे अपराध कितना भी गंभीर क्यों न हो।

समाज में उठे सवाल
इस मामले ने पूरे देश में किशोर न्याय अधिनियम पर बहस छेड़ दी है। क्या कानून सबके लिए बराबर है? क्या अमीरों के बच्चों के लिए नियम अलग हैं? क्या एक नाबालिग, जो शराब के नशे में कार चला रहा था, केवल उम्र के आधार पर छूट का हकदार है?

अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में क्या कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाती है, या यह मामला यहीं खत्म मान लिया जाएगा।

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