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चीन की नई पाबंदियों से भारत को बड़ा झटका: नोएडा समेत देशभर में 21 हजार नौकरियां खतरे में!
रेयर अर्थ मेटल्स पर चीन के नए नियमों ने भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की कमर तोड़ी, कंपनियों ने केंद्र सरकार से मांगी मदद।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिए चीन से आया यह नया झटका बहुत बड़ा माना जा रहा है। देश की सबसे पुरानी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री संस्था ELCINA ने हाल ही में केंद्र सरकार को एक ‘अर्जेंट SOS’ भेजा है, जिसमें बताया गया है कि चीन द्वारा रेयर अर्थ मेटल्स के एक्सपोर्ट पर सख्त लाइसेंसिंग पॉलिसी लागू करने से भारतीय ऑडियो डिवाइसेज इंडस्ट्री की हालत खस्ता हो गई है।
चीन ने अप्रैल 2025 से टेरबियम और डिस्प्रोसियम जैसे जरूरी रेयर अर्थ एलिमेंट्स के एक्सपोर्ट पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। ये एलिमेंट्स उन हाई परफॉर्मेंस NdFeB मैग्नेट्स के निर्माण में काम आते हैं, जिनके बिना हेडफोन्स, ईयरबड्स और स्मार्ट स्पीकर्स जैसे डिवाइस नहीं बन सकते।
भारत में करीब 90% NdFeB मैग्नेट्स की सप्लाई चीन से होती रही है। अब चीन से सप्लाई रुकने से न केवल कीमतें आसमान छूने लगी हैं, बल्कि विकल्प के तौर पर जापान, यूरोप या अमेरिका से लाना बेहद महंगा और सीमित सप्लाई वाला सौदा साबित हो रहा है।
इसका सीधा असर नोएडा और दक्षिण भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्लस्टर्स पर पड़ा है, जहां करीब 5,000 से ज्यादा डायरेक्ट और 15,000 इनडायरेक्ट नौकरियां खतरे में हैं। जिन फैक्ट्रियों में कुछ समय पहले तक स्पीकर मॉड्यूल्स और ऑडियो डिवाइसेज बन रहे थे, वहां अब कंपनियों को मजबूरी में चीन से फुली असेंबल्ड प्रोडक्ट्स आयात करने पड़ रहे हैं। इससे ‘मेक इन इंडिया’ की जड़ों पर सीधी चोट मानी जा रही है।
ELCINA ने इसे ‘प्रतिगामी ट्रेंड’ बताते हुए सरकार से तीन बड़े कदम उठाने की अपील की है –
- भारत-चीन के बीच उच्च स्तर पर बातचीत कर रेयर अर्थ मेटल्स की सप्लाई सामान्य कराना
- सेमीकंडक्टर की तरह रेयर अर्थ मेटल्स को भी क्रिटिकल सेक्टर मानकर नीति बनाना
- देश में R&D को बढ़ावा देकर और PLI स्कीम शुरू कर स्थानीय स्तर पर मैग्नेट्स का निर्माण कराना
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जल्द कोई ठोस नीति नहीं बनी तो भारत का आत्मनिर्भर भारत मिशन गंभीर संकट में पड़ सकता है। देश की तेजी से बढ़ती इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को इस झटके से उबरने के लिए सरकार को तुरंत स्ट्रैटेजिक प्लान बनाना होगा। वरना सिर्फ रोजगार ही नहीं, तकनीकी आत्मनिर्भरता भी पीछे छूट जाएगी।
