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भारत की बुलेट ट्रेन अटकी चीन में! दुनिया की सबसे बड़ी टनल मशीन बंदरगाह पर फंसी… कब आएगी?
मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल प्रोजेक्ट के लिए जर्मन कंपनी की विशाल टनल बोरिंग मशीनें चीनी पोर्ट पर अटकीं, 1.08 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट की डेडलाइन पर मंडराया संकट।

भारत का सपना — बुलेट ट्रेन — फिलहाल चीन में फंसा पड़ा है! मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर के लिए तीन विशाल टनल बोरिंग मशीनें (TBMs) चीन के बंदरगाह पर अटकी हुई हैं। इन मशीनों के बिना प्रोजेक्ट का सबसे जटिल हिस्सा — अंडरसी रेल टनल — ठप पड़ सकता है।
जर्मन कंपनी Herrenknecht द्वारा ग्वांगझू में बनाई गई ये TBMs मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC) से शिलफाटा के बीच 21 किलोमीटर की अंडरग्राउंड टनल बनाने के लिए बेहद जरूरी हैं। इनमें से दो मशीनें अक्टूबर 2024 तक पहुंचनी थीं, जबकि तीसरी पहले ही भारत पहुंच जानी चाहिए थी।
लेकिन चीनी पोर्ट अथॉरिटी की तरफ से अब तक कोई क्लीयरेंस नहीं मिला है। रेलवे मंत्रालय ने ये मामला विदेश मंत्रालय तक पहुंचा दिया है। एक सीनियर अधिकारी ने माना कि अगर जल्द हल नहीं निकला तो प्रोजेक्ट पर बड़ा असर पड़ेगा — खासकर ठाणे क्रीक के नीचे बनने वाले भारत के पहले अंडरसी रेल टनल पर।
गैलवान क्लैश के बाद बढ़ी सख्ती
2020 के गैलवान वैली संघर्ष के बाद भारत ने चीनी कंपनियों और सामानों पर कड़ा रुख अपना लिया था। मुंबई मोनोरेल से लेकर मेग्नेटिक महाराष्ट्र जैसी बड़ी योजनाओं से चीन की कंपनियां बाहर कर दी गईं। मुंबई मेट्रो और कोस्टल रोड के लिए भी पहले चीनी मशीनें आती थीं, लेकिन अब कई टनल प्रोजेक्ट्स Herrenknecht के तमिलनाडु प्लांट से ही मशीनें मंगवा रहे हैं।
मगर बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए जो TBMs चीन में फंसी हैं, वो आम टनल मशीनें नहीं हैं। इनमें से एक तो अब तक की सबसे बड़ी भारतीय टनल बोरिंग मशीन है — 13.56 मीटर डायमीटर की कटर हेड के साथ। साधारण मेट्रो TBMs आमतौर पर 6.7 मीटर से छोटी होती हैं।
ज़मीन के नीचे 114 मीटर तक खुदाई
Afcons Infrastructure Ltd को करीब 6,397 करोड़ रुपये का ठेका मिला है। कंपनी बिना मशीनों के भी तैयारी में जुटी है। BKC, विक्रोली और सवली में तीन वर्टिकल शाफ्ट बनाए जा रहे हैं, जिनसे ये TBMs लॉन्च और रिकवर होंगी। कुछ जगहों पर टनल की गहराई 114 मीटर तक होगी — मतलब जमीन के नीचे पूरा पहाड़ और क्रीक पार करना होगा।
क्या बुलेट ट्रेन की रफ्तार रुकेगी?
National High-Speed Rail Corporation Ltd (NHSRCL) के अधिकारी फिलहाल टाइमलाइन में कोई बदलाव मानने को तैयार नहीं हैं। लेकिन अंदरखाने सभी जानते हैं कि अगर चीन में अटकी मशीनें जल्दी नहीं पहुंचीं, तो दुनिया की सबसे तेज ट्रेन को भारत में दौड़ने में और देर लग सकती है।
इस समय NHSRCL, Herrenknecht, Afcons और मंत्रालयों के बीच हाई-लेवल बातचीत जारी है। अफकॉन्स ने भी इस मुद्दे पर आधिकारिक बयान देने से इनकार कर दिया है।
एक सीनियर अधिकारी ने कहा — “मशीनों के साथ कई जरूरी पार्ट्स भी फंसे हैं। हर दिन की देरी प्रोजेक्ट कॉस्ट और डेडलाइन दोनों पर असर डाल रही है।”
अब देखना यह होगा कि डिप्लोमेसी और मिनिस्ट्री मिलकर इस ‘चाइनीज़ वॉल’ को कितनी जल्दी पार कर पाते हैं!
