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Bihar चुनाव से पहले मतदाता सूची पुनरीक्षण पर विपक्ष का सवाल इतनी जल्दबाज़ी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं

INDIA गठबंधन के नेताओं ने चुनाव आयोग से की मुलाकात, बोले लोग इतने कम समय में दस्तावेज़ नहीं जुटा पाएंगे, यह बराबरी के मैदान के खिलाफ है”

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चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद मीडिया को जानकारी देते कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी।

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर विपक्षी INDIA गठबंधन ने तीखा ऐतराज जताया है। बुधवार को गठबंधन के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने नई दिल्ली में चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की और इस प्रक्रिया की समयसीमा व मंशा पर सवाल खड़े किए।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने मुलाकात के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, “2003 के बाद 22 साल में बिहार में चार-पांच चुनाव हो चुके हैं। क्या वो सभी नियमों के खिलाफ हुए? अगर पुनरीक्षण करना था तो जनवरी-फरवरी में किया जा सकता था, जून के अंत में अचानक इसकी घोषणा क्यों हुई?

दस्तावेज़ जुटाने में आम लोगों को होगी परेशानी

गठबंधन नेताओं का कहना है कि इतनी कम समयसीमा में 7.75 करोड़ मतदाताओं के विवरण को अपडेट करना एक असंभव कार्य है। लोगों को आवश्यक दस्तावेज़ जुटाने और उन्हें प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया है। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में असमानता और आम जनता के अधिकारों के खिलाफ बताया।

चुनाव आयोग की सफाई

चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कुछ लोग पार्टी प्रमुखों द्वारा अधिकृत न होकर भी आए थे, फिर भी आयोग ने प्रति पार्टी दो लोगों को आमंत्रित किया।” आयोग के अनुसार, यह प्रक्रिया मतदाता सूची को पारदर्शी और अद्यतन रखने के लिए आवश्यक है।

क्या है SIR और इसका विवाद क्या है?

SIR यानी Special Intensive Revision, एक प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूची का गहन निरीक्षण किया जाता है। इसमें नई एंट्री, पुराने नामों को हटाना, और विवरणों को सुधारना शामिल होता है। लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया चुनाव से ठीक पहले की जा रही है, जिससे शंका पैदा होती है कि यह कुछ वर्गों को मतदान प्रक्रिया से बाहर रखने की साजिश हो सकती है।

जून में घोषणा जुलाई में पूरा काम — ये कैसे संभव है?

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि “जब 2003 में यह प्रक्रिया हुई थी, तब एक साल बाद लोकसभा चुनाव हुए थे और दो साल बाद विधानसभा चुनाव। अब जब केवल एक महीना बचा है, तो इस तरह का भारी-भरकम कार्य कैसे निष्पक्ष रूप से हो सकता है?”

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