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बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर घमासान सुप्रीम कोर्ट में जुलाई 10 को होगी सुनवाई
2.93 करोड़ मतदाताओं पर दस्तावेज़ दिखाने की तलवार लटकी, Manoj Jha, Mahua Moitra और Yogendra Yadav पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

बिहार में चुनावी हलचल के बीच विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सियासी और कानूनी बवाल गहराता जा रहा है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। अदालत ने 10 जुलाई 2025 को मामले की त्वरित सुनवाई के लिए सहमति दे दी है।
यह पुनरीक्षण अभियान 28 जून 2025 से शुरू हुआ, जिसके तहत 1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को अपने और अपने माता-पिता के जन्म स्थान और तारीख से जुड़े दस्तावेज़ देने को कहा गया है। अनुमान है कि 2.93 करोड़ मतदाता इससे प्रभावित हो सकते हैं।
इस फैसले को लेकर कई राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सवाल खड़े किए हैं। राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और चुनावी सुधार कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने इस प्रक्रिया को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
“यह गरीबों और प्रवासियों को मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश” – याचिकाकर्ता
कपिल सिब्बल, एएम सिंहवी, गोपाल शंकरनारायणन और शादान फरासत जैसे वरिष्ठ वकीलों की टीम ने कोर्ट से आग्रह किया कि इस मामले को तत्काल सुना जाए, क्योंकि यह बिहार के लाखों गरीब और प्रवासी मतदाताओं को वोटिंग अधिकार से वंचित करने का खतरा पैदा कर सकता है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि ECI (Election Commission of India) ने बिना किसी व्यापक सूचना और समुचित समय के, दस्तावेज़ों के लिए सख्त और सीमित समय-सीमा तय कर दी है। खास बात यह है कि इस सूची में आधार कार्ड और राशन कार्ड को भी दस्तावेज़ के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
चुनाव आयोग का बचाव, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस भेजने को कहा
मुख्य चुनाव आयुक्त की ओर से जवाब दिया गया है कि यह प्रक्रिया पूरे देश में लागू की जाएगी और बिहार इसमें पहला राज्य होगा। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि याचिकाकर्ता अपने दस्तावेज़ों की प्रतियां केंद्र सरकार, ECI, Attorney General of India और अन्य संबंधित पक्षों को पूर्व सूचना के साथ भेजें।
INDIA गठबंधन पहले ही इस मुद्दे पर कानूनी विकल्पों की तलाश कर रहा है। गठबंधन का कहना है कि इस संशोधन से बिहार की लगभग 20% आबादी, खासकर प्रवासी मजदूरों, को बाहर कर दिया जाएगा।