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आख़िर कैसे गिरा लाल आतंक का सबसे बड़ा साया? मदवी हिड़मा के खात्मे ने बदल दी माओवादी युद्ध की दिशा

ग्रेहाउंड्स के सटीक ऑपरेशन में ढेर हुआ CPI (Maoist) का सबसे खतरनाक कमांडर मदवी हिड़मा — जानिए कैसे एक गांव का लड़का रेड टेरर का सबसे घातक दिमाग बना और उसके अंत का क्या मतलब है

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Madvi Hidma Encounter: लाल आतंक के मास्टरमाइंड का खात्मा, क्या बदल जाएगी माओवादी लड़ाई? | Dainik Diary
लाल आतंक का सबसे खतरनाक चेहरा मदवी हिड़मा आंध्र प्रदेश के मारेदुमिल्ली जंगलों में एनकाउंटर में ढेर

भारत में लाल आतंक (Red Terror) के खिलाफ जारी लड़ाई में मंगलवार की सुबह इतिहास बन गई। आंध्र प्रदेश के मारेदुमिल्ली के घने जंगलों में हुए एक बेहद कठिन और खतरनाक एनकाउंटर में सुरक्षा बलों ने उस नाम का अंत कर दिया जिसे दशकों तक पकड़ना असंभव माना जाता था—मदवी हिड़मा

कई राज्यों की पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसियों के लिए हिड़मा एक परछाईं की तरह था। न कोई हालिया तस्वीर, न कोई भरोसेमंद सुराग। सिर्फ एक नाम — और उस नाम के साथ जुड़ी थीं देश की सबसे भीषण माओवादी हिंसाओं की दास्तानें।

इस एनकाउंटर में पाँच अन्य माओवादी भी ढेर हुए, जिनमें उसकी पत्नी राजे भी शामिल थी। ऑपरेशन को अंजाम दिया आंध्र प्रदेश की स्पेशल फोर्स Greyhounds ने।
आंध्र प्रदेश के DGP हर्ष कुमार गुप्ता ने NDTV से कहा—
“यह देश की एंटी-माओवादी मुहिम में एक ऐतिहासिक विजय है। हिड़मा का मारा जाना एक टर्निंग पॉइंट है।”


एक साधारण गांव का लड़का कैसे बना सबसे खौफनाक माओवादी कमांडर?

मदवी हिड़मा का जन्म 1981 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के पूवार्टी गांव में हुआ। गांव में विकास नाम की कोई चीज़ नहीं थी—न सड़कें, न शिक्षा, न रोज़गार। इसी उपेक्षा ने उसे उस रास्ते की ओर धकेला जहां से वह कभी वापस नहीं लौटा।

बचपन में उसने देखा कि गांव में तालाब बनाने का काम कोई सरकारी विभाग नहीं, बल्कि माओवादी कर रहे थे। कहा जाता है, इसी से वह “जनता के लिए लड़ने” का भ्रम पाल बैठा।

कक्षा 10 के बाद उसने माओवादियों में शामिल होने का निर्णय ले लिया। उसके शुरुआती मार्गदर्शक रहे रामेश पुडियामी उर्फ बदरन्ना—एक सरेंडर कर चुका माओवादी जो बताता है कि हिड़मा में शुरू से ही “अनुशासन और नेतृत्व की भूख” थी।

दो साल के भीतर वह सिर्फ एक सामान्य सदस्य से प्लाटून कमांडर बन गया।


बस्तर का पहला बड़ा आदिवासी चेहरा, और माओवादी संगठन का ‘राइजिंग स्टार’

हिड़मा महज कुछ सालों में CPI (Maoist) की सेना PLGA में बटालियन कमांडर बन गया।
जल्द ही वह संगठन की सर्वोच्च निर्णायक इकाई सेंट्रल कमेटी में शामिल होने वाला सबसे युवा आदिवासी सदस्य बना।

जंगल युद्ध (Jungle Warfare) में उसकी पकड़, कड़े ट्रेनिंग के तरीके, और स्थानीय नेटवर्क ने उसे संगठन का सबसे घातक दिमाग बना दिया।

पूर्व माओवादी और अब जिला रिजर्व गार्ड की सदस्य सुंदरी बताती हैं—
“हिड़मा हर दिन सुबह 4 बजे उठता था। अख़बार पढ़ता था, पूरी बटालियन को कठिन फिजिकल ट्रेनिंग कराता था। वह खुद फ्रंट से लीड करता था।”

हिड़मा शराब, तंबाकू या नशे से दूर रहता था।
लेकिन उसे मांस और चाय बेहद पसंद थी।


लाल आतंक का सबसे डरावना मास्टरमाइंड — जिसकी सुरक्षा DGP से भी ज्यादा

हिड़मा ने जिन 26 बड़े माओवादी हमलों की साजिश रची, उनमें शामिल हैं—

  • 2010 दंतेवाड़ा नरसंहार (76 जवान शहीद)
  • 2013 झीरम घाटी हमला (27 राजनेता और ड्राइवर मारे गए)
  • 2021 सुकमा-बीजापुर एम्बुश (22 जवान शहीद)

उसकी सुरक्षा इतनी मजबूत थी कि उसके आस-पास हमेशा 3 लेयर का सिक्योरिटी रिंग होता था।
गांवों में जाने से बचता था और उसके इन्फॉर्मर सुरक्षा बलों की हर मूवमेंट पर नजर रखते थे।
उसके सिर पर 50 लाख रुपये का इनाम था।

Naxal

अंत कैसे हुआ? ऑपरेशन की कहानी

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के त्रि-जंक्शन क्षेत्र में महीनों से हिड़मा की मूवमेंट पर नजर थी।
धीरे-धीरे उसके करीबियों के सरेंडर और संगठन की कमजोर होती ताकत से उसकी सुरक्षा ढीली पड़ रही थी।

मंगलवार सुबह Greyhounds की टीम को मारेदुमिल्ली के जंगलों में उसकी मौजूदगी का पुख्ता इनपुट मिला।
फिर हुआ वो जो दशकों से नहीं हो पाया था—घने जंगलों में एक सीधे मुकाबले में हिड़मा और उसके 5 साथी मार गिराए गए।

DGP ने कहा—
“हमने CPI (Maoist) के सबसे घातक सैन्य विंग का सिर काट दिया है। यह लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ है।”


इसका मतलब क्या है? सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी राहत

भारत में माओवादी हिंसा पिछले 7–8 वर्षों में लगातार कम हुई है।
कई बड़े कमांडरों ने सरेंडर किया, कई ऑपरेशंस हुए, और रेड कॉरिडोर तेज़ी से सिकुड़ता गया।

हिड़मा के मरने से—

✅ माओवादियों की सामरिक ताकत कमजोर होगी

✅ PLGA की सबसे प्रशिक्षित बटालियन अब बिना नेतृत्व के है

✅ युवा आदिवासियों को संगठन में खींचने वाला सबसे प्रभावी चेहरा खत्म

✅ सुरक्षा बलों को अब खुलकर बड़े अभियान चलाने में आसानी

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में माओवादी गतिविधियाँ 40% तक घट चुकी हैं।
हिड़मा का अंत इस ग्राफ को और नीचे धकेल सकता है।

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