Gujarat
गुजरात में AAP की जीत के बीच बगावत उमेश मकवाना का इस्तीफा पार्टी के भीतर दरार की गवाही देता है
विसावदर उपचुनाव में जीत के जश्न के बीच बोटाद विधायक उमेश मकवाना ने आम आदमी पार्टी के अंदर भेदभाव और विचारधारा से भटकाव का आरोप लगाते हुए सभी पदों से इस्तीफा दे दिया।
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गुजरात की राजनीति में उस वक्त बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिला जब बोटाद से आम आदमी पार्टी के विधायक उमेश मकवाना ने अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। ये घटनाक्रम ऐसे समय हुआ है जब आम आदमी पार्टी विसावदर उपचुनाव में मिली जीत का जश्न मना रही है। वहीं, दलित और कोली समाज से आने वाले इस नेता की नाराजगी ने पार्टी की आंतरिक संरचना और विचारधारा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
“पार्टी ने अपनी सोच छोड़ दी है”, ये कहना है उस विधायक का जो कभी गुजरात में AAP का सबसे भरोसेमंद चेहरा माना जाता था। मकवाना ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल को लिखी चिट्ठी में साफ कहा कि वे सिर्फ एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में पार्टी से जुड़े रहेंगे लेकिन अब किसी भी पद की जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे।
दलित उम्मीदवारों की अनदेखी और जातिगत भेदभाव का आरोप
विधायक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में गुजरात की राजनीति में बढ़ते जातिवाद पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि “बीजेपी ने आज तक कोली समाज से किसी नेता को मुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया, वहीं कांग्रेस विपक्ष में रहते हुए भी पिछड़े वर्ग की आवाज नहीं बन सकी।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विसावदर में पाटीदार नेता गोपाल इटालिया को जिताने के लिए पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी, जबकि कडी सीट से दलित उम्मीदवार को कोई समर्थन नहीं मिला — उसे लोन लेकर चुनाव लड़ना पड़ा।
2027 के चुनाव पर अब ‘रुकिए’ की स्थिति
उमेश मकवाना ने यह भी कहा कि वह 2027 के विधानसभा चुनावों को लेकर कोई निर्णय समाज के साथ विचार-विमर्श के बाद ही लेंगे। उन्होंने नई पार्टी के गठन से इनकार नहीं किया लेकिन फिलहाल इसके बारे में कुछ भी कहने से इंकार किया है।
क्या AAP की ‘विचारधारा’ दरक रही है?
एक तरफ जहां ‘दिल्ली मॉडल’ को गुजरात में लागू करने का दावा किया जा रहा है, वहीं अंदरखाने से उठ रही ऐसी आवाजें दर्शाती हैं कि AAP अब वैचारिक आधार से हटकर सियासी रणनीतियों में उलझती जा रही है। उमेश मकवाना का इस्तीफा इस बात का प्रतीक है कि पार्टी के भीतर न केवल संवाद की कमी है बल्कि प्रतिनिधित्व और समानता जैसे मूल सिद्धांतों पर भी सवाल उठने लगे हैं।
AAP के लिए ये ‘चेतावनी की घंटी’ है — जहां एक सीट की जीत जश्न का कारण बनी है, वहीं एक विधायक का सार्वजनिक असंतोष आने वाले चुनावी समीकरणों में बड़ी चुनौती बन सकता है।