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दिल्ली की गर्मी से बचने पहाड़ों पर टूट पड़ा सैलाब! मसूरी-लैंडौर में जाम, कट रहे पेड़, पर्यावरण पर संकट
2024 में 20 लाख से ज्यादा सैलानी पहुंचे लैंडौर-मसूरी, बढ़ती भीड़ से ट्रैफिक जाम और अव्यवस्थित निर्माण से स्थानीय परेशान, प्रशासन ने कारों पर डेली लिमिट लगाई

दिल्ली और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में पड़ रही भीषण गर्मी ने लोगों को पहाड़ों की ठंडी हवा की ओर खींच लिया है। इसी का नतीजा है कि इस साल मसूरी और लैंडौर जैसे छोटे पहाड़ी कस्बों में पर्यटकों का सैलाब उमड़ पड़ा है। कभी शांति और प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाने जाने वाले लैंडौर की गलियों में अब कारों की लंबी कतारें, हॉर्न की आवाज़ और धुएं की दुर्गंध फैली हुई है।
लैंडौर छावनी बोर्ड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अंकिता सिंह के अनुसार, महामारी के दौरान सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने इस जगह को खूब प्रमोट किया। इसके बाद से यहाँ पर्यटकों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। हाल ही में एक 62 वर्षीय बुजुर्ग ने जाम में फँसने के कारण अस्पताल पहुँचने से पहले ही दम तोड़ दिया, जिससे लोगों में दहशत फैल गई।

2024 में लैंडौर और मसूरी में 20 लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचे, जबकि 2023 में यह संख्या लगभग 14.7 लाख थी। बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने कारों की दैनिक एंट्री की सीमा 200 तक तय कर दी है। आने वाले महीनों में ऑनलाइन परमिट सिस्टम भी शुरू किया जाएगा ताकि जाम की समस्या पर लगाम लगाई जा सके।
पर्यावरणविदों और शोधकर्ताओं ने चेताया है कि बढ़ती भीड़ और बेतरतीब निर्माण कार्यों से पहाड़ी इलाकों का तापमान भी लगातार बढ़ रहा है। सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च के निदेशक विशाल सिंह के मुताबिक, नैनिताल, मसूरी और मुनस्यारी जैसे हिल स्टेशन अब पहले से कहीं ज्यादा गर्म हो गए हैं। इसके चलते लैंडौर जैसे गांवों में पंखों और एसी की बिक्री बढ़ी है।
स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि पहले यहाँ पंखों की कोई जरूरत नहीं पड़ती थी, लेकिन अब मौसम की गर्मी ने स्थिति बदल दी है। मशहूर प्रकाश स्टोर्स के मालिक अनिल प्रकाश बताते हैं कि मौसम में हर साल बदलाव साफ महसूस किया जा सकता है।
भारी भीड़ और गर्मी ने कामगारों के जीवन को भी बदल दिया है। मसूरी के गाइड नरेश चौहान बताते हैं कि मैदानों में जितनी गर्मी पड़ेगी, उनका धंधा उतना ही अच्छा चलेगा। उन्होंने पिछले साल तक हर महीने 20 से 25 हजार रुपये कमाए। वहीं कुछ छोटे व्यापारी जैसे भुने चने और फल बेचने वाले अब भीड़ के बावजूद कमाई न होने से परेशान हैं क्योंकि लोग अपनी एसी कारों में ही बैठे रहते हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि पर्यटन ने रोजगार तो दिया है लेकिन इसके साथ पर्यावरण को भारी नुकसान भी हो रहा है। पेड़ काटकर नए होटल और कैफे बनाए जा रहे हैं। सेवानिवृत्त मर्चेंट नेवी कप्तान जेपी सिंह कहते हैं, “लैंडौर अब पहले जैसा नहीं रहा, पेड़ कट गए, शांति गायब हो गई।”
प्रशासन की सख्ती और पर्यटकों की लापरवाही के बीच पहाड़ों की खूबसूरती कितने दिन बचेगी, यह देखना बाकी है। दैनिक डायरी आपसे अपील करता है कि पहाड़ों में घूमते वक्त सफाई और नियमों का विशेष ध्यान रखें। तभी अगली पीढ़ी भी इन्हीं सुंदर नजारों का आनंद ले पाएगी।