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नसीरुद्दीन शाह का दिलजीत के समर्थन पर बवाल, अशोक पंडित ने कहा – ‘भरे हुए हैं हताशा और बेचैनी से’
‘सरदार जी 3’ विवाद में दिलजीत दोसांझ के समर्थन में उतरे नसीरुद्दीन शाह, पर अब खुद हो गए निशाने पर। अशोक पंडित बोले – ‘ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, देशभक्ति का सवाल है।’

पंजाबी फिल्म सरदार जी 3 की रिलीज़ के बाद शुरू हुआ विवाद अब बॉलीवुड के गलियारों तक पहुंच गया है। मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के दिलजीत दोसांझ के समर्थन में आए बयान ने आग में घी डाल दिया है। हालांकि नसीर साहब ने बाद में अपनी फेसबुक पोस्ट डिलीट कर दी, लेकिन उससे पहले उनके शब्दों ने एक नई बहस को जन्म दे दिया।
नसीरुद्दीन शाह ने अपने पोस्ट में लिखा था, “मैं दिलजीत के साथ पूरी तरह खड़ा हूं। ‘जुमला पार्टी’ की डर्टी ट्रिक्स टीम बस मौका तलाश रही थी, अब उन्हें मिल गया है। फिल्म में कास्टिंग की जिम्मेदारी दिलजीत की नहीं, डायरेक्टर की थी। लेकिन दिलजीत एक जाना-पहचाना चेहरा है, इसलिए वही निशाने पर है।”
अशोक पंडित, जो IFTDA (Indian Film & Television Director’s Association) के अध्यक्ष हैं और FWICE से भी जुड़े हुए हैं, ने इस बयान को “हताशा और बेचैनी से भरा” बताया। उन्होंने ANI से बातचीत में कहा, “नसीरुद्दीन शाह जैसे पढ़े-लिखे, सीनियर और वर्सेटाइल एक्टर जब हमें ‘गुंडा’ कहते हैं, तो उनकी मानसिक स्थिति पर सवाल उठते हैं।”
पंडित ने आगे कहा, “अगर दिलजीत को पाकिस्तानी कलाकार के साथ काम करने से परहेज़ था, तो वे मना कर सकते थे। यह महज फिल्म नहीं, देश की भावनाओं का मामला है। पाकिस्तान ने पिछले 40 सालों में हमारे देश को लगातार चोट पहुंचाई है – URI, पुलवामा, 26/11 और अब पहलगाम हमला – ये सब हमारी यादों में जिंदा हैं।”
FWICE ने हाल ही में सरदार जी 3 में पाकिस्तानी एक्ट्रेस हनिया आमिर के साथ काम करने के लिए दिलजीत पर “नॉन-कोऑपरेशन डाइरेक्टिव” भी जारी किया है। संगठन ने यह भी कहा कि दिलजीत ने सैनिकों की कुर्बानी का अपमान किया है और राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।
इस बीच, दिलजीत दोसांझ ने BBC Asian Network को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “फिल्म की शूटिंग फरवरी में हुई थी, तब हालात ठीक थे। अब जो घटनाएं हुईं, वो हमारे कंट्रोल में नहीं हैं। जब हम जानते थे कि भारत में फिल्म रिलीज नहीं हो पाएगी, तब ओवरसीज रिलीज़ ही एकमात्र विकल्प बचा था। प्रोड्यूसर नुकसान में हैं, और मैं उनके साथ खड़ा हूं।”
यह मामला सिर्फ एक फिल्म तक सीमित नहीं रह गया है। यह बहस अब फिल्म इंडस्ट्री में अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम देशहित के सवाल में बदल चुकी है।