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असम मंत्री के ‘गोभी फार्मिंग’ पोस्ट से हंगामा, बिहार चुनाव के बीच क्यों भड़की राजनीतिक आग?
चुनावी नतीजों की गर्माहट में आया एक चार-शब्दों वाला पोस्ट बना राष्ट्रीय विवाद, विपक्ष ने कहा—“ये राजनीति का नया सबसे निचला स्तर”
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे जैसे-जैसे साफ होते गए, राजनीतिक माहौल और भी तेज़ होता गया। लेकिन इस बीच एक ऐसा सोशल मीडिया पोस्ट आया जिसने नई बहस, नए आरोप और नए सवाल खड़े कर दिए। असम के कैबिनेट मंत्री और भाजपा नेता अशोक सिंघल के एक छोटे से चार-शब्द वाले पोस्ट—“Bihar approves Gobi farming”—ने पूरे दिन का राजनीतिक आख्यान बदल दिया।
पोस्ट के साथ एक फूलती-फलती गोभी की खेती की तस्वीर थी। देखने में साधारण, पर उसके मायने कहीं गहरे निकाले गए। विपक्ष ने इसे बेहद गंभीर आरोपों से जोड़ दिया और यह मामला तुरंत राष्ट्रीय विवाद बन गया।
विपक्ष क्यों नाराज़ हुआ? विवाद की जड़ कहाँ है?
कांग्रेस, टीएमसी और कई विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि मंत्री का पोस्ट केवल एक खेती की तस्वीर नहीं था, बल्कि 1989 के भागलपुर दंगों से जुड़ी एक बेहद दर्दनाक घटना की तरफ इशारा था, जिसे समाज में “कैuliflower burial case” कहा गया था।
इस मामले को लेकर आरोप है कि
- भागलपुर के लोगाई गांव में
- 110 से अधिक मुस्लिमों की हत्या की गई थी
- और शव छिपाने के लिए कथित रूप से उनकी कब्रों पर गोभी की खेती की गई थी
यही वजह है कि विपक्ष ने अशोक सिंघल के पोस्ट को “संवेदनहीन”, “उकसाने वाला” और “राजनीति का निचला स्तर” बताया।
कौन-कौन भड़के और क्या कहा?
गौरव गोगोई (कांग्रेस सांसद)
उन्होंने कहा कि मंत्री द्वारा ऐसी ट्रैजिक घटना का इस्तेमाल करना बेहद शर्मनाक है।
उनके शब्दों में—
“यह सार्वजनिक जीवन का नया सबसे निचला स्तर है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत फैलाने वाली सोच को बढ़ावा दे रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि असम एक ऐसा राज्य है जिसका इतिहास शंकरदेव, लाचित बरफुकन और आजान पीर जैसी महान शख्सियतों से भरा है।
“2026 में लोग नफरत की राजनीति को खत्म करेंगे,” उन्होंने जोड़ा।

साकेत गोखले (टीएमसी सांसद)
उन्होंने दावा किया कि ऐसा पोस्ट एक मंत्री खुले तौर पर तभी कर सकता है जब “ऊपर से मंजूरी हो।”
उनका आरोप:
“यह ‘गोभी फार्मिंग’ नहीं, बल्कि 1989 की मास हत्या को महिमामंडित करने का प्रयास है।”
गोखले ने सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय पर भी सवाल उठाया।
अभिषेक मनु सिंघवी (कांग्रेस)
उन्होंने प्रधानमंत्री को टैग कर लिखा कि ऐसे भड़काऊ पोस्ट पर कार्रवाई होनी चाहिए।
“चुप्पी का मतलब समर्थन होगा, संयम नहीं।”
अशोक सिंघल ने क्या कहा?
लेख लिखे जाने तक मंत्री ने सफाई नहीं दी थी, लेकिन उनके पोस्ट को लेकर सोशल मीडिया पर मीम्स, आलोचना और बहस का दौर लगातार जारी रहा।
कुछ यूज़र्स इसे “सियासी कटाक्ष” बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे “प्रत्यक्ष साम्प्रदायिक संकेत” मानकर कड़ी आलोचना कर रहे हैं।
क्या समय का चुनाव भी विवाद की वजह बना?
यह पोस्ट ठीक उसी वक़्त आया जब बिहार में NDA भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटती दिख रही थी।
विपक्ष का आरोप है कि “उत्साह में किया गया पोस्ट” नहीं, बल्कि एक “संकेतित राजनीतिक संदेश” था।
चुनावी भावनाओं के गर्म समय में आया यह पोस्ट स्वाभाविक रूप से और भी तीखी प्रतिक्रिया का कारण बना।
राजनीतिक बहस का बड़ा सवाल—क्या डिजिटल भाषा अब और खतरनाक हो गई है?
यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि सोशल मीडिया पर लिखे गए सिर्फ चार शब्द भी देशव्यापी बहस छेड़ सकते हैं।
- क्या नेताओं को ऑनलाइन शब्द चुनते समय और संवेदनशील होना चाहिए?
- क्या पुरानी ट्रैजेडी को राजनीतिक कटाक्ष में इस्तेमाल करना सही है?
- और क्या इस तरह की पोस्ट देश की साम्प्रदायिक संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकती हैं?
इन सवालों को लेकर बहस फिलहाल जारी है।
चुनावों के बीच आया यह विवाद आने वाले दिनों में और भी राजनीतिक रंग ले सकता है।
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