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शैफाली वर्मा की वापसी की कहानी – रोहतक की ‘छोरी’ जिसने दुनिया को दिखाया असली जज़्बा
टीम से बाहर होने के बाद भी हार नहीं मानी, घरेलू क्रिकेट में की धुआंधार वापसी और वर्ल्ड कप फाइनल में रच दिया इतिहास
कहते हैं कि असली खिलाड़ी वही होता है जो हार के बाद खुद को फिर से खड़ा कर सके। शैफाली वर्मा, रोहतक की वही ‘छोरी’, जिसने कभी क्रिकेट की दुनिया में अपनी आक्रामक बल्लेबाज़ी से तहलका मचाया था, अब वापसी की मिसाल बन चुकी हैं।
महिलाओं के वर्ल्ड कप 2025 फाइनल में जब भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराया, तो इस जीत के केंद्र में थीं 21 वर्षीय शैफाली वर्मा। 76 गेंदों पर 87 रन और फिर दो विकेट — यह सब किसी सपने से कम नहीं था। मगर इस सपने के पीछे महीनों की मेहनत, निराशा और उम्मीदों की लंबी कहानी छिपी है।
टीम से बाहर और दिल टूटा लेकिन हौसला नहीं
पिछले साल जब शैफाली का नाम टीम से बाहर हुआ, तो उनके पिता संजय वर्मा अस्पताल में हार्ट अटैक के बाद भर्ती थे। शैफाली ने यह खबर एक हफ्ते तक उनसे छुपाई ताकि उनके स्वास्थ्य पर असर न पड़े। बाद में जब पिता को पता चला, तो उन्होंने वही किया जो वो हमेशा करते आए थे — शैफाली को नेट्स पर लेकर गए।
“मैं चाहता था कि उसे लगे सब ठीक है, और वो फिर से तैयारी शुरू करे,” कहते हैं संजय।

मेहनत और भरोसे की कहानी
टीम से बाहर होने के बाद शैफाली ने घरेलू क्रिकेट में ऐसा प्रदर्शन किया जिसने चयनकर्ताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया।
उन्होंने BCCI वन-डे ट्रॉफी में 527 रन (औसत 75.28, स्ट्राइक रेट 152.31), फिर विमेंस चैलेंजर ट्रॉफी में 414 रन (औसत 82.80) और विमेंस प्रीमियर लीग में 306 रन बनाए।
पिता का मंत्र हमेशा वही था — “बस तू तैयार रहना।”
कप्तान हरमनप्रीत का भरोसा
टीम इंडिया की कप्तान हरमनप्रीत कौर ने बताया कि जब शैफाली टीम में लौटीं, तो वो घरेलू टूर्नामेंट में ज्यादा ओवर फेंक रही थीं। “वो बोलीं – ‘सिर, मैं 10 ओवर डालने को तैयार हूं।’ और जब फाइनल आया, तो हमने उन्हें गेंद थमाई, और उन्होंने दो अहम विकेट लेकर मैच पलट दिया,” हरमनप्रीत ने कहा।
पिता-बेटी का रिश्ता बना प्रेरणा
शैफाली की वापसी सिर्फ मैदान पर नहीं, बल्कि मानसिक मजबूती का प्रतीक है। पिता कहते हैं, “उसने अपने उतार-चढ़ाव में यही सीखा कि वापसी उसी को करनी है। मैंने बस उसे याद दिलाया कि तू वही लड़की है जिसने अंडर-19 वर्ल्ड कप जीता था, टी20 वर्ल्ड कप फाइनल तक पहुंची थी और महिला टेस्ट में सबसे तेज़ डबल सेंचुरी मारी थी।”
मंदिर से मैदान तक – एक भावनात्मक सफर
जब उन्हें वर्ल्ड कप के लिए बुलावा मिला, तो पिता ने राजस्थान के मानसा देवी मंदिर में माथा टेका। अब वो फिर से वहां जाने की तैयारी में हैं — इस बार शुक्रिया अदा करने के लिए।
“पहली बार प्रार्थना थी सफलता की, अब प्रार्थना होगी आभार की,” वो मुस्कराते हुए कहते हैं।

शैफाली की कहानी सिर्फ क्रिकेट नहीं, बल्कि सपनों, संघर्ष और भरोसे की कहानी है — एक ऐसी लड़की की जिसने यह साबित किया कि चाहे जितनी मुश्किल हो, ‘छोरी रोहतक की है, हार मानना उसे आता ही नहीं।’
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