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बिहार में ‘महिला वोट’ और 10,000 रुपये की कहानी अधूरी क्यों? असली फ़ैसला बदलते मूड ने लिखा
NDA की जबरदस्त जीत के पीछे सिर्फ़ एक योजना नहीं, बल्कि 20 साल का भरोसा, गुस्सा और उम्मीदें थीं
बिहार चुनाव 2025 के नतीजे आते ही राजनीति गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक एक ही सवाल गूंजने लगा—क्या महिलाओं को दिए गए 10,000 रुपये ने NDA को यह भारी जीत दिलवा दी?
लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे कहीं ज़्यादा गहरी, जटिल और दिलचस्प है।
गाँव से लेकर कस्बों तक रिपोर्टिंग के दौरान एक बात बार-बार सुनाई दी—लोग बदलाव चाहते थे, लेकिन यह बदलाव नीतीश कुमार से ही चाहिए था।
यह एक अनोखा चुनाव था जिसमें नाराज़गी भी थी, उम्मीद भी थी… पर भरोसा भी उसी चेहरे पर टिका रहा जो दो दशक से बिहार की राजनीति का केंद्र रहा है।
महिला वोट सिर्फ़ “नकद का असर” नहीं था, यह 20 साल के बदलाव का टोटल था
बहुत से विश्लेषकों ने नतीजों को महज महिला रोजगार योजना में आए 10,000 रुपये से जोड़कर सरल बना दिया, जबकि यह बिहार की महिला राजनीति को कम आंकने जैसा है।
वास्तविक तस्वीर कुछ और कहती है—
- 2006 में साइकिल योजना ने लड़कियों की पढ़ाई को नई हवा दी।
- पंचायतों और सरकारी नौकरियों में महिलाओं का आरक्षण एक क्रांतिकारी कदम साबित हुआ।
- जीविका समूह ने लाखों घरों में आर्थिक आत्मनिर्भरता की शुरुआत की।
- शराबबंदी, भले कई बार विवादों में रही, पर महिलाओं ने इसे अपने जीवन से जोड़ा।
मतलब यह कि महिला वोट किसी “एक बार के ऑफर” से नहीं, बल्कि 20 वर्षों के अनुभव से बना था।
तेजस्वी पर ‘परिवारवाद’, PK पर ‘भाषण’, और नीतीश पर ‘काम’ का टैग क्यों लगा?
चुनाव प्रचार में बिहार के मतदाताओं ने बड़ी साफगोई के साथ अपनी राय रखी—
- तेजस्वी यादव—“परिवार और जाति की राजनीति वाले नेता”
- प्रशांत किशोर (PK)—“अच्छा भाषण देते हैं, लेकिन जमीनी काम कम दिखा”
- नीतीश कुमार—“काम किया है, और काम की उम्मीद भी उन्हीं से है”
मतदाताओं के बीच यह भाव पहले से मजबूत था कि जो मुख्यमंत्री दो दशकों तक व्यवस्था संभाल सकता है, वही आगे भी बिहार को स्थिरता दे सकता है।

बिहार के दर्द—बेरोज़गारी, पलायन, महंगाई—सीधे नीतीश सरकार से जुड़ते हैं, विपक्ष से नहीं
यह चुनाव विरोध के मुद्दों पर भी टिका हुआ था—
- नौकरी की कमी
- पलायन
- भ्रष्टाचार
- अफ़सरशाही
- उद्योगों का न बन पाना
पर इस नाराज़गी ने विपक्ष को फायदा न देकर सरकार से “सुधार की मांग” के रूप में अपनी आवाज़ पेश की।
यानी जनता ने कहा—“बदलाव चाहिए, पर बदलाव सरकार के भीतर… चेहरे का नहीं”।
अंत में चुनाव ने क्या साबित किया?
बिहार ने इस परिणाम के ज़रिए एक संदेश दिया है—
- महिला वोट समझदार है, एकमुश्त पैसे से नहीं बिकता।
- नीतीश पर नाराज़गी थी, पर भरोसा खत्म नहीं हुआ था।
- विपक्ष कोई मजबूत विकल्प नहीं दे पाया।
- बदलाव की मांग सत्ता से थी, सत्ता बदलने की नहीं।
यही कारण है कि 2025 का चुनाव सिर्फ़ 10,000 रुपये या महिला वोट की कहानी नहीं, बल्कि बिहार के मतदाताओं की राजनीतिक परिपक्वता की कहानी है।
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