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देव आनंद की फिल्मों से लेकर भोजपुरी की पहली आवाज तक नजीर हुसैन की कहानी जो हर दिल को छू जाएगी

रेलवे फायरमैन से लेकर भोजपुरी सिनेमा के ‘पितामह’ तक का सफर तय करने वाले नजीर हुसैन ने दी थी पहली भोजपुरी फिल्म कभी मलेशिया की जेल भी देखी थी

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देव आनंद के साथ फिल्मों से लेकर भोजपुरी सिनेमा के निर्माण तक – जानिए नजीर हुसैन की प्रेरणादायक कहानी
भोजपुरी सिनेमा के जनक नजीर हुसैन देव आनंद के करीबी संघर्षों से भरा जीवन और ऐतिहासिक योगदान

भोजपुरी सिनेमा को आज जो पहचान मिली है, उसकी नींव जिस शख्स ने रखी, वो नाम है नजीर हुसैन। एक ऐसा अभिनेता जो एक समय देव आनंद की लगभग हर फिल्म का हिस्सा हुआ करता था, और बाद में भोजपुरी सिनेमा को जन्म देकर उसे नई दिशा देने वाला बन गया। आज पवन सिंह, खेसारीलाल यादव और दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ जैसे कलाकारों की बदौलत यह सिनेमा लोकप्रिय है, लेकिन इसकी जड़ें नजीर हुसैन जैसे कलाकार की मेहनत और सोच में छिपी हैं।

दो बीघा जमीन और देवदास जैसे क्लासिक फिल्मों के अभिनेता नजीर हुसैन का जन्म 15 मई 1922 को हुआ था। रेलवे में गार्ड रहे पिता की नौकरी की वजह से उनका परिवार लखनऊ में बसा। नजीर ने अपने करियर की शुरुआत एक रेलवे फायरमैन के रूप में की थी, लेकिन किस्मत उन्हें फिल्मों तक ले जाने वाली थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश आर्मी जॉइन की और उनकी पोस्टिंग मलेशिया और सिंगापुर में हुई, जहां उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी।

देव आनंद के साथ फिल्मों से लेकर भोजपुरी सिनेमा के निर्माण तक – जानिए नजीर हुसैन की प्रेरणादायक कहानी


भारत लौटने के बाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर उन्होंने थिएटर की राह पकड़ी। कोलकाता में एक थिएटर आर्टिस्ट के रूप में काम करते हुए उनकी मुलाकात हुई फिल्म निर्देशक बिमल रॉय से – और यहीं से उनके सिनेमाई सफर की असली शुरुआत हुई। बिमल रॉय के सहायक के रूप में काम करते हुए उन्होंने स्क्रिप्ट लेखन में हाथ बंटाया और बाद में बतौर कैरेक्टर आर्टिस्ट कई फिल्मों में अभिनय किया। ‘मुनिमजीनया दौर”देवदास – हर फिल्म में उनकी उपस्थिति ने कहानी को गहराई दी।

देव आनंद के करीबी कलाकार माने जाने वाले नजीर, लगभग हर फिल्म में नजर आते थे। मगर उनकी असली क्रांति तब आई जब उन्होंने भोजपुरी सिनेमा की ओर रुख किया। उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से मुलाकात कर भोजपुरी सिनेमा को मंच देने की बात की और 1963 में गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो नामक पहली भोजपुरी फिल्म बनाई, जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया और स्क्रिप्ट भी लिखी।

यह फिल्म मील का पत्थर साबित हुई। इसके बाद उन्होंने ‘हमार संसार’, ‘बलम परदेसिया’ जैसी फिल्मों के जरिए भोजपुरी भाषा को बड़े पर्दे की गरिमा दी। यही वजह है कि उन्हें भोजपुरी सिनेमा का पितामह कहा जाता है।

आज जब भोजपुरी कलाकार रश्मि देसाई, रवि किशन और अक्षरा सिंह जैसे नाम टीवी और बॉलीवुड में छा चुके हैं, तब नजीर हुसैन की वह पहली ईंट याद आती है, जिसने इस इमारत को खड़ा करने की शुरुआत की थी। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि संघर्षों के बीच भी अगर सपना हो, तो वह सिनेमा का इतिहास बदल सकता है।

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