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बेन स्टोक्स के ड्रॉ ड्रामा पर फूटा गौतम गंभीर का गुस्सा बोले हम यहां किसी को खुश करने नहीं आए
जडेजा और सुंदर के शतक के करीब होने पर हैंडशेक ऑफर से भड़के स्टोक्स, गंभीर ने दिया तीखा जवाब– “अगर इंग्लिश बल्लेबाज़ होते, तब भी क्या छोड़ देते मैच?”

एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी का चौथा टेस्ट सिर्फ एक क्रिकेट मैच नहीं बल्कि जज़्बातों और रणनीतियों का ऐसा संग्राम बन गया, जिसमें जीत से ज्यादा अहम हो गया सम्मान और क्रिकेट की संस्कृति। इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स का “हैंडशेक ड्रामा” और भारत के दो जुझारू बल्लेबाज़ों – रविंद्र जडेजा और वॉशिंगटन सुंदर – का धैर्य अब क्रिकेट जगत में चर्चा का विषय बन गया है।
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दरअसल, जब मैच के आखिरी घंटे में भारत ड्रॉ की ओर बढ़ रहा था, और जडेजा 89* व सुंदर 80* पर थे, तब स्टोक्स ने खेल समाप्त करने का प्रस्ताव दिया। लेकिन भारतीय बल्लेबाज़ों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। भारत ने नियमों के तहत अपने स्कोर को आगे बढ़ाना उचित समझा, क्योंकि दोनों खिलाड़ी व्यक्तिगत माइलस्टोन के बेहद करीब थे।
स्टोक्स इस इनकार से इतने नाराज़ हो गए कि उन्होंने सिर्फ विरोध दर्ज करने के लिए गेंदबाज़ी आक्रमण में हैरी ब्रूक को उतार दिया, जो नियमित गेंदबाज़ नहीं हैं। स्टोक्स ने व्यंग्य में जडेजा से कहा, “क्या आप हैरी ब्रूक के खिलाफ शतक बनाना चाहते हैं?” लेकिन चेन्नई सुपर किंग्स के उपकप्तान जडेजा ने मुस्कुराते हुए संयम से जवाब दिया, “मैं कुछ नहीं कर सकता।” और अगली ही गेंद पर उन्होंने ब्रूक को छक्का लगाकर अपना पांचवां टेस्ट शतक पूरा कर लिया।

गौतम गंभीर, जो अपनी बेबाक रायों के लिए जाने जाते हैं, ने इस पूरे प्रकरण पर तीखी प्रतिक्रिया दी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा,
“अगर कोई बल्लेबाज़ 90 और दूसरा 85 पर है, तो क्या वे शतक के हकदार नहीं हैं? अगर इंग्लैंड के खिलाड़ी उस स्कोर के करीब होते, क्या वे मैच छोड़कर चले जाते? नहीं! हमारे खिलाड़ियों ने दबाव झेला, संघर्ष किया और शतक बनाए। हम यहां किसी को खुश करने नहीं आए हैं। हम यहां खेलने आए हैं।”
कोलकाता नाइट राइडर्स के मेंटर गंभीर ने यह भी कहा कि भारतीय खिलाड़ियों को नीचा दिखाने की इस कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। “यह टेस्ट क्रिकेट है, कोई प्रदर्शनी मैच नहीं,” उन्होंने जोर देकर कहा।
भारत के इस फैसले की पूर्व क्रिकेटरों से लेकर सोशल मीडिया तक सराहना हो रही है। क्रिकेट एक्सपर्ट्स का मानना है कि हर खिलाड़ी को अपना शतक पूरा करने का हक़ है, और ड्रॉ की पेशकश को ठुकराना किसी भी नियम के खिलाफ नहीं।
बेन स्टोक्स, जिन्हें आमतौर पर एक शांत लेकिन जोशीला कप्तान माना जाता है, का यह व्यवहार उनके संयम पर सवाल खड़े करता है। यह घटना इंग्लैंड की असहजता को दर्शाती है जब भारतीय खिलाड़ी न केवल डटे रहते हैं, बल्कि मैच को अपने नियंत्रण में ले आते हैं।
इस घटना ने टेस्ट क्रिकेट में खेल भावना और व्यक्तिगत उपलब्धियों के बीच संतुलन की बहस को फिर से हवा दे दी है। लेकिन एक बात साफ है – भारतीय खिलाड़ी अब सिर्फ मैच खेलने नहीं, बल्कि मानसिक लड़ाई जीतने भी आते हैं।