Politics
मोदी के जन्मदिन की बधाई पर चीन भड़का दलाई लामा को लेकर फिर से उठा पुराना विवाद
प्रधानमंत्री मोदी ने दलाई लामा को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, चीन ने जताई कड़ी आपत्ति — तिब्बत मुद्दे पर फिर गरमाया भारत-चीन समीकरण

बीजिंग से फिर एक बार भारत को तीखा संदेश मिला है, और इस बार वजह बनी है दलाई लामा को दी गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन्मदिन की बधाई। तिब्बती धर्मगुरु के 90वें जन्मदिवस पर जब भारत के शीर्ष नेताओं ने उन्हें बधाइयां भेजीं और कुछ केंद्रीय मंत्री उनके समारोह में शामिल हुए, तो चीन का गुस्सा फूट पड़ा।
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने एक प्रेस वार्ता में कहा, “14वें दलाई लामा एक राजनीतिक निर्वासित हैं जो लंबे समय से चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त हैं। वह धर्म के आवरण में तिब्बत (जिसे चीन ‘शिजांग’ कहता है) को चीन से अलग करने की कोशिश करते हैं।”
दक्षिण एशिया मामलों के जानकारों के अनुसार, यह प्रतिक्रिया कोई नई बात नहीं है। चीन, दलाई लामा को लेकर भारत के किसी भी सार्वजनिक समर्थन को अपनी संप्रभुता पर चोट मानता है। इस बार भी प्रधानमंत्री द्वारा दी गई बधाई को चीन ने “आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप” बताया और कड़ा विरोध दर्ज कराया।
दूसरी ओर, द केरला सांसद और पूर्व विदेश सचिवों ने भी इस विषय पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि “भारत को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों और ऐतिहासिक संबंधों को बनाए रखते हुए अपनी विदेश नीति में आत्मनिर्भर निर्णय लेना चाहिए।”
भारत-चीन संबंध पहले से ही लद्दाख सीमा विवाद और ब्रह्मपुत्र जल प्रबंधन जैसे मुद्दों पर तनावपूर्ण हैं। ऐसे में तिब्बत और दलाई लामा जैसे संवेदनशील विषय पर यह नया विवाद दोनों देशों के बीच एक बार फिर तल्खी बढ़ा सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि बीजिंग का यह तीखा विरोध भारत द्वारा चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को लेकर उसकी असहिष्णुता दर्शाता है, लेकिन भारत सरकार इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से अब तक शांत बनी हुई है।
क्या यह चुप्पी रणनीतिक है या दबाव में उठाया गया कदम?
यह सवाल अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर चर्चा का विषय बनता जा रहा है। दलाई लामा को लेकर भारत की स्थिति स्पष्ट है—वह एक आध्यात्मिक गुरु हैं और भारत में आस्था और सम्मान के साथ देखे जाते हैं।
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“क्या बिहार चुनाव से पहले वोटरों का नाम हटाने की साजिश?”: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के ‘विशेष पुनरीक्षण’ पर उठाए गंभीर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा – “क्या यह पुनरीक्षण प्रक्रिया समय पर पूरी हो सकेगी और क्या यह वास्तविक वोटरों को प्रभावित नहीं करेगी?”

बिहार में 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले, एक नई वोटर सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ की प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं, जिनमें इस पुनरीक्षण की समय सीमा, विधिक वैधता और इसकी वास्तविकता पर चिंताएं जताई गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि इस पुनरीक्षण प्रक्रिया को चलाने का अधिकार किस कानून के तहत दिया गया है, खासकर तब जब यह प्रक्रिया चुनाव के कुछ महीनों पहले ही शुरू की जा रही है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा, “क्या यह गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया ‘प्रतिनिधित्व के अधिकार कानून’ के तहत सही है?” और यह भी कि “क्या इस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि अवैध वोटर सूची से बाहर हो जाएं, और इसे चुनाव से अलग रखा जा सकता है?”
यह पुनरीक्षण प्रक्रिया उन वोटरों के लिए है, जिनका नाम 2003 के बाद पंजीकृत हुआ था। खास बात यह है कि आयोग ने इस प्रक्रिया में आम सरकारी पहचान पत्र जैसे आधार कार्ड और चुनाव आयोग द्वारा जारी इलेक्ट्रोरल फोटो पहचान पत्र को शामिल नहीं किया है, जो कि कई सवाल खड़े कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इन संवेदनशील मुद्दों पर अपनी चिंता जताई और कहा कि “सभी वास्तविक वोटर्स के नाम को प्रभावित किए बिना इस पुनरीक्षण को समय पर पूरा किया जा सकता है, इस पर गंभीर संदेह है।”
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां उन आरोपों को और पुख्ता करती हैं, जो कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसे विपक्षी दलों ने लगाए हैं। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया गरीबों, प्रवासी मजदूरों और समाज के कमजोर वर्गों को बाहर करने की कोशिश कर रही है।
चुनाव आयोग ने इस पुनरीक्षण को जायज ठहराते हुए कहा कि कुछ 1.1 करोड़ लोग अब जीवित नहीं रहे और 70 लाख लोग स्थानांतरित हो गए हैं, यही कारण है कि यह पुनरीक्षण आवश्यक था। हालांकि, कोर्ट ने इस जवाब को नकारते हुए कहा कि “यह प्रक्रिया सिर्फ पहचान सुनिश्चित करने के लिए होनी चाहिए, ना कि वोटिंग अधिकारों को रद्द करने के लिए।”
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से यह स्पष्ट हो गया है कि यह पुनरीक्षण केवल एक ‘प्रोसेस’ नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला कदम हो सकता है। अब यह देखना होगा कि चुनाव आयोग इन सवालों के जवाब कब और कैसे देता है।
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बदलाव के लिए वोट दो नाम के लिए नहीं — बिहार में जनता से सीधे संवाद में बोले प्रशांत किशोर
जन सुराज अभियान के तहत रीगा पहुंचे प्रशांत किशोर ने लालू यादव की एक खूबी की तारीफ की, साथ ही नीतीश-मोदी को लेकर दिया बड़ा संदेश

राजनीतिक रणनीतिकार से जन नेता बने प्रशांत किशोर एक बार फिर बिहार की सियासत के केंद्र में हैं। जन सुराज यात्रा के तहत रीगा (सीतामढ़ी) पहुंचे किशोर ने जनता से खुला संवाद करते हुए बड़ा राजनीतिक बयान दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस बार वोट लालू नीतीश या मोदी के नाम पर नहीं बल्कि बिहार में बदलाव के लिए होना चाहिए।
प्रशांत किशोर, जो कभी नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं की चुनावी रणनीति तैयार करते थे, अब ‘जनता का शासन’ और स्थायी सुधार की बात करते नज़र आ रहे हैं। उन्होंने युवाओं से कहा कि चुनावी वादों और चेहरों के बजाय शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर मतदान करें।
दिलचस्प बात यह रही कि उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव की एक आदत की तारीफ भी की। किशोर ने कहा, “लालू जी में जो बात मुझे पसंद है, वह है उनकी ज़मीनी पकड़ और सीधे संवाद करने की कला। लोग इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। चाहे आप उनके समर्थक हों या नहीं, पर ये गुण उन्हें विशेष बनाते हैं।”
प्रशांत किशोर ने यह भी कहा कि बिहार के युवाओं को जात-पात और वंशवाद की राजनीति से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है। उन्होंने अपील की कि “जो नेता भ्रष्टाचार में डूबे हैं, उन्हें वोट देना बंद करें। अगर आप सही प्रतिनिधि चुनेंगे, तो व्यवस्था खुद सुधरेगी।”
जन सुराज अभियान, जिसे प्रशांत किशोर बिहार के कोने-कोने में लेकर जा रहे हैं, अब एक वैकल्पिक राजनीतिक विकल्प के रूप में उभरता दिख रहा है। उनकी बातों में सिर्फ आलोचना नहीं, समाधान और सुझाव भी नजर आते हैं, जो जनता को आकर्षित कर रहा है।
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कर्नाटक में सब कुछ ठीक नहीं सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की दिल्ली यात्रा ने बढ़ाई नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा
मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों एक साथ पहुंचे दिल्ली, कांग्रेस हाईकमान से मुलाकात के मायनों पर सियासी अटकलें तेज

क्या कर्नाटक कांग्रेस सरकार में अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार दोनों एक साथ दिल्ली दौरे पर पहुंच गए हैं। दोनों नेताओं की यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं, पार्टी के अंदर असंतोष की आहट, और अगले विधानसभा सत्र से पहले संगठनात्मक असमंजस दिख रहा है।
हालांकि दोनों नेताओं ने इसे आधिकारिक दौरा बताया है, लेकिन राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात की खबरों ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
क्या फिर से ‘ढाई-ढाई साल’ फॉर्मूले की ओर?
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की थी। लेकिन तभी से यह चर्चा चल रही थी कि मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच एक गुप्त समझौता हुआ है – जिसके तहत दोनों नेता 2.5-2.5 साल के लिए पद साझा करेंगे।
अब जब सरकार को एक साल से अधिक समय हो चुका है, और शिवकुमार के समर्थकों में बढ़ती बेचैनी देखी जा रही है, ऐसे में यह यात्रा सत्ता के बंटवारे की दूसरी किस्त के लिए दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखी जा रही है।
कांग्रेस आलाकमान की भूमिका और चुप्पी
दिल्ली में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात का उद्देश्य यदि सिर्फ संगठनात्मक समन्वय होता, तो यह यात्रा अलग-अलग भी हो सकती थी। लेकिन दोनों नेताओं का एक साथ दिल्ली पहुंचना यह संकेत देता है कि पार्टी आलाकमान अब इस “दो ध्रुवीय सत्ता” के समन्वय के लिए हस्तक्षेप करना चाहता है।
कांग्रेस हाईकमान की ओर से हालांकि अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन उनकी साइलेंस भी बहुत कुछ कह रही है।
विपक्ष और जनता की नज़र
BJP और JDS जैसे विपक्षी दल इस यात्रा को लेकर सरकार पर हमलावर हैं। भाजपा प्रवक्ताओं ने सवाल उठाए हैं कि
“अगर सब कुछ ठीक है तो दोनों नेता एक साथ दिल्ली क्यों गए?”
जनता की ओर से भी यह सवाल उठ रहा है कि जब राज्य में बिजली संकट, सूखा राहत और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे सामने हैं, तब मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री का एक साथ दिल्ली जाना किस बात का संकेत है?
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