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लद्दाख में भड़के युवाओं के प्रदर्शन जानिए क्यों उबल रहा है गुस्सा और क्या हैं उनकी चार बड़ी मांगें
लद्दाख की सड़कों पर उतरे युवा अब राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची और नौकरी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं
लद्दाख, जिसे साल 2019 में जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था, एक बार फिर चर्चा में है। इस बार कारण है वहां के युवाओं का गुस्सा और लगातार जारी आंदोलन। लेह की सड़कों पर हाल ही में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिला, जिसमें स्थानीय संगठनों ने सरकार से अपनी चार प्रमुख मांगों को पूरा करने की जोरदार अपील की।
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आंदोलन की जड़ें
लद्दाख की यह बेचैनी नई नहीं है। साल 2024 से यह आंदोलन लगातार जोर पकड़ रहा है। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) जैसे संगठन पिछले चार साल से केंद्र सरकार से संवाद कर रहे हैं। लेकिन जब केंद्र ने अगली वार्ता की तारीख 6 अक्टूबर तय की, तो LAB ने इसे “थोपे गए फैसले” करार दिया और प्रदर्शन तेज कर दिए।
प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जो लंबे समय से इस आंदोलन का चेहरा बने हुए हैं, भी इस विरोध का हिस्सा रहे। उन्होंने शांतिपूर्ण आंदोलन की वकालत की, लेकिन हालात बिगड़ने पर अपना अनशन खत्म कर दिया और हिंसा की निंदा की।
युवाओं की मुख्य मांगें
लद्दाख के लोग एक चार सूत्रीय मांग को लेकर एकजुट हैं:
- राज्य का दर्जा (Statehood) – ताकि स्थानीय लोगों को स्वशासन और सुरक्षा मिल सके।
- छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के तहत लद्दाख को शामिल करना – ताकि जनजातीय और सांस्कृतिक पहचान को संवैधानिक सुरक्षा मिल सके।

अलग लोक सेवा आयोग (PSC) – जिससे लद्दाख के युवाओं को नौकरी के अवसर मिलें और बेरोजगारी कम हो।- दो संसदीय सीटें – फिलहाल लद्दाख के पास केवल एक सीट है, जिससे केंद्र में उसकी आवाज़ कमजोर मानी जाती है।
छठी अनुसूची का मुद्दा
छठी अनुसूची, भारतीय संविधान का वह प्रावधान है जो असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा जैसे जनजातीय इलाकों को विशेष अधिकार देता है। इसमें स्थानीय परिषदों को जमीन, संसाधनों और सांस्कृतिक परंपराओं पर कानून बनाने का अधिकार होता है। लद्दाख के लोग भी चाहते हैं कि उन्हें यह अधिकार मिले ताकि उनकी पहचान और पर्यावरण सुरक्षित रह सके।
बेरोजगारी से नाराज़ युवा
एक हालिया सरकारी रिपोर्ट ने लद्दाख के युवाओं की स्थिति को और स्पष्ट कर दिया। रिपोर्ट के अनुसार, लद्दाख में 26.5% स्नातक बेरोजगार हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 13.4% है। यह आंकड़ा युवाओं की नाराज़गी को और भड़काता है। सरकार ने 95% नौकरी आरक्षण का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उसकी गति बेहद धीमी रही।
बढ़ती असंतोष की लहर
चेयरिंग दोरजे जैसे LAB नेताओं ने चेतावनी दी है कि अगर केंद्र सरकार जल्द समाधान नहीं निकालेगी तो हालात काबू से बाहर हो सकते हैं। वहीं, KDA नेता सजाद कारगिली ने सोशल मीडिया पर लिखा, “लद्दाख, जो कभी शांत इलाका माना जाता था, अब असुरक्षा और असंतोष से जकड़ा हुआ है। सरकार को तुरंत संवाद बहाल करना चाहिए और राज्य का दर्जा एवं छठी अनुसूची की मांग पूरी करनी चाहिए।”
बौद्ध-मुस्लिम एकजुटता
गौर करने वाली बात यह है कि लद्दाख के आंदोलन में बौद्ध और मुस्लिम दोनों समुदाय साथ खड़े हैं। यह एकजुटता दिखाती है कि यह सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि क्षेत्र की पहचान और भविष्य से जुड़ा मुद्दा है।
आगे क्या?
सरकार ने साफ किया है कि राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची जैसे मुद्दों पर फैसला आसान नहीं होगा। लेकिन लगातार बढ़ता असंतोष और युवाओं की नाराज़गी संकेत देती है कि समाधान ढूंढना बेहद जरूरी है। अगर संवाद और सहमति से रास्ता नहीं निकला तो लद्दाख, जो अब तक देश का सबसे शांत इलाका माना जाता था, आने वाले दिनों में और उथल-पुथल का गवाह बन सकता है।