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गुरु पूर्णिमा पर अचानक दिल्ली पहुंचे एकनाथ शिंदे अमित शाह से मुलाकात के पीछे क्या है असली मंशा
राजनीतिक गर्मी के बीच शिवसेना प्रमुख का दिल्ली दौरा, ठाकरे बंधुओं की नज़दीकी और भाजपा की पकड़ के बीच मंथन की तैयारी या ‘डैमेज कंट्रोल’?

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज़ हो गई है। शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुरु पूर्णिमा के दिन अचानक दिल्ली पहुंचे, जिससे राजनीतिक गलियारों में सवाल उठने लगे हैं—क्या यह दौरा केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है या फिर सत्ता संतुलन को बचाने की एक रणनीतिक चाल?
सूत्रों के अनुसार, शिंदे की इस यात्रा का उद्देश्य केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात था। यह मुलाकात ऐसे समय में हो रही है जब महाराष्ट्र की राजनीति में दो अहम घटनाएं चर्चा का विषय बनी हुई हैं—ठाकरे बंधुओं (उद्धव और राज ठाकरे) की बढ़ती निकटता और भाजपा की महाराष्ट्र में सख्त होती पकड़।
‘धर्मवीर’ से लेकर दिल्ली तक – एकनाथ शिंदे की विरासत की तलाश?
2022 की मराठी फिल्म धर्मवीर जो अनंद दिघे की कहानी पर आधारित थी, को एकनाथ शिंदे की छवि गढ़ने के प्रयास के रूप में देखा गया। फिल्म में गुरु पूर्णिमा के दिन दिघे और शिंदे की बाल ठाकरे के प्रति भक्ति को दर्शाया गया था। उसी दृश्य में, दिघे ठाकरे के चरण धोते हैं और फिर शिंदे, दिघे के। यह क्रम शिंदे को ना सिर्फ एक अनुयायी बल्कि शिवसेना की वैचारिक विरासत का उत्तराधिकारी भी बनाता है।
दिल्ली दौरे के समय और उद्देश्य को इसी पृष्ठभूमि से जोड़कर देखा जा रहा है। क्या शिंदे अब भाजपा के समर्थन से अपनी राजनीतिक विरासत को फिर से मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं?
ठाकरे बंधुओं की नज़दीकी – शिंदे के लिए खतरे की घंटी?
हाल ही में शिवसेना (उद्धव गुट) प्रमुख उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच बढ़ती समीपता ने शिंदे खेमे की चिंताओं को हवा दी है। अगर ठाकरे परिवार दोबारा एक हो जाता है, तो इससे शिंदे की शिवसेना की वैधता और जनसमर्थन पर सीधा असर पड़ सकता है।
भाजपा की भूमिका – समर्थन या सावधानी?
भाजपा ने अब तक शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए रखने में सहयोग दिया है, लेकिन अगर राज्य में गणित बदलता है, तो पार्टी अपनी रणनीति बदलने में देर नहीं करेगी। ऐसे में शिंदे की दिल्ली यात्रा को ‘पॉलिटिकल रिइंफोर्समेंट’ के रूप में देखा जा रहा है—एक तरह का इशारा कि वह अब भी भाजपा के भरोसेमंद सहयोगी हैं।