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बेंगलुरु कर्नाटक

बेंगलुरु की जाम में फंसी जिंदगी: 12 किलोमीटर के लिए 3 घंटे लोग बोले- हर दिन जंग की तैयारी

आईटी सिटी बेंगलुरु में ट्रैफिक इतना भीषण हो गया है कि ऑफिस से घर लौटना अब सिर्फ सफर नहीं, जंग जैसा लगने लगा है। वायरल पोस्ट ने खोल दी सिस्टम की पोल।

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बेंगलुरु के भयंकर ट्रैफिक में फंसी गाड़ियां और थके हुए मुसाफिरों की झलक।
बेंगलुरु के भयंकर ट्रैफिक में फंसी गाड़ियां और थके हुए मुसाफिरों की झलक।

भारत की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में ट्रैफिक का जाल अब लोगों के धैर्य की परीक्षा लेने लगा है। हाल ही में एक शहरवासी ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया कि कैसे 12 किलोमीटर की दूरी तय करने में उन्हें 3 घंटे लग गए — वो भी बिना बारिश, बिना किसी जाम या प्रदर्शन के!

उन्होंने लिखा कि शाम 6 बजे ऑफिस से निकले और रात 9:15 बजे घर पहुंचे। बस समय पर नहीं आई, ऐप्स से कोई अपडेट नहीं मिला। फिर दूसरी बस ली, लेकिन बीच रास्ते में उतार दिया गया। इसके बाद शुरू हुआ ऑटो पकड़ने का संघर्ष। नम्मा यात्री ऐप ने भी कोई राहत नहीं दी। ड्राइवर ने ₹50 से ज्यादा टिप मांगी, बिना जिसके कोई सवारी लेने को तैयार नहीं था।

इस पोस्ट ने हजारों लोगों की अनकही कहानी को जुबान दी है। कई लोगों ने बताया कि बाइक टैक्सी बंद होने से एक आसान विकल्प भी खत्म हो गया। कुछ ने तो आशंका जताई कि आने वाले दिनों में रोड टैक्स और पेट्रोल कीमतें बढ़ाकर हालात और खराब कर दिए जाएंगे।

बेंगलुरु के भयंकर ट्रैफिक में फंसी गाड़ियां और थके हुए मुसाफिरों की झलक।



ट्रैफिक के साथ-साथ मेट्रो नेटवर्क की धीमी रफ्तार और अधूरी कनेक्टिविटी भी लोगों की परेशानी बढ़ा रही है। एक यूजर ने कहा कि शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों में मेट्रो अब तक नहीं पहुंच पाई। इसके चलते लोग रोजाना घंटों ट्रैफिक में फंसकर अपनी सेहत और मानसिक शांति खो रहे हैं।

कुछ लोगों ने यह भी बताया कि इतना थकाऊ सफर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। कई लोग अब छोटे शहरों या अपने गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं ताकि सुकून की जिंदगी फिर से जी सकें।

बेंगलुरु का ट्रैफिक अब महज जाम नहीं रहा, बल्कि एक ऐसी चुनौती बन चुका है जो हर दिन लाखों लोगों को ‘युद्ध योद्धा’ बना देता है। सवाल यही है कि क्या कभी इस जंग का अंत होगा?भारत की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में ट्रैफिक का जाल अब लोगों के धैर्य की परीक्षा लेने लगा है। हाल ही में एक शहरवासी ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया कि कैसे 12 किलोमीटर की दूरी तय करने में उन्हें 3 घंटे लग गए — वो भी बिना बारिश, बिना किसी जाम या प्रदर्शन के!

उन्होंने लिखा कि शाम 6 बजे ऑफिस से निकले और रात 9:15 बजे घर पहुंचे। बस समय पर नहीं आई, ऐप्स से कोई अपडेट नहीं मिला। फिर दूसरी बस ली, लेकिन बीच रास्ते में उतार दिया गया। इसके बाद शुरू हुआ ऑटो पकड़ने का संघर्ष। नम्मा यात्री ऐप ने भी कोई राहत नहीं दी। ड्राइवर ने ₹50 से ज्यादा टिप मांगी, बिना जिसके कोई सवारी लेने को तैयार नहीं था।

इस पोस्ट ने हजारों लोगों की अनकही कहानी को जुबान दी है। कई लोगों ने बताया कि बाइक टैक्सी बंद होने से एक आसान विकल्प भी खत्म हो गया। कुछ ने तो आशंका जताई कि आने वाले दिनों में रोड टैक्स और पेट्रोल कीमतें बढ़ाकर हालात और खराब कर दिए जाएंगे।

ट्रैफिक के साथ-साथ मेट्रो नेटवर्क की धीमी रफ्तार और अधूरी कनेक्टिविटी भी लोगों की परेशानी बढ़ा रही है। एक यूजर ने कहा कि शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों में मेट्रो अब तक नहीं पहुंच पाई। इसके चलते लोग रोजाना घंटों ट्रैफिक में फंसकर अपनी सेहत और मानसिक शांति खो रहे हैं।

कुछ लोगों ने यह भी बताया कि इतना थकाऊ सफर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। कई लोग अब छोटे शहरों या अपने गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं ताकि सुकून की जिंदगी फिर से जी सकें।

बेंगलुरु का ट्रैफिक अब महज जाम नहीं रहा, बल्कि एक ऐसी चुनौती बन चुका है जो हर दिन लाखों लोगों को ‘युद्ध योद्धा’ बना देता है। सवाल यही है कि क्या कभी इस जंग का अंत होगा?

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