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दिल्ली की हवा पर उठे सवाल – डेटा गैप और एआईक्यू में गड़बड़ियों से ‘साफ’ दिख रहा है जहरीला आसमान
CPCB के डेटा विश्लेषण में सामने आए पैटर्न – गायब रीडिंग, बदलते प्रदूषक और एल्गोरिदम की कमियां राजधानी की असली स्थिति से बेहतर दिखा रही हैं हवा की गुणवत्ता
दिल्ली की हवा एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह सिर्फ़ प्रदूषण नहीं, बल्कि उस प्रदूषण को मापने का तरीका है। हाल ही में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के डेटा के विश्लेषण में कई ऐसी कमियां सामने आई हैं जो सवाल उठाती हैं कि क्या दिल्ली की हवा वाकई उतनी “सुधरी” है, जितनी एआईक्यू (Air Quality Index) रिपोर्ट्स दिखा रही हैं।
सबसे जहरीले हफ्ते में ‘बेहतर’ दिखा एआईक्यू
2 नवंबर से 3 नवंबर के बीच दिल्ली का औसत AQI 366 से 309 तक गिरा दिखाया गया — यानी प्रदूषण घटा। लेकिन HT के विश्लेषण से पता चला कि यह सुधार शायद वास्तविक नहीं था। कई मॉनिटरिंग स्टेशनों के डेटा गायब थे, कुछ में संदिग्ध पैटर्न दिखे और कई जगह प्रमुख प्रदूषक अचानक बदल गए — जिससे हवा साफ़ दिखने लगी।
डेटा गायब, पैटर्न संदिग्ध
दिल्ली में कुल 39 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन हैं। नियमों के मुताबिक, यदि किसी स्टेशन पर कम से कम तीन प्रदूषकों का 16 घंटे का डेटा उपलब्ध हो (PM2.5 या PM10 सहित), तो उसी से उस स्टेशन का AQI निकाल लिया जाता है।

लेकिन विश्लेषण में पाया गया कि सबसे प्रदूषित घंटों में ही सबसे अधिक डेटा गायब था। कई स्टेशन ऐसे समय पर रिकॉर्डिंग बंद कर देते हैं जब हवा सबसे खराब होती है — इससे औसत AQI कृत्रिम रूप से बेहतर दिखता है।
प्रदूषक बदलते रहे – PM2.5 से PM10 और NO₂ तक
सप्ताह के दौरान PM2.5, जो सर्दियों में दिल्ली का सबसे खतरनाक प्रदूषक माना जाता है, केवल 32–36 स्टेशनों पर प्रमुख रहा। बाकी जगहों पर PM10 या नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) को प्रमुख प्रदूषक दिखाया गया।
उदाहरण के तौर पर, आईटीओ, लोधी रोड, और श्री औरोबिंदो मार्ग के स्टेशनों पर प्रमुख प्रदूषक अचानक बदलने से एआईक्यू आधा रह गया।
लोधी रोड के स्टेशन पर IITM और IMD दोनों की रीडिंग में अंतर दिखा — जहां IITM की रिपोर्ट में PM2.5 काफी कम था। इससे डेटा की विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
एआईक्यू में सुधार, लेकिन वजह संदिग्ध
2 से 3 नवंबर के बीच शहर का औसत एआईक्यू 16% घटा, जबकि कुछ स्टेशनों पर 50% तक सुधार दिखाया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि मौसम में मामूली बदलाव तो हुआ, लेकिन इतना बड़ा फर्क केवल “डेटा गैप” या “कैलिब्रेशन इश्यू” से ही संभव है।

क्या जानबूझकर हो रहा है डेटा क्लीन?
पर्यावरण समूहों ने दावा किया कि कुछ मॉनिटरिंग स्टेशनों के आसपास हाल के दिनों में पानी का छिड़काव किया गया, जिससे स्थानीय रीडिंग अस्थायी रूप से बेहतर दिख सकती हैं। अधिकारियों ने इसकी पुष्टि नहीं की, लेकिन इससे डेटा की सटीकता पर और संदेह गहराया है।
निष्कर्ष – हवा अब भी ‘खतरनाक’, डेटा नहीं
दिल्ली के नागरिकों के लिए यह चेतावनी है कि ‘क्लीन एआईक्यू’ का मतलब साफ हवा नहीं। जब सबसे ज़्यादा प्रदूषण के घंटे ही दर्ज नहीं किए जाते या प्रमुख प्रदूषक बदल दिए जाते हैं, तो आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है — “अगर मॉनिटरिंग सिस्टम में पारदर्शिता और नियमितता नहीं होगी, तो राजधानी की असली सांसों की कहानी कभी सामने नहीं आएगी।”

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