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बिहार में बढ़ते अपराध पर DGP की चौंकाने वाली सफाई खाली समय में लोग ज्यादा मर्डर करते हैं!

बिहार में हाल ही में हुए हत्याकांडों के बाद DGP विनय कुमार ने NDTV से खास बातचीत में अपराध के मौसमी बढ़ोतरी को जिम्मेदार बताया, कहा – मई, जून और जुलाई सबसे संवेदनशील महीने हैं।

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बिहार में अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? DGP बोले – 'खाली समय में लोग ज्यादा मर्डर करते हैं'
पटना के हाई-सिक्योरिटी अस्पताल में मर्डर, DGP ने बढ़ते अपराध का कारण बताया 'मौसम और खाली समय'

बिहार में बढ़ते अपराध एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। राजधानी पटना के एक नामी प्राइवेट अस्पताल में दिनदहाड़े एक अपराधी की हत्या ने राज्य की कानून व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस वारदात के ठीक बाद, बिहार के पुलिस महानिदेशक (DGP) विनय कुमार ने NDTV से एक्सक्लूसिव बातचीत में चौंकाने वाला बयान दिया – “खाली समय में लोग ज्यादा अपराध करते हैं, खासकर जब खेत-खलिहान का काम नहीं होता।

इस बयान ने जहां एक ओर राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं, वहीं दूसरी ओर पुलिस तंत्र की कार्यशैली पर भी गंभीर बहस छेड़ दी है।

अस्पताल में दिनदहाड़े मर्डर!

ताजा मामला पटना के पारस HMRI अस्पताल का है, जहां चंदन सिंह नामक एक अपराधी, जो पैरोल पर इलाज के लिए आया था, को पांच हथियारबंद बदमाशों ने गोली मार दी। यह हत्या एक हाई-सिक्योरिटी अस्पताल में हुई, जहाँ आम आदमी को प्रवेश के लिए कई चेकिंग प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।

CCTV फुटेज में साफ दिखा कि पांच युवक आराम से अस्पताल के अंदर दाखिल हुए और कुछ ही मिनटों में हत्या कर बाहर निकल गए। इससे साफ है कि अपराधी बेखौफ हैं और सुरक्षा व्यवस्था नाम मात्र की है।

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DGP का बचाव – 2004 से बेहतर हुए हालात

DGP विनय कुमार ने इस घटना के बाद पुलिस रिकॉर्ड का बचाव करते हुए कहा कि 2004 में प्रतिदिन चार हत्याएं होती थीं। 2024 में यह आंकड़ा घटकर 2,700 रह गया, जो कि पहले के मुकाबले लगभग 1,300 कम है।

उन्होंने बताया कि 2023 में पटना जिले में कुल 349 हत्याएं हुई थीं, जिनमें से 49 सिर्फ जुलाई में हुई थीं। यानी जुलाई अकेले ही पूरे साल की सबसे संवेदनशील अवधि साबित हुई।

अपराध और मौसम का संबंध?

DGP के अनुसार मई, जून और जुलाई के महीनों में खेतों में कामकाज कम होता है, जिसके कारण लोग ‘खाली’ रहते हैं और यह समय जमीनी विवाद, पारिवारिक झगड़ों और आपसी रंजिश का रूप लेकर हिंसा में तब्दील हो जाता है।

उन्होंने कहा, “इतिहास गवाह है कि हर साल इन तीन महीनों में अपराध विशेषकर हत्याएं बढ़ जाती हैं। इसका सीधा संबंध मौसमी बेरोजगारी और सामाजिक तनाव से है।

क्या चुनावी माहौल में अपराध बढ़ते हैं?

चुनावों से पहले अपराधों में अचानक बढ़ोतरी को लेकर DGP से सवाल पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि मीडिया का दबाव अच्छा होता है क्योंकि इससे पुलिस पर मामलों को जल्दी सुलझाने का प्रेशर बनता है।

हालांकि, उन्होंने यह भी साफ किया कि सभी घटनाओं को चुनावी चश्मे से देखना सही नहीं है और हर हत्या के पीछे कोई राजनीतिक साजिश नहीं होती।

किस हद तक मानी जाए DGP की थ्योरी?

DGP की यह मौसमी थ्योरी सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है। कई लोगों ने इसे ‘जिम्मेदारी से भागने का तरीका’ बताया, तो कुछ ने इसे सामाजिक यथार्थ से जोड़ा है। सवाल यह है कि अगर पुलिस पहले से जानती है कि इन महीनों में अपराध बढ़ते हैं, तो क्या इसके लिए पहले से विशेष बंदोबस्त नहीं किए जाने चाहिए? ऐसे में यह भी जरूरी है कि पुलिस प्रशासन इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पहले से गश्त और निगरानी को बढ़ाए। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर पंचायतों और सामाजिक संगठनों की मदद से विवादों का समाधान भी एक प्रभावी उपाय हो सकता है।

चुनावी साल में अपराध बनेंगे बड़ा मुद्दा?

बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और विपक्ष ने कानून-व्यवस्था के मुद्दे को प्रमुख एजेंडा बना लिया है। यदि ऐसी घटनाएं यूं ही घटती रहीं, तो न सिर्फ जनता का भरोसा पुलिस से उठ जाएगा, बल्कि सरकार को भी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। खासकर युवा वोटर वर्ग जो सोशल मीडिया के माध्यम से इन घटनाओं से सीधे प्रभावित होता है, वह सत्ताधारी दल के प्रति नाराजगी जाहिर कर सकता है। चुनाव के समय कानून-व्यवस्था ही वह मुद्दा होता है जो आखिरी क्षणों में मतदाता का मूड बदल सकता है। ऐसे में सरकार को अब हर घटना को गंभीरता से लेते हुए तुरंत कार्रवाई करनी होगी।