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मेहली मिस्त्री का कानूनी दांव टाटा ट्रस्ट्स में शुरू हुआ नया पावर बैटल
टाटा ट्रस्ट्स से हटाए जाने से पहले निष्पक्ष सुनवाई की मांग—मेहली मिस्त्री ने महाराष्ट्र चैरिटी कमिश्नर के समक्ष दायर की ‘कावेयट याचिका’; नोएल टाटा गुट के खिलाफ शुरू हो सकता है हाई-प्रोफाइल कानूनी संघर्ष।
भारत के सबसे प्रभावशाली परोपकारी संगठनों में से एक टाटा ट्रस्ट्स अब एक नए विवाद के केंद्र में है। उद्योगपति मेहली मिस्त्री, जो लंबे समय से ट्रस्ट के विश्वस्त रहे हैं, ने अपने हटाए जाने की आशंका के बीच महाराष्ट्र चैरिटी कमिश्नर के समक्ष एक ‘कावेयट याचिका’ (Caveat Petition) दाखिल कर दी है। यह कानूनी कदम संकेत देता है कि वह अपने खिलाफ किसी भी एकतरफा निर्णय को चुनौती देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
कावेयट याचिका क्या है और क्यों अहम है
कावेयट याचिका एक पूर्व-खतरनाक (pre-emptive) कानूनी उपाय है, जो यह सुनिश्चित करती है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई आदेश बिना उसे सुने पारित न हो सके। मेहली मिस्त्री ने यह याचिका इस शर्त पर दायर की है कि यदि टाटा ट्रस्ट्स उनके पद से हटाने की सिफारिश करते हैं, तो उन्हें पहले अपनी बात रखने का अवसर दिया जाए।
इस याचिका की कॉपियां टाटा ट्रस्ट्स के सभी ट्रस्टीज़, जिनमें चेयरमैन नोएल टाटा, वेनु श्रीनिवासन, और विजय सिंह शामिल हैं, को भेजी गई हैं। यह कदम मिस्त्री की इस दृढ़ता को दर्शाता है कि वह अपने हटाए जाने को न तो चुपचाप स्वीकार करेंगे, न ही “अनुचित प्रक्रिया” को अनदेखा करेंगे।

ट्रस्ट के अंदर बढ़ता तनाव
मामले की जड़ें 28 अक्टूबर की बैठक से जुड़ी हैं, जब तीन ट्रस्टी—नोएल टाटा, वेनु श्रीनिवासन, और पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह—ने मिस्त्री की पुनर्नियुक्ति के खिलाफ वोट दिया। इस फैसले के बाद मेहली मिस्त्री का ट्रस्टी पद पर बने रहना रोक दिया गया।
कानूनी तौर पर, ट्रस्ट की संरचना में किसी भी बदलाव के लिए महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट्स एक्ट के तहत चैरिटी कमिश्नर की स्वीकृति जरूरी होती है। मिस्त्री की कावेयट के चलते अब कमिश्नर कोई आदेश बिना उन्हें सुने पारित नहीं कर सकते। यह स्पष्ट संकेत है कि मामला अब न्यायिक टकराव की ओर बढ़ सकता है।
कानूनी विशेषज्ञ क्या कहते हैं
कानूनी जानकारों का मानना है कि मिस्त्री की यह रणनीति न केवल उनकी प्रक्रियागत आपत्ति को मजबूत बनाती है, बल्कि ट्रस्ट्स की गवर्नेंस, पारदर्शिता और ट्रस्टी अधिकारों पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है। यदि यह विवाद अदालत तक पहुँचता है, तो यह टाटा ट्रस्ट्स के भीतर वर्षों से चले आ रहे “सम्मति और सहमति के मॉडल” की भी परीक्षा होगा, जिसे रतन टाटा के कार्यकाल में हमेशा प्राथमिकता दी जाती थी।
शक्ति समीकरणों में बदलाव की सुगबुगाहट
मेहली मिस्त्री का हटना केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं माना जा रहा। यह माना जा रहा है कि इससे नोएल टाटा गुट की पकड़ और मजबूत हुई है। रतन टाटा के करीबी रहे मेहली मिस्त्री को हमेशा “साइलेंट स्ट्रैटेजिस्ट” कहा गया, जो ट्रस्ट की कई रणनीतिक नीतियों के पीछे की सोच माने जाते थे।
अब जबकि नोएल टाटा ने चेयरमैन पद संभाल लिया है, मिस्त्री की अनुपस्थिति शक्ति संतुलन को एक नई दिशा दे सकती है।

पृष्ठभूमि: सर्वसम्मति बनाम वोटिंग की परंपरा
दिलचस्प बात यह है कि मिस्त्री हाल ही में वेनु श्रीनिवासन की लाइफटाइम ट्रस्टी के रूप में नियुक्ति के पक्ष में थे। उन्होंने अपनी मंजूरी इस शर्त पर दी थी कि भविष्य में ट्रस्ट्स में किसी भी नियुक्ति या नवीनीकरण के लिए सर्वसम्मति (unanimity) आवश्यक होगी। लेकिन जब श्रीनिवासन, नोएल टाटा और विजय सिंह ने इस शर्त को नज़रअंदाज़ करते हुए वोटिंग द्वारा निर्णय किया, तो टाटा ट्रस्ट्स में परंपरा बनाम प्रक्रिया की बहस छिड़ गई।
आगे क्या होगा
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मिस्त्री अपनी कानूनी लड़ाई किस रूप में आगे बढ़ाते हैं। वह या तो हटाए जाने की वैधता को चुनौती दे सकते हैं या ट्रस्ट्स के वोटिंग मैकेनिज्म को ही अदालत में सवालों के घेरे में ला सकते हैं। अगर ऐसा हुआ, तो यह मामला सायरस मिस्त्री बनाम टाटा संस विवाद के बाद समूह के इतिहास की दूसरी बड़ी लीगल टकराव गाथा बन सकता है।
फिलहाल, दोनों पक्षों ने इस मामले पर कोई सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया है। लेकिन मिस्त्री की कावेयट याचिका ने यह साफ़ कर दिया है कि यह लड़ाई आसान नहीं होगी—और न ही शांत।
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