Politics
बिहार में NDA की ऐतिहासिक वापसी, महागठबंधन ध्वस्त – नीतीश की सुनामी में तेजस्वी-राहुल, PK सभी बह गए
रिकॉर्ड वोटिंग के बाद 2025 के नतीजों में NDA 200+ सीटों पर आगे, जबकि RJD-कांग्रेस का प्रदर्शन अब तक का सबसे कमजोर।
बिहार के चुनावी रण में आखिरकार नतीजों की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है। 24.3 करोड़ आबादी वाले इस राज्य ने 6 और 11 नवंबर को हुए दो चरणों के मतदान में 67% से अधिक की रिकॉर्ड भागीदारी दिखाकर एक बार फिर साबित किया कि बिहार की राजनीति का तापमान हमेशा देश में सबसे अलग होता है। और आज 14 नवंबर 2025—वोटों की गिनती ने यह साफ कर दिया है कि बिहार ने इस बार किस दिशा में कदम बढ़ाया है।
NDA की सुनामी—नीतीश का फिर चला जादू
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में NDA ने ऐसा दबदबा बनाया कि राजनीतिक जानकार भी चौंक गए हैं। शुरुआती रुझानों से ही यह साफ हो गया था कि जनता का झुकाव इस बार एकतरफा है, लेकिन जैसे-जैसे सीटें बढ़ती गईं, यह समझ आ गया कि यह “विकास बनाम वादों” वाली सीधी लड़ाई थी—जिसमें NDA भारी पड़ा।
JD(U) 80+ सीटों पर बढ़त बनाकर अपने पुराने दिनों की याद दिला रही है, वहीं BJP भी 90+ सीटों के साथ पूरे परिदृश्य की सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभर रही है। चिराग पासवान की LJP (RV) को लगभग 19 सीटें और जीतन राम मांझी की HAM को करीब 5 सीटों पर बढ़त मिल रही है। कुल मिलाकर NDA 200 से ऊपर की सीटों पर पहुँचकर एकतरफा बहुमत हासिल करता दिखाई दे रहा है।
और भी पढ़ें : बिहार चुनाव में NDA की सुनामी Nitish Factor से ले उड़ी विपक्ष की उम्मीदें, RJD और Congress दोनों फेल
राजनीतिक माहिरों का मानना है कि नीतीश का पांचवाँ कार्यकाल अब सिर्फ औपचारिक घोषणा भर दूर है।
तेजस्वी-राहुल की जोड़ी पस्त, महागठबंधन का सपना चकनाचूर
2015 और 2020 के चुनावों में मजबूत पकड़ रखने वाले तेजस्वी यादव का कद इस बार वोटों के सामने टिक नहीं पाया। महागठबंधन के बड़े-बड़े दावे नतीजों में कहीं नहीं दिख रहे।
RJD जहां सिर्फ 26 सीटों पर सिमटी नजर आ रही है, वहीं कांग्रेस 3 सीटों तक सीमित होती दिख रही है। वाम दलों का प्रदर्शन भी उम्मीदों से काफी नीचे है।
महागठबंधन कुल मिलाकर लगभग 30–32 सीटों में जूझता दिख रहा है, जो कि पिछले दशक का सबसे कमजोर प्रदर्शन कहा जा सकता है।

PK का डेब्यू फीका—जन सुराज की उड़ान रुकी
चुनावी रणनीतिकार के तौर पर देश-दुनिया में पहचान बनाने वाले प्रशांत किशोर (PK) की राजनीतिक एंट्री लोगों को बड़ी उम्मीदें दे रही थी। परंतु जन सुराज की पहली उड़ान “नो फंडा, सिर्फ जनता” वाली अपील के बावजूद मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर सकी।
अभी तक के रुझानों में PK की पार्टी खाता भी नहीं खोल सकी है।
इस परिणाम ने साफ कर दिया कि मैदान में उतरना और रणनीति बनाना—दो अलग-अलग चीज़ें हैं।
VIP और AIMIM भी गायब
मुकेश सहनी की VIP हो या असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM, दोनों पार्टियाँ इस बार राजनीतिक मानचित्र से लगभग गायब होती दिख रही हैं। जिस तरह 2020 में AIMIM ने सीमांचल में धमाकेदार एंट्री मारी थी, इस बार उसका कहीं प्रभाव नहीं दिखा।
मतदाताओं ने क्या संदेश दिया?
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इस चुनाव में मतदाताओं ने साफ-साफ संदेश दिया है—स्थिरता और नेतृत्व पर भरोसा।
बिहार के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की बंपर भागीदारी, युवा मतदाताओं की शांत लेकिन ठोस भागीदारी और NDA द्वारा किए गए माइक्रो-मैनेजमेंट ने मिलकर यह परिणाम दिया है।
शहरों में काम, गाँवों में योजनाएँ और चुनावों में संगठन—इन तीनों ने मिलकर NDA को एकतरफा बढ़त दिलाई।
नीतीश कुमार अब इतिहास की ओर
यदि नतीजे अंतिम रूप में इसी तरह कायम रहते हैं, तो नीतीश कुमार बिहार के इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले नेताओं में शामिल हो जाएंगे।
सालों से उनकी पहचान “पलटू राम” के नाम पर तंजों तक सीमित रहती थी, लेकिन इस चुनाव का परिणाम यह दिखाता है कि जनता अभी भी उनके नेतृत्व को भरोसेमंद मानती है।
