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बीजेपी फिर मिलाना चाहती है जनार्दन रेड्डी और श्रीरामुलु को, कर्नाटक की सियासत में बढ़ सकती है हलचल

कभी राजनीति के मजबूत साथी रहे गली जनार्दन रेड्डी और बी. श्रीरामुलु अब वर्षों से एक-दूसरे से दूर, बीजेपी फिर से साथ लाने की कर रही कोशिशें

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बीजेपी की कोशिश: जनार्दन रेड्डी और श्रीरामुलु को फिर से साथ लाने की तैयारी तेज
गली जनार्दन रेड्डी और बी. श्रीरामुलु: क्या फिर एक होंगे बल्लारी के पुराने साथी?

कर्नाटक की राजनीति में कभी जोड़ी की तरह देखे जाने वाले गली जनार्दन रेड्डी और बी. श्रीरामुलु के बीच की दूरी अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। बल्लारी जिले में पार्टी की पकड़ बनाए रखने के लिए अब शीर्ष नेतृत्व इन दोनों पुराने सहयोगियों के रिश्ते फिर से सुधारने में जुट गया है।

गौरतलब है कि जब बी.एस. येदियुरप्पा मुख्यमंत्री थे, उस समय रेड्डी और श्रीरामुलु की जोड़ी ने बीजेपी को खासा चुनावी लाभ पहुंचाया था। लेकिन समय के साथ उनके रिश्तों में दरार आ गई। रेड्डी द्वारा अपनी पार्टी कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (KRPP) बनाने के बाद दोनों नेताओं के बीच कटुता और बढ़ गई।


“सेल्फिश और करप्ट” तक कह डाला

सूत्रों की मानें तो रेड्डी द्वारा श्रीरामुलु की सेहत को लेकर की गई टिप्पणी ने माहौल को और बिगाड़ा। इसके जवाब में श्रीरामुलु ने रेड्डी को “स्वार्थी और भ्रष्ट” नेता तक कह डाला। इसके बाद जब रेड्डी को दोबारा बीजेपी में शामिल किए जाने की अटकलें चलीं, तो कार्यकर्ताओं के बीच भ्रम और नाराजगी फैल गई।

दिल्ली बुलाए गए दोनों नेता

पार्टी नेतृत्व चाहता है कि बल्लारी में फिर से वही समीकरण तैयार किए जाएं जो कभी बीजेपी को भारी बहुमत दिलाने में मददगार थे। हाल ही में केंद्रीय मंत्री वी. सोमन्ना ने दोनों नेताओं से दिल्ली आने की अपील की ताकि आपसी मतभेद खत्म कर सहयोग की संभावनाएं तलाशी जा सकें। इसके अलावा बीवाई विजयेंद्र और प्रह्लाद जोशी जैसे दिग्गज भी इस पहल में सक्रिय हैं।

कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान बना मौका

बल्लारी जिले में कांग्रेस भी अंदरूनी कलह का सामना कर रही है। ऐसे में बीजेपी को लगता है कि अगर रेड्डी और श्रीरामुलु फिर एकजुट हो जाएं, तो आने वाले चुनावों में विपक्ष को बड़ा झटका दिया जा सकता है।

क्या फिर बनेगी बल्लारी की पुरानी जोड़ी?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अगर दोनों नेताओं की दूरी बरकरार रही, तो इससे पार्टी को ज़मीनी नुकसान हो सकता है, जैसा कि हाल के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में देखा गया। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी की यह सियासी “रीयूनियन योजना” कितना रंग लाती है।

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