Health
Doctor’s Day: जिन मरीजों ने डॉक्टरों को सिखाया ज़िंदगी का असली मतलब
एक कैंसर सरवाइवर की रागिनी, एक फेफड़े वाला पर्वतारोही और एक माँ जो दिल की नाकामी से भी नहीं हारी—डॉक्टरों ने बताया कैसे इन मरीजों ने उन्हें भी ज़िंदगी से प्यार करना सिखा दिया।

डॉक्टर केवल इलाज नहीं करते, वो उम्मीद भी देते हैं। लेकिन कभी-कभी, जिंदगी की सबसे बड़ी सीख उन्हें अपने मरीजों से ही मिलती है। Doctor’s Day पर तीन प्रतिष्ठित विशेषज्ञों ने Dainik Diary से साझा की वो यादें जिन्हें वे जीवनभर नहीं भूल पाएंगे—क्योंकि उन क्षणों ने उन्हें इंसानियत, धैर्य और ज़िंदगी के जज़्बे की नई परिभाषा सिखाई।
“जिस दिन सुर टूटा, उस दिन रूह गा उठी”
डॉ. श्रिनिधि नाथानी, कंसल्टेंट, आणविक हेमेटोलॉजी और ऑन्कोलॉजी, Fortis Memorial Research Institute, गुरुग्राम
जयपुर की 61 वर्षीय सेवानिवृत्त शास्त्रीय गायिका मिसेज़ आर ल्यूकेमिया की एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचीं। परिवार को डर था कि उनका शरीर कीमोथेरेपी नहीं झेल पाएगा, लेकिन उन्होंने आंखों में आत्मविश्वास लिए कहा, “मैंने 40 साल स्टेज पर बिना सुर बिगाड़े गाया है, ये भी कर लूंगी।”
इलाज के दौरान आवाज़ चली गई, बाल झड़ गए, पानी पीना भी तकलीफदेह हो गया—but every evening, she would hum. और फिर, 28वें दिन उनकी बोन मैरो रिपोर्ट क्लियर थी। तीन महीने में वो मोलिक्यूलर रेमिशन तक पहुंचीं। आज भी हर तीन महीने में चेकअप पर आती हैं और वेटिंग एरिया में दूसरे मरीजों के लिए गुनगुनाती हैं। वो कहती हैं—“शरीर टूटता है, लेकिन संगीत नहीं रुकता।”

“एक फेफड़े से पहाड़ चढ़ा, पर हिम्मत कभी नहीं टूटी”
डॉ. विनी कांतरो, पल्मोनोलॉजिस्ट, Apollo Hospitals, Delhi
कोविड की दूसरी लहर में, 40 के दशक का एक युवक ब्लैक फंगस से गंभीर हालत में आया। पहले ऑपरेशन में फेफड़े का ऊपरी भाग हटाया गया, लेकिन संक्रमण नीचे भी फैल गया। अंततः पूरा बायां फेफड़ा निकालना पड़ा।
लेकिन वो रुके नहीं। सिगरेट छोड़ी, फिजियोथेरेपी नियमित की, और फिर कुछ महीनों बाद डॉक्टर को एक तस्वीर भेजी—पहाड़ की चोटी पर खड़े मुस्कराते हुए। अब हर बार जब वो किसी नई ऊंचाई पर जाते हैं, एक तस्वीर भेजते हैं। “एक तस्वीर, हजार शब्दों से ज्यादा कहती है।” डॉ. कांतरो कहते हैं—“जिसे हमने बचाया था, उसने हमें जीना सिखाया।”
“माँ की धड़कन फिर चली, ताकि बच्चा मुस्कुरा सके”
डॉ. रंजन शेट्टी, लीड कार्डियोलॉजिस्ट और मेडिकल डायरेक्टर, Sparsh Hospitals, Bengaluru
कोलार की राष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी को प्रेगनेंसी के दौरान दिल की दुर्लभ बीमारी Peripartum Cardiomyopathy हो गई। उनका दिल बार-बार फेल हो रहा था। 80 दिनों तक उन्हें ECMO मशीन पर रखा गया—उनकी धमनियां और मांसपेशियां लगभग बेकार हो चुकी थीं।
लेकिन वो कभी हारती नहीं दिखीं। आंखों में हमेशा उम्मीद की चमक थी। जब भी होश आता, वो इशारे से अपने बच्चे के बारे में पूछतीं। ट्रांसप्लांट के बाद एक हफ्ते में चलने लगीं। आज तीन साल बाद, वो अपने बच्चे के साथ फॉलो-अप पर आती हैं—हंसते हुए।