Connect with us

Stock Market

टाटा ट्रस्ट्स विवाद में नई करवट: मेहली मिस्त्री ने दिया इस्तीफ़ा, कहा “संस्थान से बड़ा कोई नहीं”

रतन टाटा के करीबी और लंबे समय से जुड़े रहे मेहली मिस्त्री ने ट्रस्ट से किनारा किया, चेयरमैन नोएल टाटा को लिखी चिट्ठी में जताई संस्था की साख को लेकर चिंता

Published

on

Tata Trusts Row: Mehli Mistry resigns citing reputation concerns | Dainik Diary
टाटा ट्रस्ट्स से इस्तीफ़ा देने वाले मेहली मिस्त्री ने कहा — “कोई व्यक्ति संस्था से बड़ा नहीं, उसकी साख सर्वोपरि है।”

भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित परोपकारी संस्थानों में से एक टाटा ट्रस्ट्स में पिछले कुछ महीनों से चल रही अंदरूनी खींचतान ने अब नया मोड़ ले लिया है। मेहली मिस्त्री, जो लंबे समय से रतन टाटा के करीबी और टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी थे, ने इस्तीफ़ा दे दिया है।

मिस्त्री ने अपने त्यागपत्र में लिखा,

“किसी संस्था से बड़ा कोई व्यक्ति नहीं होता। अगर कोई कदम संस्था की साख को नुकसान पहुँचा सकता है, तो उसे रोकना ही सही होगा।”

उन्होंने यह भी कहा कि उनका संकल्प रतन टाटा की उस दृष्टि के प्रति है, जिसमें “टाटा ट्रस्ट्स को विवादों से दूर रखना और सार्वजनिक हित को सर्वोपरि मानना” शामिल है।

नोएल टाटा को भेजी चिट्ठी

नोएल टाटा को भेजे गए पत्र में मिस्त्री ने लिखा कि “हाल की घटनाओं ने संस्था की गरिमा पर प्रश्नचिन्ह लगाया है, और मैं नहीं चाहता कि यह विवाद ट्रस्ट की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाए।”
उन्होंने आगे कहा —

cyrus tata 4


“मेरे लिए यह सौभाग्य की बात रही कि मुझे रतन टाटा के व्यक्तिगत समर्थन से ट्रस्टी के रूप में सेवा का अवसर मिला। अब जब संस्था के भीतर असहमति की स्थिति बनी है, मैं स्वेच्छा से किनारा कर रहा हूँ।”

तीन ट्रस्टी थे विवाद में शामिल

सूत्रों के अनुसार, 28 अक्टूबर को हुई बैठक में तीन प्रमुख ट्रस्टी — नोएल टाटा, वेंणु श्रीनिवासन और विजय सिंह — ने मिस्त्री के पुनर्नियुक्ति प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। इसके बाद महाराष्ट्र चैरिटी कमिश्नर के समक्ष मिस्त्री ने “न्यायपूर्ण सुनवाई” की मांग करते हुए एक कैविएट याचिका भी दाखिल की थी।

हालाँकि, कानूनी सलाह और संस्थागत छवि को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अब स्वयं ही पद छोड़ने का निर्णय लिया।

“शांत परोपकार और नैतिकता की परंपरा जारी रहे”

अपने पत्र में मिस्त्री ने लिखा कि टाटा ट्रस्ट्स हमेशा “नैतिक शासन, शांत परोपकार और सेवा की भावना” का प्रतीक रहा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि आगे भी ट्रस्ट इन्हीं सिद्धांतों पर चलेगा।

“मैं कामना करता हूँ कि आने वाले समय में सभी निर्णय पारदर्शिता और जनहित को प्राथमिकता देते हुए लिए जाएँ।”

सत्ता समीकरणों में बदलाव

विश्लेषकों का मानना है कि मिस्त्री का यह कदम ट्रस्ट के भीतर शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है। नोएल टाटा, जिन्होंने इस साल की शुरुआत में चेयरमैन का पद संभाला, अब और अधिक प्रभावी स्थिति में दिखाई दे रहे हैं।

मेहली मिस्त्री न केवल रतन टाटा के करीबी थे, बल्कि सायरस मिस्त्री (पूर्व चेयरमैन, टाटा सन्स) के रिश्तेदार भी हैं। वे ट्रस्ट के कई महत्वपूर्ण निर्णयों में पर्दे के पीछे से सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं।

मतभेद के बावजूद सम्मान बरकरार

एक शीर्ष सूत्र ने बताया कि मिस्त्री का शांतिपूर्ण इस्तीफ़ा “संघर्ष की जगह सम्मान” का प्रतीक है। उन्होंने कहा,

“संस्था की मर्यादा बनाए रखने के लिए यह सही समय पर लिया गया परिपक्व निर्णय था।”

टाटा समूह के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि अब विवाद पर विराम लग सकता है और संस्था अपनी मूल दिशा — राष्ट्रसेवा और परोपकार — पर अधिक केंद्रित होगी।

image 1


टाटा ट्रस्ट्स की भूमिका

गौरतलब है कि टाटा ट्रस्ट्स, टाटा सन्स में लगभग 66 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है और भारत के सबसे बड़े परोपकारी समूहों में शामिल है। शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और नवाचार में इसका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।

रतन टाटा के कार्यकाल के दौरान संस्था के भीतर मतैक्य (consensus) पर निर्णय लिए जाते थे। लेकिन हाल की घटनाएँ दर्शाती हैं कि अब यह परंपरा बदलती दिख रही है।

भविष्य की राह

अब देखना यह होगा कि नोएल टाटा के नेतृत्व में ट्रस्ट किस दिशा में आगे बढ़ता है और क्या यह कदम संस्था के अंदर स्थिरता लाने में सहायक साबित होता है।

यह प्रकरण यह भी याद दिलाता है कि भारत के कॉर्पोरेट घरानों में भी पारदर्शिता और नैतिकता की परीक्षा निरंतर होती रहती है। मेहली मिस्त्री का यह कदम टाटा परंपरा में निहित सादगी और संस्थागत मूल्यों के प्रति गहरी निष्ठा का प्रतीक बन गया है।

अधिक अपडेट के लिए http://www.dainikdiary.com