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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला – अब सेवामुक्त नहीं, सेवा में कार्यरत जज भी ‘बार कोटा’ से बन सकेंगे जिला जज

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा – बार कोटा से सेवाधीन न्यायाधीशों को बाहर रखना भेदभावपूर्ण, संविधान के अनुच्छेद 233(2) की नई व्याख्या ने खोले नए अवसर

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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला – सेवाधीन जज भी अब बार कोटा से जिला जज बनने के पात्र
CJI बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का बड़ा फैसला – सेवाधीन जज भी अब बार कोटा से जिला जज बन सकेंगे।

देशभर की न्यायपालिका में नियुक्तियों को लेकर बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वे न्यायिक अधिकारी (judicial officers) जो पहले कम से कम सात साल तक अधिवक्ता (advocate) के रूप में प्रैक्टिस कर चुके हैं, वे अब “बार कोटा” (Bar Quota) के तहत जिला जज (District Judge) पद के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे — भले ही वे वर्तमान में न्यायिक सेवा में कार्यरत हों।

यह ऐतिहासिक निर्णय मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया। इस बेंच में जस्टिस एम.एम. सुंदरेश, अरविंद कुमार, सतीश चंद्र शर्मा और के. विनोद चंद्रन भी शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला – सेवाधीन जज भी अब बार कोटा से जिला जज बनने के पात्र

संविधान पीठ का फैसला – “सेवाधीन जजों को बाहर रखना भेदभावपूर्ण”

पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 233(2) की ऐसी व्याख्या जो सेवाधीन न्यायिक अधिकारियों को बाहर कर दे, वह “भेदभावपूर्ण (discriminatory)” है और न्यायिक सेवा की गुणवत्ता बनाए रखने के संवैधानिक उद्देश्य के विपरीत है।

मुख्य न्यायाधीश गवई और जस्टिस सुंदरेश ने अलग-अलग लेकिन सहमति वाले निर्णय (concurring opinions) में यह स्पष्ट किया कि यह आदेश आज से लागू (prospective) होगा।


अब कौन कर सकेगा आवेदन?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि—

“वे सभी न्यायिक अधिकारी जिन्होंने अधिवक्ता के रूप में सात वर्ष की प्रैक्टिस पूरी कर ली है और फिर न्यायिक सेवा में आए हैं, वे जिला या अतिरिक्त जिला जज के लिए बार कोटा से आवेदन करने के पात्र हैं।”

ऐसे उम्मीदवारों को यह अवसर सिर्फ इसलिए नहीं छीना जा सकता कि वे न्यायिक सेवा में शामिल हो चुके हैं।


आवेदन के समय पात्रता मानी जाएगी, नियुक्ति के समय नहीं

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पात्रता का आकलन आवेदन के समय किया जाएगा, न कि नियुक्ति के समय।
यह व्यवस्था इसलिए की गई ताकि चयन प्रक्रिया लंबी चलने के कारण उम्मीदवारों को अनुचित रूप से अयोग्य घोषित न किया जाए।


राज्यों को तीन महीने में नए नियम बनाने का निर्देश

एकरूपता बनाए रखने के लिए अदालत ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने हाईकोर्ट्स से परामर्श कर तीन महीने के भीतर नए नियम तैयार करें। साथ ही, अदालत ने ऐसे आवेदकों के लिए न्यूनतम आयु सीमा 35 वर्ष तय की है।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला – सेवाधीन जज भी अब बार कोटा से जिला जज बनने के पात्र

अनुभव की नई व्याख्या

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब “सात वर्ष का अनुभव” केवल अधिवक्ता के रूप में बिताए वर्षों तक सीमित नहीं रहेगा।

“अगर किसी व्यक्ति के पास अधिवक्ता और न्यायिक अधिकारी — दोनों रूपों में सात वर्षों का संयुक्त अनुभव है, तो वह भी इस कोटे के तहत पात्र माना जाएगा।”

‘धीरेज मोर बनाम दिल्ली हाईकोर्ट (2020)’ के फैसले से अलग रुख

यह निर्णय 2020 के चर्चित केस “Dheeraj Mor vs Delhi High Court” से बिल्कुल अलग दिशा में गया है, जिसमें कहा गया था कि सेवा में कार्यरत जज बार कोटा से आवेदन नहीं कर सकते।
नए फैसले से अब जिला न्यायपालिका में करियर मोबिलिटी बढ़ेगी, प्रतियोगिता मजबूत होगी और कुशल प्रतिभा को आगे आने का अवसर मिलेगा।


केरल से शुरू हुआ मामला

यह मामला केरल से जुड़ा था, जहां अधिवक्ता रिजनिश के.वी. (Rejanish KV), जिन्होंने सात साल तक वकालत की थी, को डिस्ट्रिक्ट जज चुना गया था।
लेकिन तब वे पहले से ही मुंसिफ-मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत थे।
एक अन्य उम्मीदवार ने चुनौती दी कि रिजनिश अब “प्रैक्टिसिंग एडवोकेट” नहीं हैं, इसलिए अयोग्य हैं।
इसी विवाद के चलते मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 12 अगस्त को इसे बड़ी संविधान पीठ को भेजा गया।

तीन दिन की सुनवाई के बाद, 25 सितंबर को फैसला सुरक्षित रखा गया था और अब संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निर्णय सुना दिया।