Automobile
कोलकाता की पिच ने खोल दी भारतीय बल्लेबाज़ों की कमजोरी, एक शाम में क्यों बिखर गया पूरा टॉप ऑर्डर?
ईडन गार्डन्स की टूटती सतह पर भारतीय बल्लेबाज़ ‘इन-बिटवीन’ खेल में उलझे, गलत शॉट चयन और कमजोर मानसिक तैयारी ने बनाया हालात और खराब
कोलकाता का ईडन गार्डन्स हमेशा से भारतीय क्रिकेट की यादों का बड़ा हिस्सा रहा है, लेकिन इस बार की पिच ने टीम इंडिया के बल्लेबाज़ों के सामने बिल्कुल अलग चुनौती रख दी। भारत के टॉप और मिडिल ऑर्डर जिस तरह बिखरा, उसने एक बार फिर यह सवाल जगा दिया कि क्या हमारी बल्लेबाज़ी तकनीक और मानसिकता अब भी कठिन परिस्थितियों में टिकने के लिए तैयार नहीं है?
यह सिर्फ स्पिन या पेस का मुद्दा नहीं था—यह था करेक्टर, टेम्परामेंट और डिसीज़न—मेकिंग का इम्तहान। और अफसोस की बात यह है कि इस इम्तहान में टीम इंडिया ज्यादा देर टिक नहीं सकी।
पिच: एक “माइनफील्ड” जिसने बैट्समैनों की सोच बिगाड़ दी
मैच शुरू होते ही पिच ने अपनी असलियत दिखानी शुरू कर दी—
- सतह असमान रूप से टूटी हुई
- कुछ हिस्से बेहद हार्ड, कुछ बिल्कुल सॉफ्ट
- गेंद उठ भी रही थी, और नीचे भी रह रही थी
- स्किड होने और अचानक स्पिन होने में मात्र सेकंड का फर्क
ऐसी पिचों पर एक ही मंत्र काम करता है—
या तो पूरी तरह अटैक करो, या पूरी तरह डिफेंस में जाओ।
बीच की राह (in-betweenism) सबसे खतरनाक होती है।
दुर्भाग्य से, भारतीय बल्लेबाज़ इसी जाल में फँस गए।
- न वे पूरी तरह शॉट खेल पा रहे थे
- न वे ठोस डिफेंस कर पा रहे थे
नतीजा—आधे-अधूरे फुटवर्क और खराब शॉट चयन।
गलत शॉट चयन: हर गलत फैसला विकेट में बदल गया
ईडन की “वाइल्ड” पिच ने बल्लेबाजों से स्पष्ट निर्णय की उम्मीद की थी। मगर भारतीय बल्लेबाजों के शॉट कुछ ऐसे दिखे—
- अच्छे लेंथ की गेंद को कट करने की कोशिश
- शॉर्ट बॉल पर बिना कंट्रोल के पुल
- टर्न होती गेंद पर लूज़ डिफेंस
- अंदर आती गेंद पर लेट और गलत एंगल
यह सब दर्शाता है कि भारतीय बल्लेबाज़ पिच की प्रकृति और गेंदबाज़ों की प्लानिंग को सही से पढ़ ही नहीं पाए।
एक तरह से कहा जाए तो विकेट नहीं, बल्लेबाज़ चले गए।
मानसिक दबाव: जब हर गेंद “डर” बन जाए
एक मुश्किल पिच पर बल्लेबाज़ हर गेंद को शक की निगाह से देखने लगता है।
- एक सामान्य गेंद भी फैंग्स वाली दिखती है
- एक बाउंड्री-बॉल भी खतरा बन जाती है
- साधारण गुड-लेंथ डिलीवरी भी विकट-लेने वाली लगती है
यही हुआ ईडन में।
पिच पर नजरें टिकी थीं, गेंद पर नहीं।
इससे judgment बिगड़ा, सोच धुंधली हुई और गलत निर्णय लगातार होते गए।

टेम्परामेंट की कमी—दबाव में धैर्य की जरूरत थी
भारतीय बल्लेबाज़ों ने पिच की स्थिति देखते हुए अपने खेल को एडजस्ट करने में देर कर दी।
ऐसी पिचों पर सबक यह होता है—
- बैट को पूरी तरह शरीर के पास रखें
- शॉट चयन सीमित रखें
- जोखिम भरी गेंदों पर बल्ला न लगाएँ
- बिना शॉट खेले गेंदों को निकालकर bowler को थकाएँ
लेकिन टीम का सामूहिक दृष्टिकोण उल्टा दिखाई दिया।
टेम्परामेंट से ज्यादा जल्दबाज़ी और अनिश्चितता खेलती दिखी।
क्या यह भारतीय बल्लेबाज़ी की पुरानी समस्या है?
कठिन परिस्थितियों, असमान bounce या टर्न वाले विकेटों पर भारतीय बल्लेबाज़ों का संघर्ष नया नहीं है—
- वांडरर्स का टूटता विकेट
- ढाका की धीमी सतह
- अहमदाबाद की टर्निंग पिच
हर बार एक ही बात सामने आती है—
भारत के बल्लेबाज़ तकनीकी नहीं, मानसिक रूप से टूटते हैं।
कोलकाता ने यह कमी फिर उजागर कर दी।
आगे क्या सबक?
इस मैच से टीम इंडिया को कई सीखें मिलेंगी—
- पिच को समझकर तुरंत रणनीति तय करनी होगी
- “इन-बिटवीन” खेलने की आदत छोड़नी होगी
- बड़े मैचों में मानसिक मजबूती बढ़ानी होगी
- कठिन परिस्थितियों में टीम को एक लीडर बल्लेबाज़ की जरूरत है
- पैर की मूवमेंट और शॉट चयन पर ज्यादा ध्यान देना होगा
क्योंकि आधुनिक क्रिकेट में, पिच चाहे जैसी भी हो, गलती की कीमत वही चुकाता है जो मानसिक रूप से पहले टूटता है।
अधिक अपडेट के लिए DAINIK DIARY
