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Bank Holiday Today जानें क्या 7 जुलाई को मुहर्रम के बाद भी खुलेंगे बैंक या नहीं

Bank Holiday Today? जानें क्या 7 जुलाई को मुहर्रम के बाद भी खुलेंगे बैंक या नहीं

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7 जुलाई को बैंक बंद हैं या खुले? जानिए मुहर्रम के बाद की बैंक हॉलिडे सच्चाई
7 जुलाई को बैंक रहेंगे खुले — मुहर्रम के बाद छुट्टी को लेकर सोशल मीडिया पर फैला भ्रम हुआ दूर

अगर आप भी इस सोमवार यानी 7 जुलाई को बैंक से जुड़ा कोई जरूरी काम निपटाने की सोच रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद अहम है। मुहर्रम के अवसर पर देशभर में अवकाश की उम्मीद के चलते सोशल मीडिया पर भ्रम फैला, लेकिन अब इस पर स्थिति पूरी तरह साफ हो चुकी है।

दरअसल, इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम इस साल 27 जून से शुरू हुआ था और इसका सबसे पवित्र दिन अशूरा यानी 10वां दिन, 6 जुलाई रविवार को मनाया गया। यह गजटेड अवकाश के तहत आता है, लेकिन चूंकि यह रविवार को पड़ा, इस कारण 7 जुलाई सोमवार को कोई छुट्टी नहीं है

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और राज्यों की सरकारें हर साल बैंक हॉलिडे की लिस्ट जारी करती हैं, जिसमें राष्ट्रीय पर्व, धार्मिक उत्सव, क्षेत्रीय त्योहार और प्रशासनिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए छुट्टियों का निर्धारण होता है। 7 जुलाई का दिन इन सूचीबद्ध छुट्टियों में शामिल नहीं है, इसलिए सभी सरकारी और निजी बैंक, जैसे कि SBI, HDFC, ICICI, सामान्य रूप से खुले रहेंगे।

जुलाई 2025 के बैंक हॉलिडे शेड्यूल पर एक नज़र

साप्ताहिक अवकाश (सभी राज्यों में लागू):

  • 7 जुलाई (सोमवार) – ✔ बैंक खुले रहेंगे
  • 13 जुलाई (दूसरा शनिवार) बैंक बंद
  • 14 जुलाई (रविवार) – बैंक बंद
  • 27 जुलाई (चौथा शनिवार) – बैंक बंद
  • 28 जुलाई (रविवार) – बैंक बंद

अन्य क्षेत्रीय अवकाश (राज्य विशेष पर निर्भर):

  • 17 जुलाई – उड़ीसा: राजा पर्व
  • 21 जुलाई – नागालैंड: ख्रिस्तोफेस्ट
  • 29 जुलाई – महाराष्ट्र: आषाढ़ी एकादशी

इसलिए यदि आप 7 जुलाई को बैंक से संबंधित कोई कामकाज करने की योजना बना रहे हैं, तो बेफिक्र रहें — बैंक अपने निर्धारित समय पर कार्य करेंगे।

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इस साल आम कितना मीठा कितना महंगा जानिए फसल मंडी और मौसम का पूरा गणित

कहीं बंपर पैदावार, कहीं नुकसान! उत्तर से दक्षिण तक कैसे बदला फलों के राजा का हाल — कीमत से लेकर निर्यात तक की पूरी रिपोर्ट

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मंडियों में सजा आम का मौसम — इस साल मिठास और कीमतों का अलग-अलग चेहरा
मंडियों में सजा आम का मौसम — इस साल मिठास और कीमतों का अलग-अलग चेहरा

भारत में गर्मियों का मतलब सिर्फ चिलचिलाती धूप नहीं, बल्कि आम की मिठास भी है। लेकिन 2025 में इस मिठास पर मौसम और कीटों ने कई जगह पानी फेर दिया। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बागानों में जहां बंपर फसल ने किसानों को राहत दी, वहीं दक्षिण भारत के बागवान कीट और ओलावृष्टि से परेशान नजर आए।

उत्तर भारत में रिकार्ड उत्पादन — किसानों के चेहरे पर मुस्कान
मलिहाबाद का दशहरी हो या सहारनपुर का लंगड़ा, उत्तर प्रदेश में इस साल बाग खिले हुए हैं। अच्छी पैदावार ने लोकल मंडियों में रौनक बढ़ा दी। वहीं महाराष्ट्र का हापुस यानी अल्फोंसो, जिसने फिर से अपनी बादशाहत साबित की, उसकी अंतरराष्ट्रीय मांग भी मजबूत रही। हालांकि कुछ क्षेत्रों में असमय बारिश से नुकसान भी हुआ।

दक्षिण के किसानों की परेशानी — बंगनपल्ली पर कीटों का वार
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में बंगनपल्ली और तोतापुरी किस्मों को कीट और फफूंदी ने बड़ा नुकसान पहुंचाया। किसानों ने बताया कि इस साल उत्पादन और क्वालिटी दोनों पर असर पड़ा। इसके उलट, बिहार और बंगाल में हिमसागर और मालदह की पैदावार ने स्थानीय बाजारों को सस्ता और मीठा आम दिया।

महानगरों में कीमतों का खेल — आम आदमी की जेब पर असर
दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे शहरों में आम की कीमतें ₹120 से ₹180 प्रति किलो तक पहुंच गई हैं। दिल्ली में दशहरी और लंगड़ा 120-160 में बिक रहे हैं तो मुंबई में हापुस की कीमतें 150-180 के आसपास हैं। कोलकाता और पटना में मालदह और हिमसागर अब भी 50-90 में मिल रहे हैं।

मंडियों में सजा आम का मौसम — इस साल मिठास और कीमतों का अलग-अलग चेहरा



निर्यात ने तोड़ी रिकॉर्ड — दुनिया में छाया भारतीय आम
2024 में भारत ने करीब 20% अधिक आम निर्यात किया। यूरोप, खाड़ी देशों और मध्य एशिया में हापुस, केसर और बंगनपल्ली की डिमांड बनी हुई है। उद्योग जानकारों के अनुसार 2030 तक भारत का आम उत्पादन 23.3 मिलियन टन तक पहुंचने की उम्मीद है।

दूधिया मालदह — बिहार का गर्व और GI टैग की राह
बिहार का दूधिया मालदह अपनी फाइबर-फ्री बनावट और दूध जैसी चमक के कारण खास है। स्थानीय कहावत है, “खालो मालदह, भूल जाओ हापुस।” इसे GI टैग दिलाने की कवायद तेजी से चल रही है।

जलवायु परिवर्तन की चुनौती — मिठास बनाए रखने की जंग
बारिश, लू और तापमान में उतार-चढ़ाव ने इस साल कई जगह आम के फूलों को झड़ा दिया। कीट और बीमारियों ने छोटे किसानों की कमर तोड़ दी। अब वक्त आ गया है कि टिकाऊ खेती और जलवायु संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए ताकि आने वाले सालों में फलों का राजा यूं ही मीठा बना रहे।

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