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दिल्ली में गाड़ियों की कबाड़ नीति पर बड़ा खुलासा 40 हजार वाहन स्क्रैप! अब होगी जांच
AAP सरकार के कार्यकाल में स्क्रैप की गई गाड़ियों को लेकर मचा बवाल, मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने जांच के आदेश दिए, कई वाहन मालिकों ने मुआवज़ा न मिलने का आरोप लगाया।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक बार फिर आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार के कार्यकाल में लिए गए एक अहम फैसले को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस बार मामला है 2024 में कथित तौर पर स्क्रैप की गई 40,000 से अधिक पुरानी गाड़ियों का, जिनके मालिकों को अब तक कोई मुआवजा नहीं मिला है। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने इस पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं और कहा है कि यदि किसी भी स्तर पर गड़बड़ी पाई जाती है तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
क्या है पूरा मामला?
सरकार द्वारा चलाई गई स्क्रैपिंग नीति के तहत 15 साल से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों और 10 साल से अधिक पुराने डीजल वाहनों को सड़कों से हटाया जा रहा था। 2024 में इस अभियान के तहत करीब 40,000 वाहनों को जब्त कर स्क्रैप कर दिया गया। लेकिन अब सामने आ रहा है कि कई वाहन मालिकों को न तो निर्धारित मुआवजा मिला, न ही Certificate of Deposit (CoD), जो कि टैक्स छूट और नई गाड़ी की पंजीकरण प्रक्रिया के लिए आवश्यक होता है।

स्क्रैप वैल्यू नहीं मिली, गाड़ियाँ गायब
कई वाहन मालिकों का कहना है कि गाड़ियों के स्क्रैप होने की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं थी। कुछ मामलों में गाड़ियाँ जब्त करने के बाद मालिकों को उनसे अपना सामान भी नहीं निकालने दिया गया। वहीं, कई गाड़ियों को कथित रूप से अन्य राज्यों में भेजकर वहां स्क्रैप किया गया। यह भी आरोप है कि कुछ एजेंसियों ने दिल्ली पार्किंग रूल्स 2019 के तहत तय शुल्क से अधिक राशि वसूली।
तत्कालीन मंत्री ने जताई थी आपत्ति
दिल्ली के पूर्व परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने मार्च 2023 में इस अभियान पर सवाल उठाते हुए इसे “अनधिकृत और आक्रामक” बताया था। उन्होंने अधिकारियों को पार्क की गई गाड़ियों को न उठाने का निर्देश भी दिया था। हालांकि, कुछ समय बाद Commission for Air Quality Management (CAQM) के आदेशों के बाद यह अभियान दोबारा शुरू कर दिया गया।
अब हाईकोर्ट की नजरें भी इस पर
मामला दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां अदालत ने सख्त शर्तों के साथ कुछ वाहनों को छोड़ने का आदेश दिया। शर्त यह थी कि गाड़ियाँ या तो NCR से बाहर की जाएं या निजी परिसरों में स्थायी रूप से खड़ी की जाएं। लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि क्या वास्तव में नियमों का पालन हुआ?
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
पर्यावरण मंत्री सिरसा ने कहा है कि इस मामले में “जनता के हक का हनन हुआ है” और यह भी संदेह जताया है कि कुछ स्क्रैप यार्ड्स और ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जाँच रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
इस पूरे मामले से एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि सरकारी योजनाओं की पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की जाए और क्या ‘गाड़ी कबाड़’ नीति का क्रियान्वयन जनहित में हुआ या केवल ठेकेदारों के हित में?