बेंगलुरु कर्नाटक
बेंगलुरु में शादी के लिए बेची जमीन पर नया विवाद: बेटी ने 19 साल बाद ठोका मालिकों पर दावा
रेडिट पोस्ट से फैला बवाल, पिता के फैसले से बनी शादी, अब बेटी मांग रही मुआवजा, संपत्ति विवाद ने बढ़ाई कोर्ट की दिक्कतें

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु का एक शांत मोहल्ला इन दिनों अचानक कानूनी विवाद का केंद्र बन गया है। मामला एक ऐसे भूखंड से जुड़ा है जो साल 2006 में बेचा गया था और कहा जाता है कि उस रकम से बेटी की शादी करवाई गई थी। लेकिन अब वही बेटी मौजूदा मालिकों को नोटिस भेजकर कह रही है कि सौदा उसकी सहमति के बिना हुआ और वह इसका हकदार है!
मौजूदा भूखंड मालिक, जिनके पिता ने यह प्लॉट खरीदा था, ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट पर इस मामले को उजागर कर दिया। सोशल पोस्ट में उन्होंने साफ कहा कि किसी पावर ऑफ अटॉर्नी (POA) की जरूरत नहीं पड़ी थी, पूरे दस्तावेज सही तरीके से रजिस्टर्ड हुए थे और तब से परिवार नियमित प्रॉपर्टी टैक्स भरता आ रहा है। खाता प्रमाणपत्र आज भी उन्हीं के नाम पर है, जिससे मालिकाना हक और मजबूत होता है।
लेकिन इस पारिवारिक झगड़े में ट्विस्ट तब आया जब जमीन बेचने वाले व्यक्ति की इकलौती बेटी ने कानूनी मोर्चा खोल दिया। युवती का दावा है कि उसकी जानकारी के बिना सौदा हुआ। वहीं खरीदार पक्ष का कहना है कि जमीन बेचने वाले पिता ने खुद यह स्वीकारा था कि बेटी की शादी का खर्च उठाने के लिए ही यह भूखंड बेचा गया था।
कानूनी जानकारों के मुताबिक, बेंगलुरु जैसे तेजी से महंगी होती रियल एस्टेट मार्केट में पुराने सौदों को चुनौती देने के ऐसे मामले अब आम होते जा रहे हैं। सिर्फ बेंगलुरु ही नहीं, मुंबई, दिल्ली और गुरुग्राम जैसे शहरों में भी ऐसे विवाद लगातार चर्चा में रहते हैं।

अगर मौजूदा दस्तावेज पुख्ता हैं तो खरीददार पक्ष मजबूत स्थिति में होगा। हालांकि, कोर्ट केस के झंझट से बचना आसान नहीं है। कई बार ऐसे विवाद में परिवार टूट जाते हैं और कानूनी खर्चा भी आम आदमी की कमर तोड़ देता है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट इस मामले को कैसे देखता है — क्या बेटी का दावा सही ठहरता है या फिर यह भी उन हजारों संपत्ति विवादों में जुड़ जाएगा जिनका निपटारा सालों तक नहीं हो पाता।
दैनिक डायरी की सलाह:
अगर आपके पास भी कोई पुरानी संपत्ति है तो कागजात अद्यतन रखें, रजिस्ट्री के समय परिवार के हर सदस्य की सहमति सुनिश्चित करें और समय-समय पर सरकारी रिकॉर्ड्स को जांचते रहें। वरना अचानक कोई पुराना विवाद आपको भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर कटवा सकता है।

बेंगलुरु कर्नाटक
बेंगलुरु की जाम में फंसी जिंदगी: 12 किलोमीटर के लिए 3 घंटे लोग बोले- हर दिन जंग की तैयारी
आईटी सिटी बेंगलुरु में ट्रैफिक इतना भीषण हो गया है कि ऑफिस से घर लौटना अब सिर्फ सफर नहीं, जंग जैसा लगने लगा है। वायरल पोस्ट ने खोल दी सिस्टम की पोल।

भारत की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में ट्रैफिक का जाल अब लोगों के धैर्य की परीक्षा लेने लगा है। हाल ही में एक शहरवासी ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया कि कैसे 12 किलोमीटर की दूरी तय करने में उन्हें 3 घंटे लग गए — वो भी बिना बारिश, बिना किसी जाम या प्रदर्शन के!
उन्होंने लिखा कि शाम 6 बजे ऑफिस से निकले और रात 9:15 बजे घर पहुंचे। बस समय पर नहीं आई, ऐप्स से कोई अपडेट नहीं मिला। फिर दूसरी बस ली, लेकिन बीच रास्ते में उतार दिया गया। इसके बाद शुरू हुआ ऑटो पकड़ने का संघर्ष। नम्मा यात्री ऐप ने भी कोई राहत नहीं दी। ड्राइवर ने ₹50 से ज्यादा टिप मांगी, बिना जिसके कोई सवारी लेने को तैयार नहीं था।
इस पोस्ट ने हजारों लोगों की अनकही कहानी को जुबान दी है। कई लोगों ने बताया कि बाइक टैक्सी बंद होने से एक आसान विकल्प भी खत्म हो गया। कुछ ने तो आशंका जताई कि आने वाले दिनों में रोड टैक्स और पेट्रोल कीमतें बढ़ाकर हालात और खराब कर दिए जाएंगे।

ट्रैफिक के साथ-साथ मेट्रो नेटवर्क की धीमी रफ्तार और अधूरी कनेक्टिविटी भी लोगों की परेशानी बढ़ा रही है। एक यूजर ने कहा कि शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों में मेट्रो अब तक नहीं पहुंच पाई। इसके चलते लोग रोजाना घंटों ट्रैफिक में फंसकर अपनी सेहत और मानसिक शांति खो रहे हैं।
कुछ लोगों ने यह भी बताया कि इतना थकाऊ सफर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। कई लोग अब छोटे शहरों या अपने गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं ताकि सुकून की जिंदगी फिर से जी सकें।
बेंगलुरु का ट्रैफिक अब महज जाम नहीं रहा, बल्कि एक ऐसी चुनौती बन चुका है जो हर दिन लाखों लोगों को ‘युद्ध योद्धा’ बना देता है। सवाल यही है कि क्या कभी इस जंग का अंत होगा?भारत की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में ट्रैफिक का जाल अब लोगों के धैर्य की परीक्षा लेने लगा है। हाल ही में एक शहरवासी ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया कि कैसे 12 किलोमीटर की दूरी तय करने में उन्हें 3 घंटे लग गए — वो भी बिना बारिश, बिना किसी जाम या प्रदर्शन के!
उन्होंने लिखा कि शाम 6 बजे ऑफिस से निकले और रात 9:15 बजे घर पहुंचे। बस समय पर नहीं आई, ऐप्स से कोई अपडेट नहीं मिला। फिर दूसरी बस ली, लेकिन बीच रास्ते में उतार दिया गया। इसके बाद शुरू हुआ ऑटो पकड़ने का संघर्ष। नम्मा यात्री ऐप ने भी कोई राहत नहीं दी। ड्राइवर ने ₹50 से ज्यादा टिप मांगी, बिना जिसके कोई सवारी लेने को तैयार नहीं था।
इस पोस्ट ने हजारों लोगों की अनकही कहानी को जुबान दी है। कई लोगों ने बताया कि बाइक टैक्सी बंद होने से एक आसान विकल्प भी खत्म हो गया। कुछ ने तो आशंका जताई कि आने वाले दिनों में रोड टैक्स और पेट्रोल कीमतें बढ़ाकर हालात और खराब कर दिए जाएंगे।
ट्रैफिक के साथ-साथ मेट्रो नेटवर्क की धीमी रफ्तार और अधूरी कनेक्टिविटी भी लोगों की परेशानी बढ़ा रही है। एक यूजर ने कहा कि शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों में मेट्रो अब तक नहीं पहुंच पाई। इसके चलते लोग रोजाना घंटों ट्रैफिक में फंसकर अपनी सेहत और मानसिक शांति खो रहे हैं।
कुछ लोगों ने यह भी बताया कि इतना थकाऊ सफर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। कई लोग अब छोटे शहरों या अपने गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं ताकि सुकून की जिंदगी फिर से जी सकें।
बेंगलुरु का ट्रैफिक अब महज जाम नहीं रहा, बल्कि एक ऐसी चुनौती बन चुका है जो हर दिन लाखों लोगों को ‘युद्ध योद्धा’ बना देता है। सवाल यही है कि क्या कभी इस जंग का अंत होगा?
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