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Nobel Prize से बाहर हुए Donald Trump — अब फूटा गुस्सा, बोले “शांति का असली नेता मैं हूं”

डोनाल्ड ट्रंप को फिर नहीं मिला नोबेल शांति पुरस्कार, जबकि वे खुद को “Peace President” कहते रहे — सोशल मीडिया पर भड़के समर्थक

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“Donald Trump को नहीं मिला नोबेल पुरस्कार — ‘The Peace President’ का सपना फिर अधूरा”
“Donald Trump को नहीं मिला नोबेल पुरस्कार — ‘The Peace President’ का सपना फिर अधूरा”

वॉशिंगटन (अमेरिका):
एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप के हाथ से नोबेल शांति पुरस्कार फिसल गया है।
इस साल का नोबेल प्राइज मारिया कोरीना माचाडो को मिला है — जो वेनेजुएला में लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं।

नोबेल कमेटी ने घोषणा करते हुए कहा कि माचाडो ने “तानाशाही से लोकतंत्र की ओर शांतिपूर्ण परिवर्तन के लिए साहसिक संघर्ष किया”।
इस ऐलान के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप समर्थकों में नाराज़गी फैल गई है — क्योंकि ट्रंप महीनों से यह दावा कर रहे थे कि उन्हें ही “Peace Prize” मिलना चाहिए।

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“The Peace President” का सपना टूटा

कुछ दिन पहले White House की ओर से एक तस्वीर साझा की गई थी, जिसमें ट्रंप नीले सूट और पीली टाई में चलते नजर आ रहे थे।
कैप्शन में लिखा था — “The Peace President” (शांति का राष्ट्रपति)।
लेकिन अब जब Norwegian Nobel Committee ने विजेता का नाम घोषित किया, तो ट्रंप का नाम कहीं नहीं था।

सूत्रों के अनुसार, ट्रंप ने अब तक इस निर्णय पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन अमेरिकी मीडिया का कहना है कि जल्द ही उनकी ओर से एक “गुस्से भरा बयान या सोशल मीडिया रेंट” आने वाला है।
दरअसल, ट्रंप अपने Truth Social अकाउंट पर अक्सर विवादित टिप्पणियां करते रहे हैं।

“Donald Trump को नहीं मिला नोबेल पुरस्कार — ‘The Peace President’ का सपना फिर अधूरा”


“मैंने सात युद्ध रोके” — ट्रंप का दावा

ट्रंप बार-बार यह कहते रहे हैं कि उनके नेतृत्व में अमेरिका ने “सात बड़े युद्धों को रुकवाया” और दुनिया में “शांति का माहौल” बनाया।
उन्होंने यह भी दावा किया था कि उनके कार्यकाल में रूस-यूक्रेन युद्ध और इज़रायल-हमास संघर्ष जैसे हालात नहीं बने होते।

यहां तक कि उन्होंने कहा था कि उनके कार्यकाल में Middle East Peace Deal जैसी कई ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।
ट्रंप के अनुसार, उनकी विदेश नीति ने अमेरिका को “शांति निर्माता” के रूप में स्थापित किया, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह सब “राजनीतिक प्रचार” से ज्यादा कुछ नहीं था

Oval Office से चला था “Nobel Campaign”

ट्रंप ने अपने ओवल ऑफिस (राष्ट्रपति कार्यालय) से ही एक तरह का Nobel Campaign शुरू कर दिया था।
उनके करीबी सहयोगियों और सलाहकारों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए उन्हें “नोबेल के सबसे योग्य उम्मीदवार” बताया।

लेकिन Nobel Committee ने इस साल भी उन्हें नजरअंदाज किया, और स्पष्ट किया कि पुरस्कार “सच्चे लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों” की रक्षा करने वाले को मिलेगा — न कि “राजनीतिक उपलब्धियों” के दावेदार को।

सोशल मीडिया पर मिला-जुला रिएक्शन

ट्रंप के समर्थकों ने X (पूर्व ट्विटर) पर #TrumpDeservesNobel हैशटैग चलाया।
वहीं आलोचकों ने व्यंग्य करते हुए लिखा —

“जिसे अपने ट्वीट्स में ही शांति नहीं मिलती, वो नोबेल कैसे जीतेगा?”

ट्रंप के राजनीतिक विरोधियों का कहना है कि यह घटना उनके “स्व-घोषित महानता” के भ्रम को तोड़ती है।
वहीं उनके समर्थक अब भी मानते हैं कि ट्रंप का वैश्विक प्रभाव इतना बड़ा है कि उन्हें किसी पुरस्कार की जरूरत नहीं।

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